
मधु संचय (kavita)
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गन्ध-विहीन फूल है जैसे, चन्द्र चन्द्रिका-हीन
यों ही फीका है मनुष्य का, जीवन प्रेम-विहीन,
प्रेम स्वर्ग है, स्वर्ग प्रेम है, प्रेम अशंक अशोक,
ईश्वर का प्रतिबिम्ब प्रेम है, प्रेम हृदय आलोक॥
-रामनरेश त्रिपाठी
होगा नहीं निराश, प्राप्ति को यदि न मुझे अभिलाष,
कहा विफलता यदि फल का है तुम्हें नहीं विश्वास,
हानि-लाभ, यश-अपयश, सुख-दुख इस विधि उलझे साथ,
अलग-अलग कर नहीं सकेंगे, यह मानव के हाथ।
विष की प्याली ढुल जायेगी, वे अमृत-घट फोड़।
तू सुख से मुख मोड़, तुझे फिर देगा दुख भी छोड़।
-विद्यावती मिश्र
लालच किया मुक्ति का जिसने,
वह ईश्वर पूजना नहीं है।
बनकर वेद मन्त्र-सा मुझ को,
मन्दिर में गूँजना नहीं है॥
संकटग्रस्त किसी नाविक को, निज पतवार थमा देने से-
मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी नौका तर जाती है।
-रामावतार त्यागी
अभय रहेंगे हम इस जग में, प्रेम बीज को बोना है।
देशभक्ति की बहती सुरसरि में, अपने कर धोना है॥
है ‘स्वरूप’ जग को बतलाना-मौत सदैव खिलौना है।
भारत माँ के हृदय-हार में, शीश प्रसून पिरोना है॥
-रामस्वरूप खरे
सँभलना गिरकर जगत का ही नियम है,
माना जाना रूठकर भी सहज क्रम है,
किन्तु गिरकर रूठकर जो और भूले-वह सखे।
बस एक मेरा विवश मन है।
-यमुनेश श्रीवास्तव
जो आँधियों में बुझ नहीं सका वहीं चिराग तू।
जो बारिसों में दब नहीं सकी वही है आग तू॥
कदम-कदम पर बिजलियाँ उछालता चला है तू॥
बढ़ा जा बाबरे। दिखा न अपने दिल के दाग तू॥
-विनोद रस्तोगी
डिगो न अपने पथ से तो सब कुछ पा सकते हो प्यारे।
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो, छू सकते हो नभ के तारे॥
अटल रहा जो अपने पथ पर, लाख मुसीबत आने में।
मिली सफलता उसको जग में, जीने में मर जाने में॥
-मैथिलीशरण गुप्त
नवीन पर्व के लिए, नवीन प्राण चाहिए।
स्वतन्त्र देश हो गया,
प्रभत्वमय दिशा मही,
निशा कराल टल चली,
स्वतन्त्र माँ, विभामयी,
मुक्त मातृ-भूमि को नवीन मान चाहिए॥
चढ़ रहा निकेत है कि,
स्वर्ग छू गया सरल,
दिशा-दिशा पुकारती कि,
साधना करो सफल,
मुक्त गीत ही रहा नवीन राग चाहिए॥
युवक कमर कसो कि,
कष्ट कंटकों की राह है,
प्राण-दान का समय,
उमंग है, उछाह है,
पगों में आँधियाँ भरे प्रयाण-गान चाहिए॥ नवीन पर्व
के लिए --------
-‘अज्ञात’