
योग द्वारा ही समाज का संगठन होगा।
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(योगिराज श्री अरविन्द)
आत्मा को बिना जाने या बिना पाये, जो नवीन समाज गठन का स्वप्न देख जा रहा है, वह सफल नहीं होगा। आत्मा को लेकर ही मानव जीवन है। जीवन के परदे के भीतर सत्य वस्तु छिप गई है। ज्ञान का विकास होने पर ही आत्मलाभ होगा। इसके लिए शिक्षा की आवश्यकता है और वह शिक्षा योग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
बुद्धि मानव जीवन का श्रेष्ठ तत्व है, इसी बुद्धि द्वारा देह राज्य पैदा होता और उसका काम चलता है, बुद्धि ने अन्तरात्माओं को ढंक रखा है, उसे समेटना होगा तभी ज्ञान-सूर्य की किरणों के प्रभाव से देह राज्य का नवीन रूप उत्पन्न होगा। बुद्धियोग-सिद्धि के लिए परम विघ्न है। लेकिन बुद्धि की स्फुरण के बिना योग सिद्धि की आशा भी नहीं की जाती। बुद्धि अपने पुराने संस्कार से किसी नवीन वस्तु का ग्रहण करने में देर तो करती है लेकिन एक बार किसी भी चीज को ग्रहण कर लेने के बाद फिर उसके किसी काल में भी पतन की संभावना नहीं रह जाती।
हर एक मनुष्य के जीवन को सार्थकता से परिपूर्ण करना ही योग का उद्देश्य है। वासनायें ही योग के विघ्न हैं इसलिए साधना की अवस्था में सारी वासनायें छोड़कर चलना पड़ता है। यह साधना की आरंभिक अवस्था है। इसे यम कहते हैं। लेकिन संयम का अर्थ निग्रह या बन्ध नहीं है। वासना की तरंगों के आघातों से मन विचलित न हो जाय इसके लिए तपस्या करना ही संयम कहलाता है। चित्त के स्थिर हो जाने पर वासनाओं की जगह भगवान की इच्छा का ही उदय हो जाता है, सिद्धावस्था में वासना और चेष्टा का एकदम नाश हो जाता है, अपने आप ही शुद्ध कर्म प्रकट होता है।
साधनावस्था में साधकों को सहनशील होकर रहना आवश्यक होता है। आसक्ति का त्याग करना पड़ता है। आसक्ति का अर्थ भोग नहीं है। आसक्ति के कारण मनुष्य के कर्म संस्कार सृष्टि के कारण होते हैं। जो लोग बुद्धि के साथ भगवान की इच्छा का मिलान कर लेते हैं वे आसक्ति को पार कर लेते हैं। फिर वह जीवन, सिद्धि में बदलना आरम्भ हो जाता है। सिद्ध जीवन और कुछ नहीं है भगवान के साथ योग युक्त होकर उन्हीं की प्रीति के लिए सब काम करना ही सिद्ध जीवन है।
योग के पथ पर अग्रसर होने से जो समृद्धि और सम्पत्ति उत्पन्न होगी, उसी का बाहरी रूप साम्राज्य है। अपने को जान लेने या पा जाने के बाद वास्तविक स्वराज्य प्राप्त होता है और स्वराज्य प्राप्त होने के बाद ही साम्राज्य की रचना होती है। उसी से नवीन समाज की रचना होती है।
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