
बाल्यावस्था की नींद वृद्धावस्था में टूटी
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स्टाक होम (स्वीडन) के पास मोस्टेरीज नाम का एक शहर है। घनी बस्ती के बीच एक कन्या पाठशाला। नगर के एक सम्भ्रान्त व्यक्ति की 13 वर्षीया कन्या करोफ्लाइम कार्ल्सडाटर इस स्कूल में पढ़ने जाया करती था। एक दिन की बात है कि रात्रि में पूर्ण नींद लेने के बाद भी उसे निद्रा का आवेश सा आता रहा। अपने आपको जागृत रखने का बहुतेरा प्रयत्न करने पर भी बेचारी रोक न सकी अकस्मात् पढ़ते-पढ़ते डेस्क पर रखी अपनी पुस्तकों में सिर रखकर सो गई।
सोना यों जीवन की सामान्य सी घटना लगती है। तो भी प्रत्येक व्यक्ति जीवन का एक तिहाई भाग सोकर गुजारता है। साठ वर्ष की आयु कहने की अपेक्षा यह कहना चाहिये कि वह चालीस वर्ष का जिया शेष 20 वर्ष उसने सोने में बिताये। सोना जीवन की एक अनिवार्य आवश्यकता है जो शक्ति आहार से विश्राम और जागृत शिथिलीकरण से भी नहीं मिलती वह सोने से मिलती है सोकर जागने पर हर व्यक्ति नई शक्ति, नई स्फूर्ति अनुभव करता है इसलिये यह मानना चाहिए सोना जीवन के लिए अनिवार्य है।
भारतीय दर्शनकारों ने निद्रा को अज्ञान का प्रतीक माना है-”अभाव प्रत्ययालम्बनावृत्तिर्निद्रा” अर्थात्- ज्ञान के अभाव का जो आलम्बन करें और जो अज्ञान तथा अविद्या के अन्धकार में फँसी हुई वृत्ति होती है उसे निद्रा कहते अभाव ज्ञान के आश्रय पर ही निर्भर वृत्ति का नाम निद्रा है।
योगी इसे तमोगुण प्रधान वृत्ति मानते हैं। मृत्यु और निद्रा दोनों एक एक समान है। रात्रिकालीन निद्रा शरीर में तमोगुण वृद्धि से उत्पन्न शिथिलता के कारण आती है और मृत्यु अज्ञान एवं वासनाओं द्वारा प्राण के ह्रास द्वारा आती है पहली कुछ घण्टों की होती है दूसरी कई-कई वर्ष की होती है। पहली निद्रा टूटने पर जिस प्रकार मनुष्य अपने पिछले जीवन की याद रखता है और जहां से क्रम छोड़ा था आगे का काम शुरू कर देता है इसी प्रकार मृत्यु की निद्रा के उपरान्त मनुष्य अपनी वासना के अनुसार-
काले काले चिता जीवस्त्वन्योऽन्यो भवति स्वयं।
भविताकार वानंत वसिना कलिको दयात्॥
अपने भीतर की वासना को मूर्तरूप देने की इच्छा से आकार धारण करने के लिए जीव अपना शरीर बदलता रहता है।
प्रस्तुत घटना इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य अज्ञान की अवस्था पार कर लेने के बाद संस्कार रूप से अपनी पूर्व इच्छाओं और वासनाओं के अनुसार कार्य प्रारम्भ करता है यद्यपि परिवार और परिस्थितियां मोड़ देने में महत्वपूर्ण क्षमता रखती है बौद्धिक क्षमतायें पूर्व विकास क्रम के अनुसार ही होती है, कारोफ्लाइन जब सो गई ताक उसके अध्यापकों ने उसे जगाने का बहुतेरा प्रयत्न किया पर वह प्रगाढ़ निद्रा में जा चुकी थी जगना असम्भव है यह जानकर उसे घर भेज दिया गया। एक दिन, दो दिन, तीन सप्ताह, माह, वर्ष बीत गया पर लड़की की नींद न टूटी। डाक्टरों, वैज्ञानिकों, शरीर विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों ने सार प्रयत्न कर लिये पर कारोफ्लाइन की नींद नहीं टूटी। उसे दूध, फलों का रस और इन्जेक्शन दिये जाते रहे जिससे शरीर की गतिविधियां सामान्य ढंग से चलती रही पर करोफ्लाइन की एकबार लगी नींद फिर टूटी ही नहीं।
निरन्तर सुरक्षा और प्रतीक्षा के 23 वर्ष बाद जब नींद टूटी तब वह 39 वर्ष की अधेड़ हो गई थी। युवावस्था नींद में चली गई का वह प्रत्यक्ष उदाहरण थी। जागते ही उसने पुस्तकें मांगी जहां से पढ़ाई का क्रम छोड़ा था वहीं से फिर प्रारम्भ कर दिया।