हमारी वसीयत और विरासत (भाग 113): हमारी प्रत्यक्ष सिद्धियाँ
3. गायत्री तपोभूमि मथुरा के भव्य भवन का निर्माण— शुभारंभ अपनी पैतृक संपत्ति बेचकर किया। पीछे लोगों की अयाचित सहायता से उसका ‘धर्मतंत्र से लोक-शिक्षण’ का उत्तरदायित्व सँभालने वाले केंद्र के रूप में विशालकाय ढाँचा खड़ा हुआ।
4. ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका का सन् 1937 से अनवरत प्रकाशन। बिना विज्ञापन और बिना चंदा माँगे, लागत मूल्य पर निकलने वाली गांधी की हरिजन पत्रिका जबकि घाटे के कारण बंद करनी पड़ी थी, तब अखण्ड ज्योति अनेक मुसीबतों का सामना करती हुई निकलती रही और अभी एक लाख पचास हजार की संख्या में छपती है। एक अंक को कई पढ़ते हैं। इस दृष्टि से पाठक दस लाख से कम नहीं हैं।
5. साहित्य-सृजन। आर्षग्रंथों का अनुवाद तथा व्यावहारिक जीवन में अध्यात्म सिद्धांतों का सफल समावेश करने वाली नितांत सस्ती, किंतु अत्यंत उच्चस्तरीय पुस्तकों का प्रकाशन। इनका अन्यान्य भाषाओं में अनुवाद। यह लेखन इतना है, जिसे एक मनुष्य के शरीरभार के समान तोलने पर भी अधिक ही होगा। इसे करोड़ों ने पढ़ा है और नया प्रकाश पाया है।
6. गायत्री परिवार का गठन— उसके द्वारा लोक-मानस के परिष्कार के लिए प्रज्ञा अभियान का और सत्प्रवृत्ति-संवर्द्धन के लिए युगनिर्माण योजना का कार्यान्वयन। दोनों के अंतर्गत लाखों जाग्रत आत्माओं का एकत्रीकरण। सभी का अपने-अपने ढंग से नवसृजन के लिए भाव भरा योगदान।
7. युगशिल्पी प्रज्ञापुत्रों के लिए आत्मनिर्माण— लोक-निर्माण की समग्र पाठ्य-विधि का निर्धारण और सत्र योजना के अंतर्गत नियमित शिक्षण। दस-दस दिन के गायत्री साधना सत्रों की ऐसी व्यवस्था, जिसमें साधकों के लिए निवास-भोजन आदि का भी प्रबंध है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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