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Magazine - Year 1982 - Version 2

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संयोग कहकर अविज्ञात को झुठलाये नहीं

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आर्थर कोसलर ने एक पुस्तक लिखी है-रु टस आफ काँइन्सीडिन्स’। लेखक ने यह बताने और समझाने की कोशिश की है कि विराट् सृष्टि में सर्वत्र नियम और व्यवस्था का सिद्धान्त काम कर रहा है। ‘संयोग‘ प्रकृति नियमों का एक अपवाद है जो यदा-कदा ही प्रस्तुत होता है। वस्तुतः वह भी किसी न किसी अविज्ञात नियमों द्वारा ही परिचालित है। उन नियमों से अपरिचित होने के कारण ही रहस्यमय घटनाओं को ‘संयोग‘ की संज्ञा दे दी जाती है। अन्यथा सत्य यह है कि सृष्टि के प्रत्येक जड़ चेतन घटकों-लघुतम अणु-परमाणुओं में भी सुव्यवस्था का नियम काम करता दिखायी पड़ता है।

जीवन मरण का गतिचक्र भी उस स्वसंचालित व्यवस्था का एक अंग है। यह गतिचक्र अपने सामान्य क्रम में चलता रहता है तो किसी तरह का तार्किक प्रश्न नहीं खड़ा होता है। प्रकृति के नियमों से सुपरिचित होने तथा घटनाओं के कारण का बोध रहने से सब कुछ स्वाभाविक-सा लगता है। कौतूहल तब उत्पन्न होता है। जब ज्ञात प्रकृति नियमों को तोड़ती हुई ऐसी रहस्यमय घटनाएँ प्रस्तुत होती हैं जिनका कोई कारण समझ में नहीं आता। बुद्धि और उसका आविष्कार विज्ञान दोनों ही उन घटनाओं की विवेचना करने में जब अपनी असमर्थता व्यक्त करता है तो ऐसा प्रतीत होता है कि अदृश्य घटनाओं के कुछ सूत्र ऐसे हो सकते है जो इनकी पकड़ सीमा के बाहर है। मन और बुद्धि के सामान्य स्थूल परतों द्वारा उन घटनाओं को समझ पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव है। इनकी सूक्ष्मत्तर चैतन्य परतों को कुरेदकर ही उन विलक्षण घटनाओं का रहस्योद्घाटन कर सकना सम्भव हो सकता है।

उदाहरणार्थ कितनी ही बार ऐसे अवसर आते है जब मनुष्य का पुरुषार्थ प्रस्तुत संकटों के निवारण में असमर्थ सिद्ध होता है। कहीं से किसी प्रकार कोई सहयोग की सम्भावना नहीं नजर आती। असहाय और असमर्थता की स्थिति में ऐसा लगता है कि जीवन का अन्त सन्निकट है। पर परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष सहयोग की आकस्मिक परिस्थितियाँ ऐसे आ खड़ी होती है जैसे उनके लिए सुनियोजित ढंग से पूर्व तैयारी की गयी हो। मृत्यु के मुख से कितने ही व्यक्ति दैवी सहयोग पाकर बच निकलते है। ऐसी घटनाओं को मात्र संयोग कहकर टाला और सन्तोष नहीं किया जा सकता। समय-समय पर ऐसी कितनी ही घटनाओं के समाचार मिलते रहते हैं जो यह सोचने को बाध्य करती है विराट् सृष्टि में ऐसी कोई समर्थ सत्ता है जिसकी नर ब्रह्माण्ड की प्रत्येक घटनाओं पर है। वह न केवल विश्व का संचालन और सुनियोजित करती है, वरन् आवश्यकता पड़ने पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष माध्यमों द्वारा सहयोग देकर अपनी करुणा का भी परिचय देती है।

इंग्लैण्ड के एक गिरजाघर के विशप-राइटारेवरेण्ड विलियम मैकक्रेट’ हैरिडट का उपर नामक एक जलपोत से 28 यात्रियों तथा कर्मीदल के सदस्यों के साथ समुद्री यात्रा पर निकले। एक दुर्घटना में जहाज ध्वस्त हो गया। निकटतम तलीय प्रदेश से वह स्थान हजारों मील दूर था। जलपोत चालक सहित तीन व्यक्ति यों के अतिरिक्त किसी को तैरना नहीं आता था। पर समुद्र की तूफानी लहरों में उनकी शक्ति भी साथ नहीं दे रही थी। बचने का अन्य कोई उपाय नहीं नजर आ रहा था। असहाय स्थिति में समुद्री तरंगों की थपेड़ों के साथ बहते जा रहे थे। इतने में एक आश्चर्यजनक घटना घटी। एकाएक समुद्र से आग का एक विशाल गोला फूटा की ऊँचाई तक उठ गया। इसके साथ ही एक नया द्वीप पानी से 50 फीट ऊपर उभर आया। बहते हुए सभी व्यक्ति एक-एक करके उस द्वीप पर चढ़ आये। उन्होंने इस नये द्वीप का नाम ‘टाइमली आइलैण्ड’ रखा। तीन दिनों बाद एक दूसरा ब्रिटिश जहाज उन्हें खोजता हुआ पहुँचा। नये द्वीप और सबको सुरक्षित देखकर उन्हें भारी अचरज हुआ। एक स्वर से हर व्यक्ति ने कहा किसी अदृश्य शक्ति ने सहायता न की होती तो मृत्यु सुनिश्चित थी। ब्रिटिश सरकारी रिकार्ड में इस घटना का विस्तृत वर्णन मौजूद है।

उन्नीसवीं सदी के आरम्भ की एक घटना है। ‘सैलीएन’ नामक एक बजनी जहाज ‘हैलीफाक्स’ नोवा स्काटिया में बारमुडा जा रहा था। तूफान के कारण अचानक वह उलट गया। नौ व्यक्ति जहाज पर सवार थे। सभी बहने लगे। अचानक अप्रत्याशित घटना घटी। एक दूसरी समुद्री लहर ने नाव को सीधा कर दिया। एक दूसरी लहर ने बहते हुए सभी यात्रियों को नाव के भीतर उछाल दिया। ऐसा मालूम पड़ता था कि समुद्र की लहरों को कोई शक्ति नियन्त्रित कर रही हो। यह दुर्घटना द्वारा बचाव का कार्य कुछ ही मिनटों में सम्पन्न हुआ। नाव का उलटना, अचानक सीधा हो जाना विपरीत दिशा में बहते यात्रियों को एक साथ नाव के भीतर बिना किसी दुर्घटना के उछाल दिया जाना, इन सभी घटनाओं को मात्र संयोग नहीं कहा जा सकता।

1917 में प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था। जर्मन वायु सेना का लेफ्टिनेण्ट बोहले प्रथम विश्व युद्ध में फ्राँसीसी सीमा के ऊपर निरीक्षण करने के लिए जहाज से उड़ान भर रहा था। अकस्मात् जहाज का इंजन बन्द हो गया। बोहलें तेरह हजार फुट की ऊँचाई से जहाज के बाहर उछल गया। नियन्त्रण के अभाव में जहाज नीचे गिरने लगा। इंजन बन्द हो जाने से चालक रोजेन गार्ड भी कुछ कर सकने में असमर्थ। तभी हवा का एक तीव्र झोंका महसूस हुआ और बोहलें को उसने जहाज के भीतर ला पटका। आश्चर्य यह कि ठीक उसी समय जहाज का इंजिन भी अपने आप चालू हो गया। इस तरह दोनों ही बच गये। बाहर्ले ने एक पत्रकारों की भेंट वार्ता में कहा कि “मुझे पहली बार यह अनुभव हुआ कि अदृश्य जगत में कुछ अदृश्य शक्तियाँ भी काम करती तथा दूसरों को संकट की हालत में सहयोग करती है।”

‘विलीव इट आर नाट’ पुस्तक में ऐसी ही एक और घटना का उल्लेख है। पोर्ट रायल जमैका का लुइस गैल्डी नामक एक व्यक्ति एक भयंकर भूकम्प में जमीन के नीचे दब गया। दिन भर वह असहाय स्थिति में पड़ा रहा, पर एक दूसरा भूकम्प का झटका आया जिससे जमीन पुनः फट गयी। भूकम्प के झटके ने गैल्डी को उछालकर बाहर फेंक दिया। इस तरह उसके जीवन की रक्षा हो गयी।

इसी पुस्तक में एक दूसरी घटना का उल्लेख है। माटसेन्स, फ्राँस की एक 18 माह की बच्ची ‘रिनी निवरनास’ का अपहरण आठ

व्यक्ति यों ने मिलकर कर लिया। एक बड़ी रकम वे बालिका के अभिभावक हड़पना चाहते थे। उसे अपहरणकर्ताओं ने एक समुद्री नौका पर रखा। लड़की के अभिभावक को एक निश्चित धनराशि लेकर पहुँचने की सूचना दी। सूचना के साथ यह धमकी भी दी गयी थी यदि निर्धारित समय पर धन नहीं पहुँचा तो बालिका को समुद्र में डुबाकर मार दिया जायेगा। पर सम्भवतः प्रकृति को ऐसा मंजूर नहीं था “जाको राखों साइयाँ मार सके ना कोय, बाल न बाँका हो सके, जो जग बैरी होय।” यह उक्ति अक्षरशः चरितार्थ हुई। प्रकृति का आक्रोश उल्टा अपहरणकर्ताओं के ऊपर ही फूट पड़ा। तूफान ने नौका को डूबो दिया जिसमें आठों अपहरणकर्ता मारे गया। पर छोटी बच्ची पैकिंग के बने तख्ते पर तैयारी हुई ‘कासिस’ फ्राँस के समुद्र तट पर सकुशल आ लगी। तब तक वह निद्रा मग्न रहीं जब तक कि तैरता हुआ लकड़ी का तख्ता समुद्र के किनारे न जा लगा। किनारे पर कुछ मछुआरों ने जाकर स्थानीय पुलिस को सूचना दी। रिपोर्ट पुलिस को पहले ही मिल चुकी थी। उस आधार पर बालिका को उसके माता पिता के पास पहुँचा दिया गया।

यदि इस घटना को मात्र एक प्रकृति संयोग माना जाय तो कुछ समाधान नहीं निकलता। समुद्री तूफान की चपेट में आना और उसमें अपहरणकर्ताओं का मारा जाना, बालिका का लकड़ी की तख्ती में अपने आप आ जाना तथा सकुशल समुद्र के किनारे निद्रावस्था में जा लगना आदि घटनाओं का तारतम्य ‘संयोग के सिद्धान्त द्वारा कैसे बिठा जा सकता है। दुर्घटना एक संयोग थी तो उसकी चपेट में बालिका को भी आना चाहिए था। पर बिना किसी क्षति के सुरक्षित भयंकर तूफान से निकलकर समुद्र के किनारे बालिका के जा पहुँचने की घटना यह बताती है कि किसी अदृश्य सत्ता द्वारा बालिका के जीवन रक्षा की व्यवस्था बनायी गयी।

24 दिस.1923, न्यू कैर्लेडोनिया के निकट एक ऐसी विलक्षण घटना जो यह बताती है कि सृष्टि में सर्वत्र कोई ऐसी शक्ति काम कर रही है जो असमर्थता की स्थिति में मनुष्य को सहयोग भी देती है। एडोल्फ पान्स नामक एक फ्राँसीसी व्यापारी अपने एक अन्य साथी कि साथ मोटर वोट से समुद्र में बिहार करने के लिए निकला। अचानक एक समुद्री लहर के कारण मोटर वोट अनियन्त्रित हो गयी। पान्स समुद्र में गिर पड़ा उसके दूसरे साथी ने स्वयं भी पान्स के बचाव के लिए समुद्र में छलाँग लगा दी। लगभग आठ मील दूर दोनों ही को शार्क मछलियों के बीच छोड़कर मोटर वोट जा पहुँची। मृत्यु अब सन्निकट थी। अचानक बिना किसी सवार की नौका पीछे की ओर मुड़ने लगी। ऐसी प्रतीत होता था कि किसी अदृश्य शक्ति ने मोटर वोट का नियन्त्रण अपने हाथों में ले लिया हो। आठ मील दूर जा पहुँची मोटर वोट तीव्र रफ्तार से ठीक वहाँ जा पहुँच गयी जहाँ कि दोनों व्यक्ति अब मृत्यु की घड़िया गिन रहे थे। दोनों ही नौका पर जा चढ़े और सुरक्षित समुद्र के किनारे जा लगे। व्यापारी पान्स का कहना था कि “मुझे विश्वास नहीं होता यह सब कैसे हुआ, पर जो कुछ हुआ वह संयोग नहीं था। किसी अदृश्य शक्ति ने ही हमें मृत्यु के मुँह से बचाया और नया जीवन दिया।

किन्हीं-किन्हीं को इस तरह के अप्रत्याशित सहयोग मिलते है जबकि कितने ही दुर्घटनाओं में सारे जाते है। इन्हें वैसी सहायता क्यों नहीं मिलती? क्या कर्म फल सिद्धान्त से ऐसी घटनाओं का कुछ तारतम्य है? कितने ही ऐसे प्रश्न उभर कर सामने आते है, जिनका उत्तर सामान्य तार्किक बुद्धि देने में असमर्थ प्रतीत होता है। सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर तथा दैवीय अनुग्रह सिद्धान्त की जानकारी के लिए पिण्ड के चेतन अन्तराल में प्रविष्ट करना होगा। उन सूत्रों को ढूँढ़ना होगा जिनके द्वारा दिव्य आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त करती है।

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