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Magazine - Year 1961 - Version 2

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गायत्री-परिवार संबंधी स्पष्टीकरण

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First 19 21 Last
‘अखण्ड ज्योति’ के गत अंक में गायत्री परिवार के संबंध में, कुछ सूचनाएँ छपी थी। उनके संबंध में और भी अधिक स्पष्टीकरण किया जा रहा हे।

(1) गायत्री विद्या की जानकारी अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाना और आकर्षित करने का कार्य एक सीमा तक पूर्ण हो गया। इसलिए प्रचारात्मक कार्यों से आगे के कदम उठाये जा रहे हैं।

(2) अब गायत्री परिवार नैष्ठिक उपासकों का एक संघ हो गया। जिन्हें आत्म कल्याण की लगन है एवं जिनकी श्रद्धा सुदृढ़ हो गई है वे ही उसके सदस्य रहेंगे। टब तक के अगणित गायत्री उपासकों में से कितनों को श्रद्धा दुर्बल हो गई होगी। अभी भी जिनकी निष्ठा स्थिर है ओर जो दृढ़ विश्वासों के साथ इस मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं उनका समुचित मार्ग दर्शन करने एवं अधिक सहयोग देने की दृष्टि से ही गायत्री परिवार के सदस्यों की नई सूची बनाई जा रही है। पुराने रजिस्टर रद्द कर दिये गये हैं।

(3) परिवार का सदस्य जिन्हें रहने हो वे पुनः अपना (1) पूरा नाम (2) पूरा पता, (3) आयु, (4) शिक्षा (5) व्यवसाय (6) जन्म तिथि (यदि जन्म कुंडली हो तो वह भी) (7) अब तक की कुल साधना का विवरण तथा (8) इन दिनों जा साधना क्रम चल रहा हो उसका परिचय लिख कर भेजें। इस विवरण के आधार पर ही उनका नाम सूची में सम्मिलित किया जाएगा।

(4) इन दिनों जो शाखाएँ सजीव हैं उनके मंत्रियों से निवेदन है कि अपने यहाँ के जिनकी साधनायें निष्ठा पूर्वक चल रहा हो, उन सदस्यों की सूची बनाकर भेज दें, तथा साथ ही यह भी लिख दें कि उनमें से कौन साधक अपनी निज की साधना तक ही सीमित हैं और कौन ऐसे हैं जो दूसरों को प्रेरणा देन, सामूहिक व्यवस्था में भाग लेने एवं धर्म सेवा में अभिरुचि लेते हैं। ऐसी सेवा भावी साधकों को सक्रिय सदस्या माना जाएगा।

(5) प्रत्येक सक्रिय सदस्य अब एक स्वतंत्र शास्त्र माना जाएगा। उसके कंधे पर कम से कम पाँच उपासकों को प्रेरणा देते रहने का उत्तरदायित्व भी रहेगा।

(6) अब शाखा के पदाधिकारियों के चुनाव न हुआ करेंगे। इससे ईर्ष्या, द्वेष अहंकार एवं पद लोलुपता आदि बुराइयाँ बढ़ती हैं। सब सदस्य कुटुम्ब भावना से मिल जुलकर विशुद्ध परमार्थ बुद्धि से कार्य किया करें। नाम के लिए काम करने का प्रवृत्ति के निरुत्साहित किया जाना चाहिए। शाखा का एक व्यवस्था-संयोजक कार्य संचालन हिसाब, किताब, पत्र व्यवहार एवं शाखा की वस्तुएँ सुरक्षित रखने की दृष्टि से नियुक्त किया जाया करेगा। यह नियुक्ति मथुरा से होगी और कोई विशेष कारण होने पर ही इस नियुक्ति में परिवर्तन होगा।

पदाधिकारियों के चुनाव अब न होंगे। इससे ईर्ष्या, द्वेष, पदलोलुपता आदि बुराइयाँ बढ़ती है। सब सद्भाव से मिलकर विशुद्ध कर्तव्य बुद्धि एवं धर्म भावना से अपने यहाँ का कार्य चलाये नाम और यश की कामना छोड़कर ही काम करना चाहिए।

(8) शाखाएँ साप्ताहिक सत्संगों का कमजोरी रखें। दोनों नवरात्रियों में सामूहिक अनुष्ठान आयोजन होते रहें। साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना का, बुराइयाँ त्यागने एवं अच्छाइयाँ बढ़ाने का बीस सूत्री कार्य चलता रहे।

