हमारी वसीयत और विरासत (भाग 114): हमारी प्रत्यक्ष सिद्धियाँ
8. अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की शोध के लिए ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान की स्थापना। इसमें यज्ञ विज्ञान एवं गायत्री महाशक्ति का उच्चस्तरीय अनुसंधान चलता है। इसी उपक्रम को आगे बढ़ाकर जड़ी-बूटी विज्ञान की ‘चरककालीन-प्रक्रिया’ का अभिनव अनुसंधान हाथ में लिया गया है। इसके साथ ही खगोल विद्या की टूटी हुई कड़ियों को नए सिरे से जोड़ा जा रहा है।
9. देश के कोने-कोने में 2400 निजी इमारत वाली प्रज्ञापीठ और बिना इमारत वाले 7500 प्रज्ञा-संस्थानों की स्थापना करके नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक पुनर्निर्माण की युगांतरीय चेतना को व्यापक बनाने का सफल प्रयत्न। इस प्रयास को 74 देशों के प्रवासी भारतीयों में भी विस्तृत किया गया है।
10. देश की समस्त भाषाओं तथा संस्कृतियों के अध्ययन-अध्यापन का एक अभिनव केंद्र स्थापित किया गया है, ताकि हर वर्ग के लोगों तक नवयुग की विचारधारा को पहुँचाया जा सके। प्रचारक हर क्षेत्र में पहुँच सकें। अभी तो जनजागरण के प्रचारक जत्थे जीप, गाड़ियों के माध्यम से हिंदी, गुजराती, उड़िया, मराठी क्षेत्रों में ही जाते रहे हैं। अब वे देश के कोने-कोने में पहुँचेंगे और पवित्रता, प्रखरता एवं एकात्मता की जड़ें मजबूत करेंगे।
11. प्रचारतंत्र अब तक टैप रिकॉर्डरों और स्लाइड प्रोजेक्टरों के माध्यम से ही चलता रहा है। अब उसमें वीडियो फिल्म निर्माण की एक कड़ी और जोड़ी जा रही है।
12. प्रज्ञा अभियान की विचारधारा को फोल्डर योजना के माध्यम से देश की सभी भाषाओं में प्रसारित-प्रचारित किया जा रहा है, ताकि कोई कोना ऐसा न बचे, जहाँ नवचेतना का वातावरण न बने।
13. प्रज्ञा पुराण के पाँच खंडों का प्रकाशन हर भाषा में तथा उसके टैप प्रवचनों का निर्माण। इस आधार पर नवीनतम समस्याओं का पुरातन कथा-आधार पर समाधान का प्रयास।
14. प्रतिदिन शान्तिकुञ्ज के भोजनालय में शिक्षार्थियों, अतिथियों और तीर्थयात्रियों की संख्या प्रायः एक हजार रहती है। किसी से कोई मूल्य नहीं माँगा जाता। सभी भाव-श्रद्धा से प्रसाद ग्रहण करके ही जाते हैं।
15. अगणित व्यक्ति गायत्री तीर्थ में आकर अनुष्ठान साधना करते रहे हैं। इससे उनके व्यक्तित्व में परिष्कार हुआ है; मनोविकारों से मुक्ति मिली है एवं भावी जीवन की रीति-नीति निर्धारित करने में मदद मिली है। विज्ञानसम्मत पद्धति से ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान में उनका पर्यवेक्षण कर इसे सत्यापित भी किया गया है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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