• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सत्य के लिए सर्वस्व त्याग
    • संस्कृति के लिए त्याग
    • गति का दर्शन और परमगति
    • गृहस्थ का सन्देह
    • विज्ञान द्वारा प्रमाणित अन्तर्चेतना को भूला न जाय।
    • इस संसार में सब कुछ चेतना ही है।
    • वाणी की शक्ति
    • आत्म−शक्ति का कुछ ठिकाना नहीं?
    • लड़ रहा हो जब स्वयं विज्ञान से विज्ञान
    • लुहार का घमण्ड
    • वासना स्वभाव नहीं विकार मात्र
    • मनुष्य शरीर जैसी मशीन नहीं
    • शरीर का ही नहीं−आत्मा का भी ध्यान रखें।
    • चार मित्र
    • मुशल पर्व आस्ट्रेलियाई खरगोशों का
    • जल (वरुण देवता) की अनुपम अद्भुत और अन्यतम सत्ता
    • माँसाहार का पाप पूर्व को भी पश्चिम न बना दे।
    • पुरुषार्थ
    • अपनी कमाई—सदा काम आई
    • हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
    • श्रम का पुरस्कार
    • बदलती परिस्थितियों में स्वयं भी बदलें
    • संसार का अधिकार
    • महानता का जनक शुद्ध अहंभाव
    • श्रमशील इंका जाति
    • हृदय−परिवर्तन
    • मेजर कार्लडिक को एक साधु का श्राप
    • आत्मिक प्रगति के लिए−उत्कृष्ट शिक्षा की आवश्यकता
    • खून बहाना पसन्द नहीं
    • दांपत्य जीवन की तैयारी और पत्नी−व्रत
    • लोकमान्य तिलक
    • मानव मस्तिष्क की वैभव विभूतियाँ
    • स्वप्नों की सत्यता का रहस्य क्या है?
    • गुरु−भक्ति की परीक्षा
    • आप मेरे गुरु हैं
    • जीवन के उतार-चढावों पर उद्विग्न न हों।
    • मानवता का प्राण −अध्यात्म नष्ट न होने पाये।
    • पूज्य आचार्य जी के आगामी कार्यक्रम
    • मन की प्यास
    • मन की प्यास (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1970 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


मानव मस्तिष्क की वैभव विभूतियाँ

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 31 33 Last
प्रसिद्ध अमेरिकी डॉ. बिल्डर पेनफील्ड ने मस्तिष्क की वात नाड़ियों का अध्ययन करते समय कई कौतुहल देखे। एक दिन उन्होंने एक 8 वर्षीय बालिका के मस्तिष्क के एक भाग में विद्युत−आवेश प्रवाहित किया। ऐसा करते ही लड़की ग्रामोफोन के रेकार्ड की तरह एक घटना सुनाने लगी—“मैं अपने भाइयों के साथ खेत में घूम रही थी। मेरे भाई मुझे चिढ़ाने के लिये खेत में छुप गये। मैं उनसे भटक गई एक आदमी दिखाई दिया। उसके वस्त्र बड़े भद्दे थे। उसने अपने थैले से एक साँप निकालकर दिखाया। मैं डर कर भागी और हाँफते हुये घर पहुँची।”

डॉ. पेनफील्ड पहले ही आश्चर्यचकित थे कि 8 वर्षीया बालिका का यह विचार प्रवाह असामान्य है। छोटे बच्चे इतनी खूबसूरती से घटनाओं का विवरण नहीं कर सकते। बाद में उस लड़की की माता से पूछने पर उसने बताया—“सचमुच जब वह ढाई वर्ष की बच्ची थी, तब उसके साथ यह घटना सचमुच घटित हुई। पेनफील्ड को विश्वास था इतनी छोटी आयु का कोई भी बच्चा अतीत की स्मृतियाँ बनाये रखने में समर्थ नहीं हो सकता। इसलिये निःसन्देह खोपड़ी के अन्दर पूर्ण प्रतिभा प्रौढ़ और विचार संपन्न शक्ति होनी चाहिये। उस शक्ति का स्वरूप, आकृति और महत्तम क्षमतायें क्या और कितनी हो सकती हैं, इसका उत्तर वे तुरन्त तो नहीं दे सके पर तबसे वे निरन्तर मस्तिष्क के आश्चर्यजनक तथ्यों की खोज में लगे हैं, उनकी उपलब्धियां भारतीय तत्व-दर्शन की सहस्रार कमल वाली उपलब्धियों को ही प्रमाणित करती है। एक दिन लोग यह सच मानेंगे कि खोपड़ी के भीतर सहस्रार कमल जैसा कोई सूक्ष्म शक्ति प्रवाह है अवश्य, जो मानवीय चेतना को ब्रह्मांड की विराट् शक्तियों से तादात्म्य कराता है। जिसमें सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमत्ता, भूत−भविष्य और वर्तमान सबकी सर्वज्ञता शक्ति विद्यमान है।

