रचनात्मक एवं संघर्षात्मक कदम उठाने होंगे
नया युग लाने के लिए धरती पर स्वर्ग का अवतरण करने के लिए-सतयुग की पुनरावृत्ति आँखों के सामने देखने के लिए-हमें कुछ अधिक महत्त्वपूर्ण, दुस्साहस भरे रचनात्मक एवं संघर्षात्मक कदम उठाने होंगे। शत-सूत्री कार्यक्रमों के अंतर्गत उसकी कुछ चर्चा हो चुकी है। बड़े परिवर्तनों के पीछे बड़ी कार्य पद्धतियाँ भी जुड़ी रहती हैं। निश्चित रूप से हमें ऐसे अगणित छोटे-बड़े आन्दोलन छेड़ने पड़ेंगे, संघर्ष करने पड़ेंगे, प्रशिक्षण संस्थाएँ चलानी पड़ेंगी जन करना अभियान में लाखों मनुष्यों का जन, सहयोग, त्याग-बलिदान सूझ-बूझ एवं प्रयत्न, पुरुषार्थ नियोजित किया जाएगा भारत के पिछले राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में कितनी जनशक्ति और कितनी धन-शक्ति लगी थी। यह सर्वविदित है, यह भारत तक और उसके राजनैतिक क्षेत्र तक सीमित थी। अपने अभियान का कार्यक्षेत्र उससे सैकड़ों गुना बड़ा है।
अपना कार्यक्षेत्र समस्त विश्व है और परिवर्तन राजनीति में ही नहीं वरन् व्यक्ति तथा समाज के हर क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन प्रस्तुत करने हैं। इसके लिये कितने सृजनात्मक और कितने संघर्षात्मक मोर्चे खोलने पड़ेंगे, इसी कल्पना कोई भी दूरदर्शी कर सकता है। वर्तमान अस्त-व्यस्तता को सुव्यवस्था में परिवर्तित करना एक बड़ा काम है। मानवीय मस्तिष्क की दिशा, विचारणा, आकांक्षा अभिरुचि ओर प्रवृत्ति को बदल देना-निष्कृष्टता के स्थान पर उत्कृष्टता की प्रतिष्ठापना करना-सो भी समस्त पृथ्वी पर रहने वाले चार अरब व्यक्तियों में निस्सन्देह एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक काम है। इसमें अग्रणी व्यक्तियों, असंख्य आन्दोलनों और असीम क्रिया तन्त्रों का समन्वय होगा।
यह एक अवश्यम्भावी प्रक्रिया है, जिसे महाकाल अपने ढंग से नियोजित कर रहे हैं। हर कोई देखेगा कि आज की वैज्ञानिक प्रगति की तरह कल भावनात्मक उत्कर्ष के लिए भी प्रबल प्रयत्न होंगे और उसमें एक से एक बढ़कर व्यक्तित्व एवं संगठन गज़ब की भूमिका प्रस्तुत कर रहे होंगे। यह सपना नहीं, सच्चाई है। जिसे अगले दिनों हर कोई मूर्तिमान् होते हुए देखेगा। इसे भविष्यवाणी नहीं समझना चाहिये, एक वस्तुस्थिति है जिसे हम आज अपनी आँखों पर चढ़ी दूरबीन से प्रत्यक्षतः देख रहे हैं। कल वह निकट आ पहुँचेगी और हर कोई उसे प्रत्यक्ष देखेगा। अगले दिनों संसार का समग्र परिवर्तन करके रख देने वाला एक भयंकर तूफान विद्युत गति से आगे बढ़ता चला आ रहा है। जो इस सड़ी दुनियाँ को समर्थ, प्रबुद्ध, स्वस्थ और समुन्नत बनाकर ही शान्त होगा।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, सितंबर १९६९, पृष्ठ ६६
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