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अदभुत आश्चर्यजनक किन्तु सत्य

मन्त्र पूत जल का कमाल
इस बार की अमेरिका यात्रा में सघन कार्यक्रम थे। दिन में पाँच-छह प्रोग्राम। उसके बीच उन कार्यक्रम स्थलों की दूरी भी नापनी थी, साथ ही मिलने वाले आस्थावान, प्रश्रकर्ता भी विभिन्न प्रकार के। अतः शरीर थक कर चूर था। सोचा, रास्तें में आराम करेंगे। विराट वायुयान ३५० यात्री लेकर लॉस एन्जिल्स से उड़ान भरी, ताइवान, सिंगापुर होते हुए उसे दिल्ली पहुँचना था। बारह-तेरह घंटे की यात्रा थी। अतः लगा कि अब रात्रि आराम से कटेगी। अचानक एक सवा घंटे बाद एक यात्री की तबियत अत्यधिक खराब हो गई। पायलट को कुछ सूझा नहीं। उसने एनाउन्स किया कि यदि वायुयान वापस ले जाते हैं तो तीन घंटे अतिरिक्त लगेंगे जाने-आने में, व आगे बढ़ते है तो यात्री की जान को खतरा है। अतः यदि वायुयान में कोई डाक्टर हो तो कृपया मदद करें। उद्घोषणा सुनकर ...
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ऐसे थे पूज्य गुरुदेव
गुरुवर जो कहते उसे पूर्णतया स्वयं के जीवन में करके दिखाते। ‘‘दूसरों के प्रति उदारता स्वयं के प्रति कठोरता’’ उनके जीवन में सतत चरितार्थ तो थी ही, किन्तु उस समय वह चरम अवस्था में पहुँच गई, जब उनकी माता दानकुँवरि बाई का निधन हो गया। मथुरा में जब वे अस्वस्थ थीं, उस समय भी आचार्य जी के कार्यक्रम सारे देश में अनवरत चल रहे थे। हर बार तपोभूमि के कार्यकर्ताओं (जिनमें मैं भी शामिल था) को देख- रेख करने की हिदायत देकर जाते थे; पर पता नहीं क्यों इस बार उन्होंने कहा कि यदि कुछ अनहोनी घट गई तो दोनों स्थान पर टेलीग्राम करना। जहाँ कार्यक्रम समाप्त हो व जहाँ प्रारंभ हो। साथ ही आवश्यक निर्देश देकर दौरे पर चले गए। द्रष्टा की आँखों से भला कोई बात छिपी कैसे रह सकती है? वही हुआ जिसे समझा गए थे। उस समय छत्तीसगढ़ (...
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घट-घट में बसै गुरु की चेतना
करीब २२- २३ साल पहले की बात है। तब मैं कॉलेज में पढ़ा करती थी। फरवरी का महीना था। मैं अपनी माँ के साथ ग्राम हर्री,जिला अनूपपुर में अन्नप्राशन संस्कार कराने गई थी। कार्यक्रम शाम का था। लौटने में थोड़ी देर हो गई। शहडोल की आखिरी बस छः बजे थी। हम जल्दी- जल्दी बस स्टैण्ड पहुँचे। लेकिन पता चला कि बस अभी ५ मिनट पहले ही जा चुकी है। यह सुनकर हम माँ बेटी दोनों के प्राण सूख गए। इसके बाद कोई दूसरी बस नहीं थी। माँ को वापस घर जैतहरी जाना था और मुझे शहडोल जाना था, क्योंकि मैं पढ़ाई कर रही थी। दूसरे दिन प्रैक्टिकल था। इसलिए जाना जरूरी था। माँ की बस आधा घंटे बाद थी, लेकिन वह हमें न अकेले छोड़ सकती थी न वापस साथ ले जा सकती थी। बस छूटने के थोड़ी देर बाद एक कार आई। उसे रुकने के लिए हाथ दिया। क्योंकि कार में बैठे व्...
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गुरु चिन्तन से मिली कारागार से मुक्ति
यह घटना तुलसीपुर पुरानी बाजार जिला बलरामपुर उ.प्र. की है। श्री घनश्याम वर्मा दो भाई थे। बड़े भाई सीताराम जी थे, जिनके बच्चे नहीं थे। घनश्याम वर्मा जी के चार बच्चे सन्तोष, अशोक, रवि टिंकू एवं एक बच्ची थी। सीताराम जी के बच्चे न होने के कारण सम्पत्ति को लेकर भारी विवाद था। परिवार के अलावा अन्य लोग भी उनकी सम्पत्ति को हड़पना चाहते थे। दोनों परिवार में बँटवारा था। अलग बनाते खाते थे। मेरा इस परिवार से परिचय कुछ ही दिन पूर्व हुआ था। वर्मा जी के यहाँ बच्चे का जन्म दिवस संस्कार था। यज्ञ के माध्यम से संस्कार सम्पन्न हुआ। संस्कार के माध्यम से मैंने गुरुदेव एवं मिशन की जानकारी दी। उस समय मथुरा से एक ग्रन्थ प्रकाशित हुआ था ‘‘ऋषि चिन्तन के सान्निध्य में’’। इस ग्रन्थ की स्थापना घर- घर में कराई जा रही थी। मैं...
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एक ही दिन में मिले तीन जीवनदान
बचपन से ही साधना में मेरी गहरी रुचि थी। ध्यान मुझे स्वतः सिद्ध था। तरह- तरह के अनुभव होते थे, जिन्हें किसी से कहने में भी मुझे डर लगता था। पर धीरे- धीरे उनका अर्थ समझ में आने लगा। एक दिन न जाने कहाँ से एक महात्मा मस्तीचक आए और धूनी जलाकर बैठ गए। उनका नाम था- बाबा हरिहर दास। उनसे प्रभावित होकर मैंने दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा- मैं तुम्हारा गुरु नहीं हो सकता हूँ। तुम्हारे गुरु इस धरती पर अवतरित हो चुके हैं। मेरा उद्धार भी तुम्हारे गुरु के द्वारा ही होना है। एक दिन वे मथुरा से यहाँ आएँगे और इसी मिट्टी की कुटिया में आकर मेरा उद्धार करेंगे। बाबा हरिहर दास ने जिस दिन मुझे यह बात बताई, उस दिन के पहले से ही मेरे सपने में एक महापुरुष का आना शुरू हो चुका था। वे खादी के...
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मृत महिला को मिला नया जीवन
घटना दिसम्बर सन् 1969 की है। युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य यज्ञ कराने प्रथमतः पटना पहुँचे। इस यज्ञ में शामिल होने के लिए मेरे पिताजी श्री विजय कुमार शर्मा अपनी माता जी- मेरी दादी- के साथ जमालपुर से आकर यज्ञ में शामिल हुए। विशाल जन- समूह के बीच हर्षोल्लास के साथ वैदिक रीति से यज्ञ का शुभारम्भ हुआ। यज्ञ की समाप्ति पर सभी अपने- अपने घर की ओर चल पड़े। पिताजी भी दादी जी के साथ मुंगेर की वापसी की ट्रेन पकड़ने पटना रेलवे स्टेशन पर आए। वहाँ पहुँचते ही दादी के पेट में अचानक बहुत तेज दर्द शुरू हुआ। लम्बी यात्रा और दिन भर की थकान से पेट में गैस बन जाने की आशंका को लेकर पिताजी ने दादी को नींबू- पानी पिलाया। दादी की तबीयत बजाय सुधरने के और भी बिगड़ती चली गई। दादी के मुँह से झाग निकलना शुरू हुआ और कुछ ही द...
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माँ के लहूलुहान हाथ
मेरी धर्मपत्नी ने गुरुदेव के पास रहकर देव कन्याओं का शिविर किया था। विवाह के बाद उनके माध्यम से मैं भी गुरुदेव से जुड़ गया। पत्नी की पहली डिलीवरी के समय हम बहुत परेशान थे, वहाँ हमारे गाँव में न कोई साधन, न सहयोगी थे। उस परिस्थिति में हमारे पास प्रार्थना के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था। डिलीवरी के दिन पत्नी बहुत तकलीफ में थीं। उनकी हालत देख मैं गुरु देव से प्रार्थना करने लगा। संयोग से समय पर एक नर्स मिल गई। उन्होंने बड़ी सहजता के साथ डिलीवरी करा दी। तब से गुरु देव के प्रति श्रद्धान्वित मैं कोई काम शुरू करने से पहले उनसे अवश्य पूछता हूँ। सन् १९९१ में मैं राइस मिल चलाने जा रहा था। माताजी से आशीर्वाद लेने गया। राइस मिल की बात सुनकर माताजी गम्भीर हो गईं। बोलीं- दुकान पर तो बैठ रहा है, क्या दिक्कत ...
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इसी बुड्ढे ने बचाई थी मेरी जान
सन् १९८८ ई. की बात है। गायत्री शक्तिपीठ, बलसाड़ की एक विशेष गोष्ठी में गायत्री महामंत्र की असीम शक्तियों पर परिचर्चा हो रही थी। धीरे- धीरे परिचर्चा का विषय इस युग के अन्यतम गायत्री साधक पं. श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ की अलौकिक क्षमताओं की ओर मुड़ने लगा। कई परिजनों ने सूक्ष्म रूप से पूज्य गुरुदेव द्वारा जीवन- रक्षा किए जाने के विस्मयकारी प्रसंगों की झड़ी लगा दी। इन चर्चाओं से सभी इस नतीजे पर पहुँचे कि ऐसे अद्भुत कार्यों का सम्पादन या तो ईश्वर कर सकते हैं या ईश्वर के अवतार। इन चर्चाओं से अभिभूत होकर कई वृद्ध परिजनों ने एक स्वर में कहा- काश! हम अभागे लोग भी अवतार पुरुष के दर्शन कर पाते। वृद्ध परिजनों की मार्मिक पीड़ा देखकर कुछ युवकों ने इन्हें हरिद्वार ले जाने का बीड़ा उठाया। अगले दिन उन युवकों ने हरि...
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ईसाई चिकित्सक को दिव्य दिशा निर्देश
१० अक्टूबर, १९८३ के ब्रह्ममुहूर्त के वे पल मुझसे भुलाये नहीं भूलते। पूज्य गुरुदेव ने आत्मीयतापूर्वक कहा था- ‘‘बेटा, तू मेरा काम कर और मैं तेरा काम करूँगा।’’ प्यार में रंगे पूज्य गुरुदेव के ये शब्द आज भी उन क्षणों में गूँज उठते हैं, जिन क्षणों में मेरे जीवन की कोई जटिल समस्या मुझे पंगु बना देती है। पूज्य गुरुदेव के संरक्षण में जब मैंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की तो मेरे जीवन में कई तरह के उतार- चढ़ाव आए। पिताजी, माताजी के देहावसान के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी मेरे ही कंधे पर आ गई। पूज्य गुरुदेव के सान्निध्य में आने के २३ साल बाद की बात है। पिछले कुछ समय से बीमार चल रही मेरी पत्नी श्रीमती कलावती देवी की डाक्टरी जाँच से पता चला कि उन्हें कैंसर हो गया है। तब तक यह असाध्य बीमारी आखिरी स्...
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पल भर में सुनी गई अबला की पुकार
उन दिनों मैं सिविल कोर्ट, बलरामपुर में सर्विस कर रही थी। जून में कोर्ट की छुट्टियाँ होने को थीं। सन् २००२ ई. की बात है। इस बार हमने शान्तिकुञ्ज में छुट्टियाँ बिताने की सोची। पहले तो कई लोग आने को तैयार थे, पर बाद में उन सभी ने अलग- अलग कारणों से अपना प्रोग्राम बदल दिया और मैं अकेली रह गई। छुट्टियों के दिन होने के कारण ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिल पाया था। किन्तु मुझे तो किसी भी हाल में शान्तिकुञ्ज पहुँचना ही था। मन में ठान चुकी थी। सो, अकेली ही रवाना हो गई। गोण्डा से ट्रेन से चारबाग स्टेशन, लखनऊ पहुँची, तो शाम के चार बज चुके थे। दून एक्सप्रेस से जाना था। लेकिन, स्टेशन पर यात्रियों की भारी भीड़ देखकर मैं अन्दर से काँप उठी। प्लेटफार्म पर पैर रखने की जगह नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि ट्रेन छूट गई। इ...
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आत्मचिंतन के क्षण77
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कहानियाँ प्रज्ञा पुराण से60
गायत्री और यज्ञ 27
जीवन जीने की कला570
नवरात्रि 19
पर्व एवम त्योहार2
प्रज्ञा पुराण (भाग 1)1
विचार क्रांति323
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