भारतीय योगियों ने ब्रह्मरन्ध्र स्थित जिन षटचक्रों की खोज की उनमें, सहस्रार कमल उनसे बिलकुल अलग और सर्वप्रभुता संपन्न है। यह स्थान कनपटियों से दो−दो इंच अन्दर भृकुटि से लगभग ढाई या तीन इंच अन्दर छोटे से पोले में प्रकाश पुञ्ज के रूप में है। तत्त्व−दर्शियों के अनुसार यह स्थान उलटे छाते या कटोरे के समान 17 प्रधान प्रकाश तत्वों से बना होता है, देखने में मर्करी लाइट के समान दिखाई देता है। छान्दोग्य उपनिषद् में सहस्रार दर्शन की सिद्धि पाँच अक्षरों में इस तरह प्रतिपादित की—‘तस्य सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति’ अर्थात् सहस्रार प्राप्त कर लेने वाला योगी संपूर्ण भौतिक विज्ञान प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। यही वह शक्ति केन्द्र है जहाँ से मस्तिष्क शरीर का नियन्त्रण करता है और विश्व में जो कुछ भी मानवकृत विलक्षण विज्ञान दिखाई देता है, उनका संपादन करता है।

यदि हम अपने मस्तिष्क के ज्ञान भाग को प्रखर रख पायें तो पिछले जीवन में कभी भी कुछ देखा-सुना, सोचा, अनुभव किया वही नहीं वरन् दूसरों के द्वारा पढ़ा, सोचा, देखा-सुना और अनुभव किया हुआ भी उसी तरह पकड़ सकते हैं, जिस प्रकार परदे पर दिखाई देने वाली सिनेमा की रीलें। प्रति सेकिंड एक चित्र की दर से अतीत में जो कुछ भी देखा है या भविष्य में देखने वाले हैं, वह सब मस्तिष्क में चमत्कार की तरह विद्यमान है। उसे कभी भी ढूंढ़ा और उसका लाभ उठाया जा सकता है।

योग तत्त्व की इस बात को अनेक वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा भी सिद्ध किया जा चुका है। उपरोक्त घटना के बारे में यह संदेह हो सकता है कि बालिका के साथ यह घटना इतनी तीव्रता से घटी होगी कि छोटी अवस्था में भी अमिट छाप छोड़ गई होगी पर कुछ ऐसे विलक्षण मामले सामने आये हैं, जो यह बताते हैं कि इसी जन्म की नहीं मस्तिष्क में ऐसे संस्कार कोष विद्यमान हैं, जिनसे पूर्वजन्मों की घटनाओं और अनुभवों को याद किया जा सकता है। उनसे पुनर्जन्म लोकोत्तर जीवन और जीवन की अमरता को प्रतिपादित किया जा सकता है।

उपरोक्त प्रकार का एक प्रयोग एक लड़के पर भी किया गया। जैसे ही मस्तिष्क की एक वातनाड़ी पर विद्युत धारा प्रवाहित की गई, लड़का एक गीत गुनगुनाने लगा। लड़का विचित्र भाषा में गा रहा था। छन्द-बद्ध गुनगुनाने, लय और संगति मिलने के कारण लोगों को आश्चर्य हुआ। गीत टेप कर लिया गया। बाद में भाषा विशेषज्ञों और अनुवाँशिकी विशेषज्ञों से जाँच कराई गई तो पता चला कि लड़के ने पश्चिम जर्मनी में बोली जाने वाली एक ऐसी भाषा का गीत गया था, जो बहुत समय पहले बोली जाती थी। लड़के का वहाँ के लोगों से किसी प्रकार का पैतृक या मातृक सम्बन्ध भी नहीं था। इससे एक ही बात साबित होती है कि लड़का किसी जन्म में उस प्रदेश का कोई मनुष्य था, उस जीवन के संस्कार उसमें विद्यमान थे, विद्युत आवेश द्वारा उन्हें केवल जागृत कर लिया गया।

डॉ. पेनफील्ड के पास ऐसा रोगी आया जिसे मिर्गी आती थी। उसका आपरेशन करके उन्होंने देखा कि जब मिर्गी आती है तो एक विशेष नस ही उत्तेजित होती है, उसे काटकर अलग कर दिया तो वह रोगी सदा के लिये अच्छा हो गया। बाद में पेनफील्ड ने बताया कि मस्तिष्क में कई अरब प्रोटीन−अणु पाये जाते हैं, इस प्रोटीन अणुओं में औसत आयु 70 वर्ष के लगभग सवा दो अरब सेकिंड होते हैं, इन क्षणों में जागृत स्वप्न में वह जो कुछ देखता सुनता और अनुभव करता है, यह सब मस्तिष्क के कार्यालय में जमा रहता है और उसमें से किसी भी अंश को विज्ञान की सहायता से पढ़ा जाना सम्भव है। मस्तिष्क के 10 अरब स्नायु कोषों में अगणित आश्चर्य संग्रहीत हैं, उन सबकी विधिवत जानकारी रिकार्ड करने वाला कोई यन्त्र बना सका तो जीव किन−किन योनियों में कहाँ−कहाँ जन्म लेकर आया है और उसने कब क्या पाप, क्या पुण्य किया है, उस सबकी जानकारी प्राप्त करना सम्भव हो जायेगा। उन सब की याददाश्त दिलाने वाला सहस्रार में बैठा हुआ वह ‘क्रिस्टल’ मात्र है, जिसे हमारे धर्म ग्रन्थों में सूत्रात्मा कहते हैं।

असाधारण ज्ञान, असाधारण कार्य प्रणाली और मस्तिष्क की विलक्षण रचना से जहाँ जीवात्मा के अनेक रहस्यों का ज्ञान होता है, वहाँ उसकी दूर−दर्शन और इन्द्रियातीत ज्ञान के भी अनेक प्रमाण पाश्चात्य देशों में संकलित व संग्रहीत किये गये हैं। “दि न्यू फ्रान्टियर्स आफ माइंड” के लेखक श्री जे. वी. राइन ने दूर−दर्शन के तथ्यों का वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह से अध्ययन किया और यह पाया कि कुछ मामलों में अभ्यास के द्वारा ऐसे प्रयोग 50 प्रतिशत से अधिक सत्य पाये गये, जबकि स्वप्नों एवं मनोवेगों द्वारा भविष्य दर्शन की अनेक घटनाओं को शत प्रतिशत सत्य पाया।

एक घटना का उल्लेख इस प्रकार है। मेरे पड़ोस में एक सज्जन रहते थे। एक रात उनकी धर्म−पत्नी ने स्वप्न देखा कि उसका भाई जो वहाँ से काफी दूर एक गाँव में रहता था, अपने खलिहान जाता है। खलिहान पहुँचकर उसने घोड़ा गाड़ी खोल दी। फिर न जाने क्या सोचकर भूसे के ऊपर बने मचान पर चढ़ गया और वहीं खड़े होकर उसने पिस्तौल चलाकर आत्म−हत्या कर ली। गोली लगते ही भाई भूसे पर लुढ़क पड़ा। इस स्वप्न से वह स्त्री इतनी घबड़ा गई कि उसने अपने पति से तुरन्त गाँव चलने को कहा। वे सज्जन मेरे घर आये और मेरे पिता जी से घोड़ा गाड़ी देने को कहा। पिता जी ने गाड़ी दे दी। वह स्त्री अपने पति को लेकर गाँव गई और लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने खलिहान में जाकर पाया कि उसके भाई की मृत्यु ठीक वैसे ही स्थान और परिस्थितियों में हुई पड़ी थी।

स्वप्नावस्था में हमारे शरीर के सारे क्रिया−कलाप अन्तर्मुखी हो जाते हैं। उस समय भी मस्तिष्क जागृत अवस्था के समान ही क्रियाशील रहता है, यदि उस स्थिति में देखे हुए दृश्य सत्य हो सकते हैं तो यह मानना ही पड़ेगा कि आत्म−चेतना का कभी अन्त नहीं होता, वह एक सर्वव्यापी और अतीन्द्रिय तत्त्व है पर सम्पूर्ण तन्मात्राओं की अनुभूति उसे होती है।

उक्त घटना श्री राइन महोदय के एक प्रोफेसर द्वारा बताई गई, जब वे स्नातक थे। बाद में वह लिखते हैं कि मैं जब पेन्सिलवेनिया के पहाड़ों पर रहता था तो मुझे भी अनेक निर्देश और सन्देश इसी प्रकार अदृश्य शक्तियों द्वारा भेजे हुये मिलते थे।

एक अन्य प्रोफेसर की धर्म−पत्नी का भी इसी पुस्तक में उल्लेख है और यह बताया है कि वह जब अपनी एक सहेली के घर ब्रज खेल रही थीं तो उन्हें एकाएक ऐसा लगा जैसे उनकी बालिका किसी गहरे संकट में हो। उन्होंने बीच में ही उठकर टेलीफोन से घर से पूछना चाहा पर सहेली के आग्रह पर वे थोड़ी देर खेलती रहीं। इस बीच उनकी मानसिक परेशानी काफी बढ़ जाने से वह खेल बीच में ही छोड़कर टेलीफोन पर गईं और अपनी नौकरानी से पूछा लड़की ठीक है, उसने थोड़ा रुककर कहा—हाँ ठीक है। इसके बाद वे फिर खेल खेलने लगीं, खेल समाप्त कर जब वे घर लौटीं तो पता चला कि एक बड़ी दुर्घटना हो गई थी। उनकी लड़की पिता के साथ कार में आ रही थी, वह खेलते−खेलते शीशे के बाहर लटक गई और काफी सफर उसने उसी भयानक स्थिति में पार किया। जब एक पुलिस वाले ने गाड़ी रुकवाई, तब पता चला कि लड़की मजबूती से कार की दीवार पकड़े न रहती तो किसी भी स्थान पर वह कार से कुचलकर मर गई होती। नौकरानी ने कहा चूँकि बच्ची सकुशल थी, इसलिये आपको परेशानी से बचाने के लिये झूठ बोलना पड़ा।

यह घटनायें, यह विशेषण हमें मानव मस्तिष्क की उसी अमर सत्ता की ओर ले जाते हैं, जिधर ले जाने का प्रयास वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने अपने सापेक्षवाद सिद्धान्त (थ्योरी आफ रिलेटिविटी) के द्वारा पहुँचाने का प्रयत्न किया। दोनों का उद्देश्य जीवन की अमरता और ज्ञान रूप में मनुष्य के मस्तिष्क में विद्यमान सहस्रार का ही परिचय कराना है, भले ही उतनी सूक्ष्म जानकारी अभी वैज्ञानिकों को नहीं मिल पाई हो।

=कोटेशन======================================================

‘प्रेम का यह नियम सत्य के नियम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। सत्य के बिना प्रेम नहीं होता, सत्य के बिना प्रेम ढोंग है, जैसे कि दूसरों को कष्ट पहुँचाकर समझना कि हम देश प्रेम कर रहे हैं, या यह मोह, जैसे एक तरुण का किसी लड़की के प्रति होता है, यह हमारा यह प्रेम अयुक्तियुक्त एवं अंधा है, जैसे कि अज्ञानी माँ−बाप का अपने बच्चों के प्रति होता है। प्रेम सब पाशविकता से ऊपर होता है, और उसमें पक्षपात का नाम नहीं होता। इसलिए सत्याग्रह को एक ऐसे सिक्के के रूप में वर्णित किया गया है, जिसके एक तरफ प्रेम है, दूसरी तरफ सत्य। यह सिक्का हर जगह चलता है और इसकी कीमत नहीं आँकी जा सकती।”

—महात्मा गाँधी

==========================================================

----***----

First 31 33 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सत्य के लिए सर्वस्व त्याग
  • संस्कृति के लिए त्याग
  • गति का दर्शन और परमगति
  • गृहस्थ का सन्देह
  • विज्ञान द्वारा प्रमाणित अन्तर्चेतना को भूला न जाय।
  • इस संसार में सब कुछ चेतना ही है।
  • वाणी की शक्ति
  • आत्म−शक्ति का कुछ ठिकाना नहीं?
  • लड़ रहा हो जब स्वयं विज्ञान से विज्ञान
  • लुहार का घमण्ड
  • वासना स्वभाव नहीं विकार मात्र
  • मनुष्य शरीर जैसी मशीन नहीं
  • शरीर का ही नहीं−आत्मा का भी ध्यान रखें।
  • चार मित्र
  • मुशल पर्व आस्ट्रेलियाई खरगोशों का
  • जल (वरुण देवता) की अनुपम अद्भुत और अन्यतम सत्ता
  • माँसाहार का पाप पूर्व को भी पश्चिम न बना दे।
  • पुरुषार्थ
  • अपनी कमाई—सदा काम आई
  • हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  • श्रम का पुरस्कार
  • बदलती परिस्थितियों में स्वयं भी बदलें
  • संसार का अधिकार
  • महानता का जनक शुद्ध अहंभाव
  • श्रमशील इंका जाति
  • हृदय−परिवर्तन
  • मेजर कार्लडिक को एक साधु का श्राप
  • आत्मिक प्रगति के लिए−उत्कृष्ट शिक्षा की आवश्यकता
  • खून बहाना पसन्द नहीं
  • दांपत्य जीवन की तैयारी और पत्नी−व्रत
  • लोकमान्य तिलक
  • मानव मस्तिष्क की वैभव विभूतियाँ
  • स्वप्नों की सत्यता का रहस्य क्या है?
  • गुरु−भक्ति की परीक्षा
  • आप मेरे गुरु हैं
  • जीवन के उतार-चढावों पर उद्विग्न न हों।
  • मानवता का प्राण −अध्यात्म नष्ट न होने पाये।
  • पूज्य आचार्य जी के आगामी कार्यक्रम
  • मन की प्यास
  • मन की प्यास (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj