Magazine - Year 1978 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
जीवन ईश्वर का स्वरूप एवं वरदान
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
जीवन ईश्वर है या ईश्वर जीवन, इस प्रश्न पर ताओ धर्म के दार्शनिक बहुत समय तक विचार करते रहे और अन्ततः वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि जीवन मनुष्य के लिए ईश्वर का सर्वोपरि उपहार है। इसकी गरिमा इतनी बड़ी है जितनी इस संसार में अन्य किसी सत्ता की नहीं। इसलिए उसे ईश्वर के समतुल्य माना जाय तो इसमें कुछ भी अत्युक्ति न होगी।
ईश्वर की झाँकी जीवन सत्ता की संरचना और संभावना को देखकर की जा सकती है। यदि उसकी ठीक तरह उपासना की जा सके तो वे सभी वरदान उपलब्ध हो सकते हैं जो ईश्वर के अनुग्रह से किसी को कभी मिल सके हैं। यह प्रत्यक्ष देवता है। हमारे इतना समीप है कि मिलन से उत्पन्न असीम आनन्द की अनुभूति अहर्निशि की जा सके।
जीवन का उद्देश्य है, अपने अन्तराल में छिपे दिव्य का, अद्भुत का, सुन्दर का, दर्शन कराना। उस ईश्वरीय जीवन के साथ जोड़ देना जो इस ब्रह्माण्ड की आत्मा है। पूर्ण है और वह सब है जिसमें मानवी कल्पना से भी कहीं अधिक सौन्दर्य का- सुखद का- सागर लहराता है।
ईश्वर को समझना हो तो जीवन को समझो। ईश्वर को पाना हो तो जीवन को प्राप्त करो। हम जीवन रहित जिन्दगी जीते हैं। इससे आगे बढ़ें, गहरे घुसें, निर्मल करें और उस महान अवतरण को प्रतिबिम्बित करें जो प्रेम के रूप में आत्म सत्ता के अन्तराल में आलोक की एक किस्म जैसा विद्यमान है। आत्मा को दिव्य से ओत-प्रोत करने की साधना से ही वह सब प्राप्त हो सकता है, जिसे जीवन का लक्ष्य और वरदान कहा गया है।
-सन्त टी. एल. वास्वानी
----***----