• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • महाशून्य की यात्रा
    • काकवृत्ति बनाम हंसवृत्ति
    • अपने को जानें, भवबंधनों से छूटें
    • नियमों के पालन से आत्मसंयम और अनुशासन की शिक्षा मिलती है
    • सद्वाक्य
    • आश्चर्यों से भरी ईश्वरीय सत्ता
    • स्वामी रामतीर्थ
    • Quotation
    • बौद्धिक क्षमता का भण्डागार ऋतम्भरा का क्रिया-व्यापार
    • अत्याचारी शासक एक चीते से अधिक भयंकर होता है
    • Quotation
    • सच्ची सेवकाई
    • प्रेम का आरंभ होता है, अंत नहीं
    • Quotation
    • जीव ब्रह्म कैसे बनता है ?
    • स्वप्न-दर्पण अतींद्रिय जगत के प्रतिबिंब
    • बुढ़िया की सीख
    • विचार शक्ति (मंत्र शक्ति) द्वारा पदार्थ का हस्तान्तरण
    • अपराधों के पश्चाताप
    • पाण्डित्य से बड़ा चरित्र
    • सदाचरण ही कल्याण का एकमात्र मार्ग
    • Quotation
    • 300 वर्ष आयु के श्री तैलंग स्वामी
    • Quotation
    • चींटियों की चतुराई आत्मतत्त्व की गहराई
    • वीर बालक
    • उपभोगार्थी-उपयोगार्थी
    • नारी को स्वतंत्रता मिले, साथ ही दिशा भी
    • ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं
    • सिडनी केस- फ्रैंक कुक तक
    • गुरुदेव के उपकार की स्थूल निशानी है
    • पेट या मालगाड़ी का इंजन
    • श्री आद्य शंकराचार्य के कुण्डलिनी अनुभव
    • संघर्ष, प्रलय, महासंघर्ष और फिर एक नया युग
    • जेन-एडम्स
    • अपनों से अपनी बात
    • सुख के छलावे— लक्ष दुख में याद आवें
    • हृदय का हिमालय पिघलने लगा
    • हृदय का हिमालय पिघलने लगा (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1971 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


चींटियों की चतुराई आत्मतत्त्व की गहराई

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 24 26 Last
सुप्रसिद्ध जीवशास्त्री बेल्ट एक बार चींटियों के सामाजिक जीवन का अध्ययन कर रहे थे। एकाएक मस्तिष्क में कौतूहल जागृत हुआ— यदि इन चींटियों को मकान छोड़ने को विवश किया जाए, तब यह क्या करेंगी। बेट्स चींटियों की बुद्धि की गहराई और उसकी सूक्ष्मता की माप करना चाहते थे, अतएव चींटियों के एक बिल के पास ऐसा वातावरण उपस्थित किया, जिससे चींटियाँ आतंकित हों। पास की जमीन थपथपाना, पानी छिड़कना विचित्र शोर करना आदि। चींटियों ने उसी तरह परिस्थिति को गम्भीर माना जिस तरह अतिवृष्टि, अनावृष्टि, तूफान, समुद्री उफान जैसे प्राकृतिक कौतुक मनुष्य को डराने-धमकाने और ठीक -ठिकाने लाने के लिए बड़ी शक्तियाँ करती हैं और मनुष्य उनसे डर जाता है।

जिस स्थान पर बिल था, आधा फुट पास ही वहाँ एक छोटी सी ढाल थी। सर्वेयर चींटियाँ चटपट बाहर निकलीं और उस क्षेत्र में घूमकर तय किया कि ढलान के नीचे का स्थान सुरक्षित है। उनके लौटकर भीतर बिल में जाते ही मजदूर गण सामान लेकर भीतर से निकलने लगे। बाहर आकर चींटियों ने दो दल बनाए। एक दल अपनी महारानी को लेकर नीचे उतर गया और खोजे हुए नए स्थान पर पहुँचाकर बिल के बाहर पंक्तिबद्ध खड़ा हो गया, मानो वे सब किसी विशेष काम की तैयारी करने वाले हों।

सामान ज्यादा हो और दूरी की यात्रा हो तो मनुष्य बैलगाड़ी, रेल, मोटर और हवाई जहाज का सहारा लेते हैं। माना कि चींटियों के पास इस तरह के वाहन नहीं हों। यह भी संभव है कि वे आदिमयुग के पुरुषों की तरह समझदार हों और यांत्रिक जीवन की अपेक्षा प्राकृतिक जीवन बेहतर मानती हों; अतएव उन्होंने वाहन न रचे हों, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनमें परिस्थितियों के विश्लेषण और तद्नुरूप क्रिया की क्षमता नहीं होती। चींटियों का जो दूसरा दल ऊपर था, समय और बोझ से बचने के लिए ऊपर से सामान लुढ़काना प्रारम्भ किया। नीचे वाली चींटियाँ उसे संभालती जा रही थीं और बिल के अंदर पहुँचा रही थीं। ऐसा लगता था जैसे बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में हैलिकाप्टर से अन्न के बोरे गिराए जा रहे हों।

यह घटना यह बताती है कि बौद्धिक दृष्टि से नन्ही सी चींटी मनुष्य से कम नहीं। नन्हें-नन्हें जीवों में सूक्ष्मज्ञान की यह क्षमता जहाँ यह बताती है कि आत्म तत्त्व वह चाहे कितना ही लघु और चाहे कितना ही विराट क्यों न हो, आत्मिक गुणों की दृष्टि से एक ही है। फिर मनुष्य को अपने आपको संसार के सबसे अधिक बुद्धिमान होने का अहंकार नहीं करना चाहिए।

मनुष्य जाति जैसे आचार-विचार और रहन-सहन छोटी-छोटी पिपीलिकाओं में देखकर स्वभावतः आश्चर्य होता है। जीव-जन्तुओं की 'हीमेनोटेरा' शाखा में जिसमें बर्र, ततैया और मक्खियाँ भी पाई जाती हैं, चींटी उसी प्रकार सबसे ज्यादा समझदार है जिस तरह विश्व की समस्त जातियों में भारतीयों का आत्म-ज्ञान, संगठन, सूझ बूझ, विचार-शक्ति और अन्तःप्रेरणा के साथ-साथ कर्तव्यपालन की मर्यादा परस्पर हित-अहित का ध्यान जितना यह चींटियाँ रखती हैं उतना ही मनुष्य भी रखता होता, तो वह दुनिया का सबसे अधिक सुखी प्राणी होता। आज की तरह अशिक्षा, जनसंख्या, बेकारी, अपराध आदि समस्याओं में वह फिरता नहीं। माना कि चींटियों को भगवान ने 'वाक् शक्ति' नहीं दिया। तदपि उनके सिर में पाये जाने वाले तंतु इतने सजग होते हैं कि एक दूसरे के सिर का स्पर्श करते ही उसके विचार वे आसानी से ग्रहण कर लेती हैं। परावाणी का ज्ञान भारतीयों ने सम्भवतः चींटियों से ही प्राप्त किया और ऐसी योग साधनायें विकसित कर डालीं, जो मस्तिष्क के ज्ञानतन्तुओं को इतना सजग कर देती हैं कि किसी के भी मन की, अन्तःकरण की भावलहरियों को आकाश के माध्यम से ही पकड़ा जा सके, भले ही कोई मुँह से कुछ बताए या नहीं।

