
Quotation
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मन्त्र के प्रभाव व प्रेरणा से मनुष्य का जीवन तदनुरूप अपने आप बनता है।
-विनोबा
यह क्षेत्र भावना भूमि है। साधक की भावनाओं में श्रद्धा, विश्वास, भक्ति और तन्मयता का गहरा पुट होना चाहिए। अविश्वासी, व्यग्र, अश्रद्धालु, भावना रहित ऐसे ही उद्धत मन से बेगार टालने की तरह उपेक्षापूर्वक उपासना की जाय तो समझना चाहिए कि साधना का एक महत्वपूर्ण अंग छूट गया। ऐसी दशा में सफलता भी संदिग्ध रहेगी।
ऊपर शब्द शक्ति के अतिरिक्त मन्त्र विद्या का दूसरा आधार साधक का व्यक्तित्व बताया गया है। यदि स्थूल शरीर से निर्धारित कर्मकाण्ड सूक्ष्म शरीर में सद्विचार और सदाचरण, कारण शरीर से भाव भरी श्रद्धा तन्मयता का त्रिविधि समावेश किया जा सके तो साधना के उपयुक्त व्यक्तित्व तैयार हो गया और उसका अभीष्ट परिणाम निश्चित रूप से होकर रहेगा।
बढ़िया बन्दूक में- बढ़िया किस्म का कारतूस लगाकर ही कुशल निशानेबाज लक्ष्य बेध कर सकता है। मन्त्र विद्या की स्थिति भी यही है। अन्तःकरण की भावनायें, मस्तिष्क की नीति निष्ठायें, शरीर की विधि-व्यवस्थायें मिलकर साधना के उपयुक्त व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। उसे बढ़िया बन्दूक कह सकते हैं। शब्द शास्त्र के अनुरूप तत्व ज्ञानियों द्वारा सृजन किया हुआ अनुभूत मन्त्र बढ़िया कारतूस है। इसे यदि मन्त्र साधक विश्वास और तत्परता के साथ प्रयोग कर सके तो असफलता का कोई कारण नहीं। मन्त्र शक्ति-यन्त्र शक्ति की तरह ही सुनिश्चित विज्ञान के आधार पर विनिर्मित है उसका ठीक तरह प्रयोग किया जा सके तो असफलता का कोई कारण नहीं है।
अध्यात्म शब्द विद्या को मन्त्र विद्या को तत्व ज्ञानियों ने ‘वाक्’ कहा है। यह वाक् अध्यात्म शक्तिशाली और महत्वपूर्ण है। इसकी विवेचना करते हुए शास्त्रकारों ने कहा है -
प्रावीविपद्वाच ऊर्मि न सिन्धुः।
-ऋग् 9/96/7
जिस प्रकार समुद्र से तरंगें उठती हैं उसी प्रकार वाक् की तरंगें भी कंपन के सहित गति करती हैं।
प्रजापतिर्वा इदमेक आधीतस्य वागेव स्तमासीत् वाग द्वितीया स एक्षते मामेव वाच विसृजा। इयं वा इदं सर्वं विभवव्त्येष्यतीति।
-ताण्डय ब्रा. 20/14/2
प्रजापति अकेले थे। उनके अतिरिक्त वाक् ही उनकी अपनी सम्पत्ति थी। उनने इच्छा की कि मैं इस वाक् का सर्जन करूं। यह वाक् ही सब कुछ हो जायगी।
तद्यत किञ्चार्वाचीनं ब्रह्मणस्तद् वागेव सर्वम्।
-जै. उ. 1/13/1/3
ब्रह्म के पश्चात जो कुछ हे सो वाक् ही है।
वाग् वै त्वष्टा।
ऐत. 2/4
वाक् ही त्वष्टा देवता है।
वाक् वैविश्वकर्मर्षिः वाचाहीद सर्वं कृतम्।
-शतपथ 8/1/2/1
यह वाक् ही विश्वकर्मा ऋषि है। इसी से यह सारा संसार रचा गया।
यो वै ताँ वाचं वेद यस्मा एव विकारः स सम्प्रतिविदकारी वै सर्वा वाक्।
-ऐ.ब्रा. 2/3/6
जो उस आदिमूल वाक् को जानता है वह सम्पतिविद् सिद्ध पुरुष कहलाता है।
मन्त्र विद्या की महान् सामर्थ्य को यदि ठीक तरह समझा जा सके और उसका समुचित प्रयोग किया जा सके तो यह आध्यात्मिक प्रयास किसी भी भौतिक उन्नति के प्रयास के कम महत्वपूर्ण और कम लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकता।