Magazine - Year 1982 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
सृजन चेतना की समर्थता और गरिमा
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
ध्वंस सरल है, सृजन कठिन। पतन सहज है, उत्थान कष्टसाध्य। उथली बालक्रीड़ा कोई भी कर सकता है, पर समुद्र की गहराई में उतरकर मोती बटोरना किन्हीं साहसी गोताखोरों द्वारा बन पड़ता है। वातावरण में अवांछनीयता का समावेश करने में उथले लोग भी बहुत कुछ कर गुजरे हैं। विषैली घुटन उत्पन्न करने में कूड़े-करकट की छोटी ढेरी भी तनिक-सी चिनगारी का सहयोग पाकर सहज समर्थ हो सकती है, किंतु वातावरण में शांति-शीतलता भरने की बात तो अंतरिक्ष में व्याप्त बादल सोचते और कर गुजरते हैं। धरती की उर्वरता वर्षा के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई है। मानवी गरिमा को अक्षुण्ण और प्रखर बनाए रखने में युगमनीषा ही पावस की भूमिका निभाती है। सुखद संभावनाओं का फला-फूला माहौल बनाने और वातावरण को नयनाभिराम— उल्लासमय बनाने में बसंत का अवतरण ही सफल होता है।
कभी कार्तिक अमावस्या को तमिस्रा से छुटकारा दिलाने के लिए गुहार की गई थी। सूरज, चंद्रमा ने समर्थ होते हुए भी उसे अनसुनी कर दिया। तब छोटे दीपकों ने अपनी तुच्छता का संकोच न करते हुए अंधकार से जूझने का संकल्प प्राण हथेली पर रखकर किया था। दीपपर्व उसी आदर्शवादी— बलिदानी साहसिकता को अनंतकाल तक जीवंत रखने वाला और अनुकरण की प्रेरणा देने वाली स्मारक है। सृजनशिल्पियों को कुछ ऐसा ही सोचना और करना होता हैं।