हमारी वसीयत और विरासत (भाग 115): हमारी प्रत्यक्ष सिद्धियाँ
उपरोक्त प्रमुख कार्यों और निर्धारणों को देखकर सहज बुद्धि यह अनुमान लगा सकती है कि इनके लिए कितने श्रम, मनोयोग, साधन— कितनी बड़ी संख्या में— कितने लोगों के लगे होंगे, इसकी कल्पना करने पर प्रतीत होता है कि सब सरंजाम पहाड़ जितना होना चाहिए। उसे उठाने, आमंत्रित, एकत्रित करने में एक व्यक्ति की अदृश्य शक्ति भर काम करती रही है। प्रत्यक्ष याचना की— अपील की— चंदा जमा करने की प्रक्रिया कभी अपनाई नहीं गई। जो कुछ चला है, स्वेच्छा-सहयोग से चला है। सभी जानते हैं कि आजकल धन जमा करने के लिए कितने दबाव, आकर्षण और तरीके काम में लाने पड़ते हैं, पर मात्र यही एक ऐसा मिशन है, जो दस पैसा प्रतिदिन के ज्ञानघट और एक मुट्ठी अनाज वाले धर्मघट स्थापित करके अपना काम भली प्रकार चला लेता है। जो इतनी छोटी राशि देता है, वह यह भी अनुभव करता है कि संस्था हमारी है; हमारे श्रम-सहयोग से चल रही है; फलतः उसकी आत्मीयता भी सघनतापूर्वक जुड़ी रहती है। संचालकों को भी इतने लोगों के सामने उत्तरदायी होने— जबाब देने का ध्यान रखते हुए एक-एक पाई का खरच फूँक-फूँककर करना पड़ता है। कम पैसे में इतने बड़े काम चल पड़ने और सफल होने का रहस्य यह लोकप्रियता ही है।
निःस्वार्थ, निस्पृह और उच्चस्तरीय व्यक्तित्व वाले जितने कार्यकर्त्ता इस मिशन के पास हैं, उतने अन्य किसी संगठन के पास कदाचित् ही हों। इसका कारण एक ही है, संचालन-सूत्र को अधिकाधिक निकट से परखने के उपरांत यह विश्वास करना कि यहाँ ब्राह्मण आत्मा सही काम करती है। बुद्ध को लोगों ने परखा और लाखों परिव्राजक घर-बार छोड़कर उनके अनुयायी बने। गांधी के सत्याग्रहियों ने भी वेतन नहीं माँगा। इन दिनों हर संस्था के पास वैतनिक कर्मचारी काम करते हैं, तब मात्र प्रज्ञा अभियान ही एकमात्र ऐसा तंत्र है, जिसमें हजारों लोग उच्चस्तरीय योग्यता होते हुए भी मात्र भोजन-वस्त्र पर निर्वाह करते हैं।
इतने व्यक्तियों का श्रम-सहयोग, बूँद-बूँद करके लगने वाला इतना धन-साधन किस चुंबकत्व से खिंचता हुआ चला आता है। वह भी एक सिद्धि-चमत्कार है, जो अन्यत्र कदाचित् ही कहीं दीख पड़े।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Recent Post
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 126): तपश्चर्या— आत्मशक्ति के उद्भव हेतु अनिवार्य
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 125): तपश्चर्या— आत्मशक्ति के उद्भव हेतु अनिवार्य
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 124): तपश्चर्या— आत्मशक्ति के उद्भव हेतु अनिवार्य
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 123): तपश्चर्या— आत्मशक्ति के उद्भव हेतु अनिवार्य:
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 122): तपश्चर्या आत्मशक्ति के उद्भव हेतु अनिवार्य
Read More
कौशाम्बी जनपद में 16 केंद्रों पर संपन्न हुई भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा
उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद में अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज की ओर से आयोजित होने वाली भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा शुक्रवार को सोलह केंद्रों पर संपन्न हुई। परीक्षा में पांचवीं से बारहवीं...
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 121): चौथा और अंतिम निर्देशन
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 120): चौथा और अंतिम निर्देशन
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 119): चौथा और अंतिम निर्देशन
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 118): चौथा और अंतिम निर्देशन
Read More