यह तो है कि स्वार्थ और अहंकारवश यह चींटियाँ भी लूटमार करती हैं। पड़ोसी चींटियों की कालोनियों पर आक्रमण करके सामान छीन ले जाती हैं, पर उसमें भी उनका अनुशासन और नैतिकता मनुष्यों से बढ़कर होती है। जीवशास्त्री डॉ. डगलस ने अफ्रीका के जंगलों में हुए चींटियों के युद्ध का बड़ा रोचक वर्णन किया है और लिखा है कि महायुद्ध जैसा ये हमला चींटियों के दो दलों में 17 दिन तक चला। प्रतिदिन प्रातःकाल से आक्रमण प्रारम्भ होता और सायंकाल को जाकर युद्ध विराम होता। जिस तरह मनुष्य के युद्ध में संचार, निर्माण, सप्लाई, एम्युनिशन आदि अलग-अलग विभाग काम करते हैं उसी प्रकार चींटियों के दोनों दलों में रसद पहुँचाने वाले अलग, निर्माण कार्य वाले अलग, संदेश लाने ले जाने वाले अलग-अलग विभाग काम कर रहे थे। लड़ने वाली चींटियाँ सेंग्विन कहलाती हैं। और तो और रात में उनका जासूसी विभाग भी सक्रिय रहता। अनेक दुश्मन चींटियाँ बंदी बनाई जाती हैं और उनके साथ ठीक कैदियों जैसा व्यवहार होता है। लूट में एक दूसरे का माल मिलता वह जमा किया जाता। जब तक एक दल की चींटियाँ और उनकी रानी मार नहीं डाली गईं तब तक युद्ध अविराम चलता रहा और फिर जीते पक्ष की चींटियों का विजयोल्लास देखते ही बनता था। खूब शराब पी गई, दुम हिला-हिलाकर चींटियाँ नाची कूदीं। यह उत्सव कई दिन तक चलता रहा। अविजित चींटियाँ जो बचीं दास बनाकर रखी गईं और उन्हें मजदूरी का काम सौंपा गया। मनुष्य जाति में भी तो सब कुछ इसी प्रकार का चलता है, यदि मनुष्य आत्मतत्त्व को नहीं पहचानता और सामान्य प्राकृतिक जीवों की भाँति स्वयं भी जिंदगी जीता है, तो उसे भी जीव-जंतुओं का एक वर्ग ही माना जाएगा।

ऊपर 'शराब' शब्द का प्रयोग किया गया है, सो यों ही निरर्थक में नहीं। मनुष्य जाति अपने मद्यपान की बुराई को संभव है यों समझ न पाती हो कि उसकी बुद्धि अपने दोष को दोष नहीं विशेषण मानती है। संभवतः आज इसीलिए शराब सभ्यता का प्रतीक मानी जाने लगी है, किन्तु उससे होने वाली बीमारियाँ, जातीय समर्थता का विनाश, आर्थिक अपव्यय, बौद्धिक क्षमता का नाश और फिर वंशानुगत कुसंस्कारों की जड़ें आदि ऐसी भयंकर हानियाँ हैं, जिन पर लोग गौर नहीं करते। चींटियाँ भी कई बार ऐसी बेवकूफी करती हैं। उसका मूल्य कितना भयंकर चुकाना पड़ता है, यह कभी मनुष्य को पता चले तो एक बार तो वह भी शराब पीने से डरे बिना रहे नहीं।

चींटियों के लिए शराब की ठेकेदारी एक प्रकार का 'भुनगा' करता है। शैतान किस प्रकार क्षणिक सुख और उत्तेजना की मृगतृष्णा में फँसाकर मनुष्य को शराब पिलाता है, उसका रोचक उदाहरण देखना हो, तो चींटियों के पास पड़ोस में रहने वाले इस सुनहरे रंग के भुनगे को ढूँढ़ना पड़ेगा। इसके शरीर में सुनहरे बालों के गुच्छे होते हैं, उनमें से एक विशेष प्रकार का खुशबूदार द्रव्य निकलता है। भुनगा पहले तो एक प्रकार की मनमोहक विशेष संगीत ध्वनि करता है। कर्णेन्द्रिय की तृष्णा चींटियों को उधर खींच ले जाती हैं। झुण्ड की झुण्ड चींटियाँ उसके पीछे चल देती हैं। भुनगा बीन बजाता आगे बढ़ता है सम्मोहित चींटियाँ पीछे-पीछे। अब भुनगा अपने शरीर से वह मादक पदार्थ निकालता है, जिसे अपनी प्यारी शराब मानकर चींटियाँ पीने लगती हैं और पी-पीकर झूमने लगतीं हैं। सिर पर सवार शैतान उचित-अनुचित सोचने नहीं देता, उसी प्रकार चींटियाँ भी होश-हवाश खोकर पीती हैं और इतना अधिक तक पीती हैं कि बेहोश हो जाती हैं। अब भुनगा उनको इस प्रकार शिकार बनाता है जैसे बीमारियाँ शराबी मनुष्य के शरीर को। इस दृष्टि से मनुष्य भी चींटियों जैसा मूर्ख प्राणी कहा जाए तो कुछ अत्युक्ति नहीं। चींटियों में तो भी ऐसा होता है उनकी समझदार रानी शराबी चींटियों को उस शरारती भुनगे के इन्द्रजाल में न फँसने की चेतावनी देती रहती हैं। पर मनुष्य समाज में ऐसे समझदार और सेवा भावी लोग कहाँ, जो मनुष्य को इस बुरी लत से बचा ले।

कई भुनगे शिकारी नहीं होते, वे चींटियों को ऐसे ही शराब पिलाते रहते हैं, पर उससे भी चींटियों में उच्छृंखलता, कर्त्तव्यविमुखता, क्रूरता ऐसी ही पैदा होती है जैसे किसी भी शराबी मनुष्य में। ऐसी शराबी चींटियाँ तक जब अपने दल में बुरी मानी जाती हैं तो शराबी मनुष्य को यदि बुरा कहा जाए, तो उसमें क्या आश्चर्य ?

मनुष्यों की दुनिया बड़ी विचित्र है। चींटियों की भी उससे कम नहीं। मनुष्य के हर काम में समझदारी दिखाई देती है किन्तु यदि ध्यान से देखा जाए तो चींटियों का रहन-सहन उनसे भी अधिक समझदारी का दिखेगा। यह विधिवत् घर बनाकर रहती हैं। कहते हैं एम्पायर स्टेट बिल्डिंग संसार की सबसे बड़ी आठ सौ से अधिक कमरों वाली इमारत है, पर चींटियों का हर किला ऐसा ही विशाल होता है। स्थापत्य कला में चींटियाँ मनुष्य से थोड़ा ही पीछे हैं। पानी निकालने और वर्षा के दिनों में बिल के अंदर पानी से सुरक्षित रहने के लिए यह बढ़िया घर बनाती हैं।

पौष्टिक आहार की आवश्यकता को यह अच्छी तरह समझती हैं सो वन की पत्तियाँ इकट्ठी करने से लेकर कुछ चींटियों का दूध निकालकर पीने-पिलाने का चींटियों को विलक्षण ज्ञान होता है। मनुष्य को पशुपालन-कुशलता पर गर्व हो सकता है, पर चींटियों में और मनुष्यों में इस दृष्टि से ज्यादा अन्तर नहीं। दूध (हनीड्यू) देने वाली चींटियों गायों की तरह सफेद होती है। उनकी सुरक्षा और विकास के लिए चींटियाँ विशेष व्यवस्था रखती हैं। उन पर सन्तरी तैनात होते हैं जो बिलकुल चरवाहों जैसा काम करते हैं। कृषक चींटियाँ खेती करती हैं, भंगी सफाई, सिपाही रक्षा और चौकीदारी का काम करते हैं तो शिल्पकार चींटियाँ घर आदि बनाने का। इतना होने पर भी वे एक कुटुंब के सदस्यों की भाँति ऊँच-नीच और छूत-अछूत का भेदभाव किए बिना संगठित जीवनयापन करती हैं। आलसी और अकर्मण्य तो अपने बच्चे को भी अच्छे नहीं लगते, सो चींटियों के यहाँ भी आलसी नर अधिकांश मार ही डाले जाते हैं। मनुष्य समाज में ऐसे लोग अपनी अभावजन्य स्थिति के कारण नष्ट होते हैं।

