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Magazine - Year 1971 - Version 2

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संघर्ष, प्रलय, महासंघर्ष और फिर एक नया युग

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'प्रकृति को इतना क्रुद्ध पहले कभी नहीं देखा गया होगा जितना वह 20 वीं शताब्दी के अंत में देखी जाएगी। जल के स्थान पर पृथ्वी, पृथ्वी के स्थान पर जल, प्रलय जैसी स्थिति के बाद दुनिया में थोड़े से अच्छे लोग संसार को अच्छा बनाएंगे।

युग बदलने वाली शक्ति न तो राजसत्ता होगी और न कोई वाद, वह होगी मानवीय अन्तःकरण को छूने वाली—भाव-वृत्ति।'   —नौस्ट्राडम

फ्रांस के मिलन नगर की बात है और घटना सन् १५१५ की है, जब एक रास्ते से कई पादरी गुजर रहे थे। बारह वर्ष का एक लड़का उनके पास आया। दूसरे लोग तो उन पादरियों में जो सबसे बड़ा था और आगे-आगे चल रहा था, उसको झुककर प्रणाम करते थे, किन्तु यह छोटा सा बच्चा उन पादरियों की मंडली के बीच में घुस गया और उनमें से एक तरुण संन्यासी के पैरों में लोट गया।

लोगों को आश्चर्य हुआ कि बच्चे ने एक साधारण पादरी को शीश झुकाया, जबकि अन्य उससे बड़े थे उन्हें प्रणाम क्यों नहीं किया? एक व्यक्ति ने प्रश्न किया—"बेटा ! इन महात्मा जी (पादरी) में क्या विशेषता देखी, जो बाकी सबको छोड़कर इन्हें प्रणाम किया।" बच्चे ने बहुत सरल किन्तु दृढ़ वाणी में उत्तर दिया-”आप लोग नहीं जानते,यह तो हमारे होने वाले 'पोप' महोदय हैं।

लोग हँस पड़े। हँसना ठीक भी था। उस युवक में विशिष्टता का एक भी तो लक्षण ऐसा नहीं था, जिसके आधार पर संभावना की जाती कि वह महाशय पोप बनेंगे।किन्तु सन् 1585 में जब फेली पेरेत्ती नामक यही युवक पोप चुना गया तो लोग आश्चर्यचकित रह गए और कहने लगे उस बच्चे ने इस अनिवार्य संभावना को कैसे जान लिया था?

यह बालक कोई सामान्य बालक नहीं था, वरन् अपने बल रूप में फ्रांस के सुप्रसिद्ध ज्योतिष नोस्ट्राडम थे, जिन्होंने 16 वीं शताब्दी में 20 वीं शताब्दी तक की लगभग 1000 भविष्यवाणियाँ की हैं। उनकी भविष्यवाणियाँ पिछले पाँच सौ वर्षों से सारे संसार को प्रभावित करती रही हैं, पर अब जबकि एक शताब्दी पुरानी होकर दूसरी नई शताब्दी आ रही है, तब उनकी भविष्यवाणियों का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में उन्हीं के अतीन्द्रिय पूर्वाभासों पर प्रकाश डाला जा रहा है।

नौस्ट्राडम का जन्म फ्रांस के सेंट रेमी नामक स्थान में 13 दिसम्बर 1503 में हुआ। यह तो होता है कि किसी में पूर्वजन्मों से मिले विरासत—संस्कार किसी विशेषता के रूप में प्राप्त हो जाते हैं, पर उनकी पूर्णता और परिपक्वता के लिए इस जीवन में भी सीमित विशेषताओं का परिष्कार और अभिवर्धन करना पड़ता है। नौस्ट्राडम में भूत और भविष्य को देखने की क्षमता बाल्यकाल से ही संस्काररूप में थी। उन्होंने ईश्वर भजन द्वारा आत्मा को निर्मल बनाकर विविध साधनाओं और स्वाध्याय द्वारा अपनी इस क्षमता का और भी अधिक विकास किया। उन्होंने ज्योतिर्विज्ञान पढ़ा, दर्शन पढ़ा और संसार की परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त किया और इस तरह उनकी प्रतिभा और भी चमकती चली गई। वे उस युग के मूर्धन्य ज्योतिषी और अतीन्द्रिय दृष्टा माने जाने लगे।

उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि 20 वीं शताब्दी में जर्मनी में एक ऐसे तानाशाह का प्रादुर्भाव होगा जो सारे योरोप में प्रलयंकारी ताण्डव दृश्य उपस्थित कर देगा। इसका नाम 'हिस्टर' होगा और सचमुच ही कुल एक अक्षर के अन्तर से 'हिटलर' का प्रादुर्भाव जर्मनी में इसी रूप में हुआ। इसी प्रकार की उनकी दूसरी भविष्यवाणी थी कोर्सिका (फ्रांस) में जन्म लेने वाले एक वीर सिपाही की, जिसके बारे में उन्होंने कहा था—"यह व्यक्ति एक अद्वितीय इतिहासकार होगा। सिपाही से उन्नति करते हुए वह 25 वर्ष की आयु में ही सम्राट बन जाएगा। इसकी वीरता के सम्मुख अंग्रेज काँप जाएँगे, पर एक दिन वह गिरफ्तार हो जाएगा और उसका पतन हो जाएगा।" इसका नाम उन्होंने 'नैपोलियन' ही बताया था और सचमुच नैपोलियन बोनापार्ट ऐसा ही हुआ जैसा कि नौस्ट्राडम ने भविष्यवाणी की थी। उनकी भविष्यवाणियों का विस्तृत उल्लेख 'माइकेल डी नौस्ट्राडम की शताब्दियाँ-और सच्ची भविष्यवाणियाँ'—(सेन्च्युरीज एण्ड ट्रू प्रोफेसीज आँफ दि माइकेल डी. नौस्ट्राडम) पुस्तक में मिलती हैं। 'दि न्यूज रिव्यू' नामक पत्रिका समय-समय पर इन भविष्यवाणियों को छापती और उनकी सत्यता का प्रतिपादन करती रहती है।

20 वीं शताब्दी का सर्वाधिक उल्लेख करने वाले इस महान भविष्य दृष्टा ने लिखा है—”20 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विज्ञान का विकास इतना अधिक हो जाएगा कि अधिकांश-सारी दुनिया नास्तिक हो जाएगी। सामाजिक आचार-विचार भू-कुंठित हो जाएँगे। चरित्र नाम की कोई वस्तु नहीं रह जाएगी। फैशन की धूम मचेगी। घरों में लोग नाम मात्र को रहने वाले रह जाएँगे। अधिकांश लोग इधर-उधर घूमने और गलियों में भोजन करने वाले हो जाएँगे। इन परिस्थितियों में अपनी तरह का 'एक' विश्व विख्यात व्यक्ति किसी महान धर्मनिष्ठ पूर्वी देश में जन्म लेगा। यह व्यक्ति अकेला ही अपने छोटे-छोटे सहयोगियों के द्वारा सारे संसार में तहलका मचा देगा। यह ऐतिहासिक महापुरुष एक ऐसे महासंघर्ष को जन्म देगा कि घर-घर और नगर-नगर अन्तर्द्वन्द्व छिड़ जाएगा। इस अन्तःक्रांति का समय 20 वीं शताब्दी के अंत और 21 वीं शताब्दी के प्रारम्भ का है। उसके बाद संसार में सर्वत्र मानवता का आधिपत्य होगा। लोग आसुरी वृत्तियों का परित्याग कर देंगे और संसार स्वर्गतुल्य सुखमय बन जाएगा।”

नौस्ट्राडम की यह भविष्य वाणी भी सच होकर रहेगी इसके प्रमाण (1) एकबार उन्होंने भविष्यवाणी की—तीन महीने के बाद फ्रांस में भयंकर प्लेग फैलेगा, जिसमें लाखों लोगों की मृत्यु होगी। तीन माह तक एक भी ऐसी घटना नहीं घटी। 91 वें दिन पहली बार पेरिस में प्लेग होने की छोटी-सी सूचना मिली। उसके बाद ही इस महामारी ने इतना जोर पकड़ा कि सारे फ्रांस में तहलका मच गया और इस तहलके के साथ ही नौस्ट्राडम की प्रसिद्धि सारे योरोप में फैल गई।

(2) प्लेग समाप्त हो चला तब उनसे किसी ने पूछा—"अगली बड़ी घटना क्या होगी।" ”सम्राट की मृत्यु”— उन्होंने कहा। लुई को सिंहासनारूढ़ हुए मुश्किल से 3 या 4 वर्ष हुए थे। उनका शरीर स्वास्थ्य भी अच्छा था। एक ही माह के अंदर साधारण सी 'मधुमेह' की बीमारी के कारण उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई; जबकि इस बात की कतई संभावना नहीं थी।

(3) इसके बाद उन्होंने फ्राँस की 'मेजीनाट लाइन' के नष्ट होने की भविष्यवाणी की, जो सत्य हुई।

(4) जर्मनी के विभक्त होने की भविष्यवाणी सत्य हुई। अमरीका के एक के बाद एक कई राष्ट्रपति मारे गए। इसकी चेतावनी नौस्ट्राडम बहुत पहले ही दे गए थे।

20 वीं शताब्दी के बारे में उनका कहना था कि “प्रकृति को इतना क्रुद्ध पहले कभी नहीं देखा गया होगा, जितना वह 20 वीं शताब्दी के अन्त में देखी जाएगी। जल के स्थान पर पृथ्वी, और पृथ्वी के स्थान पर जल, प्रलय जैसी स्थिति बनकर सामने आवेगी। कहीं अतिवृष्टि कहीं अनावृष्टि, कई ज्वालामुखी और स्थान-स्थान पर सैनिक-क्रांतियाँ होंगी।

तब संसार को बदलने वाली एक अद्भुत शक्ति सक्रिय होगी। वह न तो किसी देश की राजसत्ता होगी न कोई वाद या पंथ होगा, वरन् एक ऐसा व्यक्ति होगा जो अपनी भावनाओं की सौजन्यता द्वारा ही सारे संसार को एकता के सूत्र में बाँध देगा। उसके बाद दुनिया में इस तरह का अमन स्थापित होगा, जितना आज तक संसार में कभी भी देखा-पाया न गया होगा।

इतिहास के इस अद्वितीय महापुरुष के बारे में नौस्ट्राडम ने भी कुछ संकेत दिए हैं, जैसे उसके मस्तक पर चन्द्रमा और पाँव में पद्म होगा होगा। वेषभूषा बहुत ही सादी होगी। दो विवाह होंगे, दो पुत्र होंगे, दो ही पुत्रियाँ होंगी-और दो बार ही वह स्थान-परिवर्तन करेगा। दोनों बार अपने निवास से उत्तर दिशा की ओर ही स्थान-परिवर्तन करेगा।

सन् 1566 के जुलाई मास में, सबसे अधिक भविष्यवाणियाँ करने वाला यह प्रसिद्ध भविष्यदृष्टा, एक दिन शाम को अपने कमरे में बैठा कुछ सोच रहा था। एकाएक कुछ सोचकर उसने घर के सभी लोगों को बुलाया और कहा—" देखो जी ! आज की रात मेरे जीवन की अन्तिम रात है। मैं सवेरा नहीं देख पाऊँगा पर तुम लोग मेरी मृत्यु पर दुख न करना। मैं भगवान् के काम में हाथ बँटाने के लिए जा रहा हूँ। धरती पर फिर से आऊँगा, सम्भव है तब तुम लोगों में से कोई मेरा सहयोगी—सम्बन्धी हो या नहीं पर भगवान् का घर तो सारा संसार है। मैं उनकी सहायता कर रहा होऊँगा, इसलिये मेरी मृत्यु को सब लोग शुभ मानना।

कोई खाँसी नहीं कोई बुखार नहीं। नौस्ट्राडम के इस कथन ने सबको विस्मित तो किया, पर लोगों को विश्वास नहीं हुआ। नौस्ट्राडम प्रतिदिन की भाँति ही सोए, पर जो जीवन औरों के लिए भविष्यवाणियाँ करता रहा, अपने प्रति की गई उसकी भविष्यवाणी भी गलत कैसे होती। उस रात सोने के बाद उनकी नींद सचमुच टूटी ही नहीं। भोर की प्रतीक्षा करते हुए उन्होंने इस संसार से विदा ली, वह अब आया है। पता नहीं युगनिर्माताओं की किस श्रेणी में चुप-चाप महाकाल के युग प्रत्यावर्तन  में (उनकी आत्मा) महाकार्य में सहयोग कर रही हो, योगदान दे रही हो।


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