हमारी वसीयत और विरासत (भाग 111): हमारी प्रत्यक्ष सिद्धियाँ
साधना से सिद्धि का तात्पर्य उन विशिष्ट कार्यों से है, जो लोक-मंगल से संबंधित होते हैं और इतने बड़े, भारी तथा व्यापक होते हैं, जिन्हें कोई एकाकी संकल्प या प्रयास के बल पर नहीं कर सकता। फिर भी वे उसे करने का दुस्साहस करते हैं; आगे बढ़ने का कदम उठाते हैं और अंततः असंभव लगने वाले कार्य को भी संभव कर दिखाते हैं। समयानुसार जनसहयोग उन्हें भी मिलता रहता है। जब सृष्टि नियमों के अनुसार हर वर्ग के मनस्वी को सहयोग मिलते रहते हैं, तब कोई कारण नहीं कि श्रेष्ठ कामों पर वह विधान लागू न होता हो। प्रश्न एक ही है अध्यात्मवादी साधनों और सहयोगों के अभाव में भी कदम बढ़ाते हैं और आत्मविश्वास तथा ईश्वरविश्वास के सहारे नाव खेकर पार जाने का भरोसा रखते हैं। सामान्यजनों की मनःस्थिति ऐसी नहीं होती। वे सामने साधन-सहयोग की व्यवस्था देख लेते हैं, तभी हाथ डालते हैं।
साधनारत सिद्धपुरुषों द्वारा महान कार्य संपन्न होते रहे हैं। यही उनका सिद्धि-चमत्कार है। देश में स्वतंत्रता आंदोलन आरंभ कराने के लिए समर्थ गुरु रामदास एक मराठा बालक को आगे करके जुट गए और उसे आश्चर्यजनक सीमा तक बढ़ाकर रहे। बुद्ध ने संव्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्वव्यापी बुद्धिवादी आंदोलन चलाया और उसे समूचे संसार तक, विशेषतया एशिया के कोने-कोने में पहुँचाया। गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा। मुट्ठी भर लोगों के साथ धरसना में नमक बनाने के साथ शुरू किया। अंततः इसका कैसा विस्तार और कैसा परिणाम हुआ, यह सर्वविदित है। विनोबा द्वारा एकाकी आरंभ किया गया भूदान आंदोलन कितना व्यापक और सफल हुआ, यह किसी से छिपा नहीं है। स्काउटिंग, रेड क्रॉस आदि कितने ही आंदोलन छोटे रूप में आरंभ हुए और वे कहीं-से-कहीं जा पहुँचे। राजस्थान का वनस्थली बालिका विद्यालय, बाबा साहब आमटे का अपंग एवं कुष्ठ रोगी सेवा सदन ऐसे ही दृश्यमान कृत्य हैं, जिन्हें साधना से सिद्धि का प्रत्यक्ष प्रमाण कहा जा सके। ऐसी अगणित घटनाएँ संसार में संपन्न हुई हैं, जिनमें आरंभकर्त्ताओं का कौशल, साधन एवं सहयोग नगण्य था, पर आत्मबल असीम था। इतने भर से गाड़ी चल पड़ी और जहाँ-तहाँ से तेल-पानी प्राप्त करती हुई क्रमशः पूर्व से भी अगली मंजिल तक जा पहुँची। सदुद्देश्यों की ऐसी पूर्ति के पीछे साधना से सिद्धि की झाँकी देखी जा सकती है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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