कहते हैं चींटियों से हाथी भी डरते हैं। यह बात सच है उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली पैरासोल चींटियाँ क्रोध के समय बड़ी भयंकर और हाथी को भी मार डालने वाली होती हैं, पर इन्हीं चींटियों की विशेषता है कि वे बागवानी का भी शौक रखती हैं और अपने उपयुक्त बढ़िया फलों और छाया वाले पौधों का   विधिवत् पालन-पोषण करती हैं।

चींटियों का जीवन-व्यापार और मनुष्य जाति का जीवन-व्यापार एक स्थान पर लिखकर तुलना करते हैं तो लगता है कि शरीर के आकार-प्रकार में अन्तर होने पर भी मानसिक और बौद्धिक क्षमताएँ एक ही तत्त्व के गुण प्रतीत होते हैं। शास्त्राकार का यह कथन है कि जीव, मात्र आत्मा के टुकड़े हैं, गलत नहीं है। यदि मनुष्येत्तर दुनिया का सूक्ष्म अध्ययन करें तो पता चलेगा कि आत्मचेतना ही है जो कहीं तो विराट सूर्य के रूप में अपनी सृष्टि के साथ क्रीड़ा करती है तो वही कहीं मनुष्य बन जाती है, कहीं चींटी और दीमक। जीवमात्र में एक ही आत्मा देखने और जानने वाला ही सच्चा योगी, पंडित और ज्ञानी हो सकता है।

First 24 26 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • महाशून्य की यात्रा
  • काकवृत्ति बनाम हंसवृत्ति
  • अपने को जानें, भवबंधनों से छूटें
  • नियमों के पालन से आत्मसंयम और अनुशासन की शिक्षा मिलती है
  • सद्वाक्य
  • आश्चर्यों से भरी ईश्वरीय सत्ता
  • स्वामी रामतीर्थ
  • Quotation
  • बौद्धिक क्षमता का भण्डागार ऋतम्भरा का क्रिया-व्यापार
  • अत्याचारी शासक एक चीते से अधिक भयंकर होता है
  • Quotation
  • सच्ची सेवकाई
  • प्रेम का आरंभ होता है, अंत नहीं
  • Quotation
  • जीव ब्रह्म कैसे बनता है ?
  • स्वप्न-दर्पण अतींद्रिय जगत के प्रतिबिंब
  • बुढ़िया की सीख
  • विचार शक्ति (मंत्र शक्ति) द्वारा पदार्थ का हस्तान्तरण
  • अपराधों के पश्चाताप
  • पाण्डित्य से बड़ा चरित्र
  • सदाचरण ही कल्याण का एकमात्र मार्ग
  • Quotation
  • 300 वर्ष आयु के श्री तैलंग स्वामी
  • Quotation
  • चींटियों की चतुराई आत्मतत्त्व की गहराई
  • वीर बालक
  • उपभोगार्थी-उपयोगार्थी
  • नारी को स्वतंत्रता मिले, साथ ही दिशा भी
  • ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं
  • सिडनी केस- फ्रैंक कुक तक
  • गुरुदेव के उपकार की स्थूल निशानी है
  • पेट या मालगाड़ी का इंजन
  • श्री आद्य शंकराचार्य के कुण्डलिनी अनुभव
  • संघर्ष, प्रलय, महासंघर्ष और फिर एक नया युग
  • जेन-एडम्स
  • अपनों से अपनी बात
  • सुख के छलावे— लक्ष दुख में याद आवें
  • हृदय का हिमालय पिघलने लगा
  • हृदय का हिमालय पिघलने लगा (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj