पर्व एवम त्योहार
संघर्षों की विजयादशमी (Kavita)
संघर्षों की विजयादशमी चढ़ आई है,
तज कर तन्द्रा, आ पंचशील के राम, उठो!
तुम भटक चुके हो नाथ, बहुत दण्डक वन में,
तुम बिलख चुके हो हृदय-विदारक क्रन्दन में,
नीरव आँसू से शैल-शिलाएं पिघलाते-
तुम मौन रहे अत्याचारों के बन्धन में,
मिल गए तुम्हें सह-सत्ता के भालू-बन्दर-
करते जयकारे सद्भावों के नर-किन्नर-
पापों से दबी धरा की उठी दुहाई है-
नर के चोले में नारायण निष्काम, उठो! 1
सर उठा रही डायन-सी विज्ञानी लंका,
डम-डमा रहा संहार-नाश का फिर डंका,
सज रहा टैंक, पनडुब्बी, राकिट के संग-संग-
ऐटम का मेघनाद, असुरों का रणबंका,
है नाथ ‘मिजिल’ का बड़ा भयानक कुम्भकर्ण-
कर देंगे गैसों के शर सब के पीत वर्ण-
मानव के जग पर दानवता घहराई है,
बन एक बार संरक्षण के उपनाम, उठो! 2
ऋषि-मुनियों-से हैं उपनिवेश पीड़ित दिन-दिन,
हैं ...
शक्ति और मर्यादा की समन्वित सिद्धि
रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथों में शक्ति पूजा का उल्लेख नहीं आता। देवी भागवत और दूसरे पुराणग्रंथों में ही कहा गया है कि लंका विजय से पहले नवरात्र अनुष्ठान किया था और शक्ति ने स्वयं प्रकट होकर राम को विजय के आशीष दिए थे। रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथों में सविता देवता कि आराधना के प्रसंग आते है। कहा सूर्य कि स्तुति के रूप में,तो कही संध्यावंदन और गायत्री जप के रूप में। रामायण आदि ग्रंथों में शक्ति पूजा के प्रसंग नहीं है। मनीषीगण प्रसंग को यह कहकर शक्ति पूजा से जोड़ते है कि राम का विजय अभियान सीता कि वापसी के लिए था।
कथानक जिस रूप में भी प्रचलित हो, उनका आशय यह है कि कि आसुरी तत्त्वों ने शक्ति का हरण कर लिया था। वह हरण किये जाने पर भी उन्हें हस्तगत नहीं हुई थी। आसुरी तत्वों का आधिपत्य हो जाता तो नारा...