यह अच्छी आदतें डालिए (भाग 5)
जागरुकता :-
जो जीवन में जागरुक रहता है, उन्मत्त होता रहता है। जो तन्द्रा आलस्य या विलास में सोया रहता है, क्षय और पतन को प्राप्त होता है। जागरुक व्यक्ति अपने चारों ओर, संसार में देश तथा समाज में होने वाले क्रम तथा घटनाओं पर तीखी दृष्टि रखता है और उनसे लाभ उठाता है।
जागरुकता वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक दृष्टि से चौकना रहता है। उसका मन संसार की प्रगति को देखता रहता है। उसमें शैथिल्य और आलस्य नहीं रहता। सतर्क पहरेदार की भाँति वह अपने इर्द गिर्द के परिवर्तनों को देखता और उनसे लाभ उठाता है। डाक्टर को देखिए, सिपाही या मल्लाह को देखिए, वे कैसे चुस्त, सतर्क, जागरुक रहते हैं। अपने काम पर तीखी दृष्टि लगाये रहते हैं। आध्यात्मिक जगत् के पथिक के लिए जागरुकता अतीव आवश्यक गुण है।
जीवन में अपने कर्त्तव्यों, उत्तरदायित्वों, आगे आने वाली जिम्मेदारियों, व्ययों के प्रति जागरुक रहिये। आपकी प्रगति कैसी हो रही है, आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक, शारीरिक सभी रूपों में आप कितना आगे बढ़ रहे हैं, अथवा नीचे सरके आ रहे हैं?—यह चौकन्ने हो कर नापते रहिये। चौकन्ना व्यक्ति आने वाले खतरों से मार नहीं खाता। जरासा खतरा देखते ही वह गिलहरी की तरह जागरुक हो उठता है और बच निकलता है।
वे ही व्यक्ति अधिक वेतन प्राप्त करते हैं, जिनमें जागरुकता की अधिक आवश्यकता होती है। एंजिन तथा हवाई जहाज के चालक, बम चलाने वाले, मोटर ड्राइवर, डाक्टर, इंजीनियर, मजिस्ट्रेट इत्यादि सब ही को जिस गुण की अतीव आवश्यकता है, वह सतत् चेतनशीलता है।
शरीर में रोगों की ओर से सतर्क रहिये। तनिक सी लापरवाही से इन रोगों का अत्यधिक विकास हो सकता है। तनिक सी अशिष्टता से लड़ाई, झगड़ा, मुकदमेबाजी तक की नौबत आ सकती है। चारों ओर से आक्रमण आ सकते हैं पर जागरुकता सबसे हमारी रक्षा कर सकती है। अच्छा सेनापति सब जरूरतों के लिए तैयार रहता है।
अखण्ड ज्योति, अप्रैल 1955 पृष्ठ 20
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