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विश्वात्मा ही परमात्मा-जाबालि
अहंकार की पराजय
ईश प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं
वेदान्त की अपूर्व महनीयता- एको ब्रह्म द्वितीयोनास्ति
रोगों की जड़ शरीर नहीं मन में
धामक परिप्रेक्ष्य में विज्ञान की सीमितता
महान् मानव जीवन का महान् सदुपयोग
मनुष्य के अन्दर का रेडियो, टेलिविजन
पूर्वज्ञान केवल आत्म-चेतना के लिए सम्भव
हम आत्म-विश्वासी बनें, अपना भरोसा करें
मनुष्य अमीबा से नहीं ईश्वर की इच्छा से बना है
मनुष्य मरने बाद भी जिन्दा रहता है
हमारी महत्त्वाकांक्षायें- निकृष्ट न हों
चन्द्रमा देवता- कुल ६९ मील दूर
क्रूरता- मानवता पर महान् कलंक
ग्रह-नक्षत्रों की गतिविधियाँ हमें प्रभावित करती हैं
निराशा ही अभिशाप-परिताप
एटम बमों की मार से हमें यज्ञ बचाते हैं
अहंकार अपने ही विनाश का कारण
पूजा का मर्म
अपनों से अपनी बात- वसुधैव कुटुम्बकम्-हमारी गतिविधियाओ का मूल प्रयोजन
यज्ञ-कुराड जागो आहुति लो (कविता) -लाखन सिंह
भौतिक ही नहीं आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक है
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Year 1969 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
धामक परिप्रेक्ष्य में विज्ञान की सीमितता
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Other Version of this book
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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Type: TEXT
Language: HINDI
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