Magazine - Year 1967 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
विश्व -मानव के दर्शन कीजिये।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मनुष्यों और उनके स्वयम्भू नेताओं की भूलों तथा त्रुटियों के कारण संसार में जो भेदभाव, विरोध, मनोमालिन्य, संघर्ष का वातावरण उत्पन्न हुआ वह अब अपनी चरम-सीमा पर पहुँच चुका है और विनाश के प्रलयकालीन मेघों की भाँति पृथ्वी पर फटने ही वाला है। इस भीषण-भविष्य का कुछ परिचय जुलाई की अखण्ड-ज्योति में दिया गया था। इस प्रलयकाण्ड के लिये सूक्ष्म जगत् की शक्तियों में कैसा परिवर्तन हो रहा है और लोगों को गलत रास्ते से लौटाने के लिये महाकाल का डमरू क्या सन्देश सुना रहा है इस पर अक्टूबर के अंक में भरपूर प्रकाश डाला गया है।
अब इस अंक में हम पाठकों को यह दिग्दर्शन कराना चाहते हैं कि इस दैवी दण्ड के पश्चात् महाकाल द्वारा संसार का कूड़ा-कर्कट बुहार कर फेंक देने के उपरान्त नव-युग का निर्माण किस रूप में होगा? आपस की फूट और अहंकार जनित झूठे भेदभावों को बढ़ाने की सजा पाकर मनुष्य क्या शिक्षा ग्रहण करेंगे और उसके आधार पर किस प्रकार ‘विश्व-धर्म’, ‘विश्व-राज्य’, ‘विश्व-समाज’, ‘विश्व-भाषा’, ‘विश्व-न्यायालय’ आदि का निर्माण और स्थापना होगी।
इस अंक के लेखों को पढ़ कर पाठकों को मालूम होगा कि किस प्रकार पिछले कितने ही वर्षों से महापुरुष लोक कल्याणार्थ इन बातों की शिक्षा दे रहे हैं और अब वह अवसर ठीक सिर पर आ जाने से उन उपदेशों को कार्यरूप में परिणत करने के लिए कैसी-कैसी तैयारियाँ हो रही हैं। प्रतिदिन होने वाली घटनाओं और अन्य लक्षणों से अब युग-परिवर्तन में कुछ भी देर नहीं जान पड़ती। इसलिये प्रत्येक प्रबुद्ध व्यक्ति का धर्म है कि वह तुरन्त ही उद्यत और सन्नद्ध होकर इस दैवी-आदेश के पालन में अपनी शक्ति, साधन और सेवाओं को समर्पित कर दें।
-सत्यभक्त