(9) सक्रिय सदस्य अपने-अपने संरक्षण में नये गायत्री उपासक सदस्य बनाते और बढ़ाते रहें। उनके नाम वे अपने पास ही नोट रखे मथुरा इनकी सूचना तभी भेजी जाय जब उनकी साधना कम से कम छः महीने नियमित रूप से चल चुके और उत्साह क्षणिक बुद्धि मात्र न रहकर निष्ठा में परिणित होता दिखाई दे। ऐसे ही नैष्ठिक उपासकों का मार्ग दर्शन यहाँ से किया जा सकेगा।

(10) अब सदस्यता पत्र भरने और बदले में प्रमाण पत्र भेजे जाने की प्रथा बंद कर दी गई है। नैष्ठिक सदस्य जो अपना परिचय और विवरण अपने हाथ से लिखकर भेजेंगे उसे ही सदस्यता पत्र माना जाएगा। उत्तर में उन्हें आवश्यक नियमों के साथ सदस्यता की स्वीकृति मिलेगी। जिन्हें हमारे सहयोग एवं सेवा की आवश्यकता प्रतीत हो केवल वे ही अपने नाम सदस्यता के लिए भेजें।

(11) प्रत्येक सदस्य को अपनी त्रुटियों को सुधारने, अपने में आवश्यक सद्गुण बढ़ाने एवं आत्मबल संग्रह करने की साधनाओं में संलग्न होना है। इसीलिए अपनी अपूर्णता दूर होगी और इसी से देश, जाति, समाज एवं विश्व की सच्ची सेवा भी बन पड़ेगी।

(10) सभी सदस्यों को अपनी साधना, मनोभूमि तथा परिस्थितियों की सूचना प्रत्येक छमाही पर मथुरा भेजी चाहिए। चैत्र सुदी 15 तथा आश्विनी सुदी 15 इसके लिए नियत है। अब मासिक रिपोर्ट भेजने की आवश्यकता नहीं रही।

(13) ‘अखण्ड ज्योति’ अब साधना पथ के पथिकों का मार्ग दर्शन कार्य ही प्रधान रूप से करेगी। सदस्य उसे ध्यान पूर्वक पढ़ा करें। सदस्यों और तपोभूमि के बीच के संबंध सूत्र का प्रधान माध्यम यह पत्रिका ही है। जो इसे नहीं पढ़ते वे उस मार्ग दर्शन से वंचित ही रहेंगे जो उपासकों को मिलना आवश्यक है। लेख भी अब उसमें विशिष्ट उद्देश्य के ही रहेंगे। बिना माँगे कोई सज्जन लेख न भेजें।

(15) साधना पथ के पथिकों के लिए प्रवचनों की उतनी आवश्यकता नहीं होती जितनी परमार्थ की। इसलिए आने वालों को परामर्श के लिए उचित समय मिल सके इस दृष्टि से यह उचित समझा गया है कि यहाँ अधिक भीड़ इकट्ठी न होने दी जाय और उतने ही लोग आवें जिनके साथ खुले मन से विचार विनिमय का अवसर रहे। जिन्हें कभी तपोभूमि पधारना हो वे अपने आने की पूर्व सूचना देकर एवं स्वीकृति प्राप्त करके ही आवें। इसी से सीमित संख्या वाली बात निभ सकेगी।

(16) पत्र व्यवहार करते समय सदस्य जवाबी पत्र भेजने की कृपा क्रिया करें। गायत्री परिवार का कोई शुल्क नहीं है। इसलिए पत्र व्यवहार का व्यय भार उस पर पड़ना उचित नहीं। हर पत्र में अपना पूरा पता अवश्य लिखना चाहिए।

(17) हमारी अज्ञातवास साधना के अनुभव अनेक स्वजनों से पूछे हैं। वे सर्व साधारण के समक्ष प्रकट करने के नहीं है। साधना गोपनीय रखने की परम्परा भी है। जितना अंश सर्व साधारण के लिए उपयोगी था वह छप चुका है। कोई और भी बात बताने योग्य होगी तो आगे छप जाएगी। अब तो इतना ही जानना पर्याप्त होगा कि हम स्वस्थ और सानन्द लौटे हैं और साधना की आवश्यकता एवं उपयोगिता का महत्व हमारी दृष्टि में और भी अधिक बढ़ा है। अभी फिलहाल मथुरा से बाहर चले जाने का हमारा कार्यक्रम नहीं है।

-श्रीराम शर्मा आचार्य

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