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Magazine - Year 1982 - Version 2

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मनुष्य की अदृश्य सत्ता अति समर्थ

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अतीन्द्रिय क्षमताएँ परामनोविज्ञान के अनुसार मनः संस्थान का ही एक अंग है और उनका कारण एवं आधार मस्तिष्कीय संरचना में खोजा जा सकता है। अध्यात्म शास्त्र में रहस्य लोक को सूक्ष्म शरीर का विषय माना है। इस सूक्ष्म शरीर का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त करना हो तो उसे मानसिक चेतना की गहरी परतों के साथ जुड़ा हुआ देखा जा सकता है। शरीर यात्रा में काम आने वाली-दैनिक जीवन की गुत्थियों को सुलझाने वाली-क्षमता व्यवहार मस्तिष्क में हैं। उसे शिक्षा, अनुभव अभ्यास से विकसित किया जा सकता है किन्तु सूक्ष्म शरीर की क्षमताएँ विकसित करने के लिए ऐसे प्रयोग अपनाने पड़ते है जो मनःसंस्थान में सन्निहित सूक्ष्म चेतना केन्द्रों को सजग सक्रिय कर सकने में सफल हो सकें।

अब विज्ञान मनुष्येत्तर विभिन्न प्राणियों की शारीरिक एवं मानसिक संरचना में जुड़ी हुई अद्भुत विशेषताओं को खोजने में संलग्न है। इसका एक स्वतन्त्र शास्त्र ही बन गया है-जिसका नाम है-बायोनिक्स

वैज्ञानिकों का कहना है कि-दूर की फोटो लेना अथवा दूरवर्ती वस्तुओं का फोटो लेना, केवल माइक्रो फिल्म द्वारा ही सम्भव है और वह भी जबकि उस तरह का दृश्य किसी निश्चित फ्रीक्वेंसी पर निश्चित माइक्रो फिल्म द्वारा ही संभव है और वह भी जबकि उस तरह का दृश्य किसी निश्चित फ्रीक्वेंसी पर निश्चित माईक्रोट्रान्समीटर द्वारा शक्ति शाली विद्युत तरंगों द्वारा प्रेक्षित किया गया हो।

किन्तु शिकागो के टेडसीरियल ने मानसिक कल्पना के आधार पर ध्यान में लाए गये चित्र कैमरे से खिचायें तो ध्यान कर्त्ताः टेड सीरियस के फोटो के स्थान पर ध्यान की गई वस्तु के साफ-साफ फोटो थे। जैसे ध्यान में घोड़ा अथवा शेर है तो स्पष्ट घोड़ा और शेर का ही फोटो था टेड का चित्र क्यों नहीं आया यह एक विचित्र उलझन अजीब पहेली है। विज्ञान के लिए चुनौती और चैलेन्ज है।

वैज्ञानिक इसे न ट्रिक मानते है न हिप्नोटिज्म और टेड ने कभी भारत आकर किसी योगी से भी ऐसा प्रतिक्षण नहीं लिया।

1962 में टेड सीरियस ने भारत का नक्शा देखकर फतेहपुर सीकरी, के मुख्य द्वार “बुलन्द दरवाजा” दिल्ली के लाल किले के दीवाने आम की कल्पना कर कैमरे के चित्र खिचायें तो हूबहू वैसे ही थे जैसे कि दिल्ली और फतेहपुर सीकरी के। किन्तु टेड तो कभी भारत भी नहीं आये जो अतीत में देखी कल्पना मस्तिष्क में उभर सके। नवम्बर 1968 की कादम्बिनी में टेड के कल्पना चित्रों का फोटो भी छपा था। आश्चर्य है कि अमेरिका में बैठा व्यक्ति हिन्दुस्तान के कल्पना चित्र का फोटो उतरवाकर भारतीय उपासना दर्शन की प्राथमिकता सिद्ध करता रहा है।

गुप्त या अप्रकट बातों को जानने की जिसे शक्ति प्राप्त होता है उसे “डिवाइनिंग“ कहा जाता है।

अंग्रेजी सेना के प्रसिद्ध सेनापति और बाद में इंग्लैण्ड के युद्ध मंत्री किचनर इस विद्या में पारंगत थे। जब वे अंग्रेजी सेना में लेफ्टिनेण्ट पद पर कार्यरत थे तब कोरस्को के रेगिस्तान में 250 मील लम्बी रेल लाइन बनाई जा रही थी, जहाँ पानी का भारी संकट और अभाव था। वहाँ लार्ड किचनर ने अपनी इस क्षमता का उपयोग कर भयंकर रेगिस्तान में दो कुएँ बनवाये, जिनमें मीठा स्वच्छ जल निकला। इस तरह रेल लाइन बनने में जो पानी की कठिनाई आ रही थी वह दूर हो गई।

प्रथम विश्व युद्ध के अवसर पर इंग्लैण्ड के प्रधान मन्त्री लार्ड जायज ने बुढ़ापे में बगीचा लगाया तो उनके फार्म के पास जल साधनों के अभाव में बगीचा सूख रहा था किन्तु पड़ोसी किसान के खेत हरे-भरे देखकर वे उस किसान के पास पहुँचे तो उन्होंने उसके खेतों को पानी मिलने के साधनों की जानकारी करनी चाही। उस किसान ने बताया कि इस भूमि में सभी स्थानों पर जल नहीं मिलता मेरी स्त्री को एक ऐसी विद्या (डिबाइनिग) आती है जिससे वह पानी के स्रोतों का पता लगा लेती है। लार्ड जायज को जहाँ-जहाँ उस महिला ने बताया वहाँ खोदने पर अपार जल भण्डार मिले जिससे 3 लाख गैलन पानी प्रतिदिन निकाला जा सकता था।

कालोरोडो प्रान्त के लेडीवली नगर में के. डब्लू. पी. जोन्स नाम का एक ऐसा व्यक्ति हुआ है जो जमीन पर चलकर यह बता देता था कि जिस भूमि पर वह चल रहा है उसके बीच किस धातु की-कितनी बड़ी खदान है उसे जमीन में दबी भिन्न धातुओं का प्रभाव अपने शरीर पर विभिन्न प्रकार के स्पन्दनों से होता था। अनुभव ने उसे सिखा दिया था कि किस धातु का स्पन्दन कैसा होता है। अपनी इस विशेषता का उसने भरपूर लाभ उठाया। कइयों को खदान बताकर उनसे हिस्सा लिया और कुछ खदानें उसने अपने धन से खरीदी और चलाई। अमेरिका का यह बहुत धन-सम्पन्न व्यक्ति अपनी इसी विशेषता के कारण बना था।

गेविन मेक्सवेल ने अपने अनुसन्धानों में एक अस्सी वर्षीय अन्धे का वर्णन किया है। जिसने समुद्र में डूबी हुई एक मछुआरे की लाश का सही स्थान बताने और उसे बाहर लाने में सहायता की थी। उन्होंने के पश्चिमी पठार के द्वीप समूहों के लोगों में यह क्षमता विशेष रूप से पाये जाने का उल्लेख किया है। शमूस फियारना द्वीप में एक मछुआ मछली पकड़ते समय गाँव के समीप की खाड़ी में डूब गया। उसकी लाश निकालने और विधिवत् दफनाने के लिए सारा गाँव उत्सुक था। सभी नावें कई दिन तक लगातार खाड़ी में चक्कर काटती रही, पर किसी के काँटे में लाश फँसी नहीं। निराशा छाई हुई थी। तभी एक अस्सी वर्षीय अन्धे कैलम मेकिनन ने कहा आप लोग मुझे नाव में बिठा कर ले चलें और खाड़ी में घुमाते रहे। सम्भवतः में लाश को तलाश करा दूँगा। चिल्लाया-काँटा डालो लाश ठीक नीचे है। वैसा ही किया गया। फलतः मृतक को बाहर निकाल लिया गया और उसे विधिवत् दफनाया गया।

आयरलैण्ड के प्रो. वैरेट। भूमिगत जल स्त्रोतो एवं खदानों का पता लगाने के संदर्भ में प्रख्यात थे। वहाँ के विकलो पहाड़ी क्षेत्र में दूर-दूर तक पानी का कहीं नामोनिशान नहीं था, कड़ी एवं पथरीली जमीन पर प्रो. वैरेट खदान विशेषज्ञों के सामने उस क्षेत्र में कई घण्टे घूमते रहे, अन्ततः एक स्थान पर रुककर बोले-यहाँ 14 फुट गहराई पर एक अच्छा जल स्त्रोत है। खुदाई के पश्चात् वहाँ मात्र 15 फुट जमीन खोदने पर पानी की एक जोरदार धारा फूट पड़ी।

भारत के राजस्थान प्रान्त में “पानी वाले महाराज” अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर कई सफल कुएँ बनवा चुके हैं, उन्हें माधवनन्द जी के नाम से जाना जाता था।

चेकोस्लोविया के एक शिल्पी व्रेतिलाव काफ्थ में अतीन्द्रिय दर्शन की अद्भुत क्षमता थी। उसके द्वारा उत्तरी ध्रुव की ऋतुओं और परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त करने में महत्वपूर्ण सहयोग मिला तथा दूसरे महायुद्ध के समय उसने युद्ध के मोर्चे की हलचलों के बारे में जो विलक्षण जानकारियाँ दी, वे आश्चर्यजनक रूप से सत्य सिद्ध हुई। इतना ही नहीं उसकी इस क्षमता का लाभ भी युद्ध में उठाया गया। ‘इन साइक्लोरीडिया आँफ आँकल्ट’जो तन्त्र विद्या के विश्वकोश के रूप में प्रसिद्ध है, में एण्ट्रीन मेसकर नामक एक ऐसे व्यक्ति का उल्लेख मिलता है जो पेट के माध्यम से अप्रत्यक्ष एवं अदृश्य वस्तुओं का विवरण बताया करता था। फ्राँसीसी वैज्ञानिक और कवि जलस ने इस व्यक्ति की जाँच करके यह लिखा है कि प्रत्येक व्यक्ति की त्वचा में ऐसे कोशणु उपस्थिति रहते है जो देखने की क्षमता रखते है। मेसकर में ये कोशणु अधिक विकसित स्थिति में विद्यमान है। यह कोश स्पर्श के आधार पर देखने का बहुत कुछ प्रयोजन पूरा करते है। स्मरणीय है अन्धे व्यक्ति अपनी त्वचा और कानों द्वारा ही नेत्रों के अभाव की बहुत कुछ आवश्यकता पूरी कर लेते हैं।

वैज्ञानिक अलेक्जेन्डर किताई गोरोरस्की ने कई परा मनोवैज्ञानिक शोधों का निकट से अध्ययन किया और अतीन्द्रिय क्षमता को पूरी ईमानदारी के साथ स्वीकार किया है। उन्होंने बूल्फ मेंसिग नामक एक व्यक्ति का उल्लेख किया है जिसमें अनायास ही ऐसी क्षमता उत्पन्न हो गई जिससे वह दूरस्थ घटनाओं एवं विचारों का परिचय प्राप्त कर लेता था। गोरोरस्की के अतिरिक्त अन्य कई व्यक्ति यों ने भी उसका परीक्षण किया और पाया कि टेलीपैथी कोई जादूगरी अथवा धोखाधड़ी नहीं बल्कि एक ध्रुव सिद्ध सत्य है।

विचार संचालन विद्या भी अतीन्द्रिय क्षमताओं के अंतर्गत आती है। एक व्यक्ति दूसरे के मन की बात जान सकता है। अपने मन की बात बिना वार्तालाप किये ही दूसरों को जता सकता है। इतना ही नहीं इस वार्तालाप किये ही दूसरों को जता सकता है। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में आग्रह करने और दबाव डालने की भी गुँजाइश है यहाँ तक कि किसी पर चढ़ बैठने और पछाड़ देने की बात भी तांत्रिकों द्वारा प्रयुक्त की जाती रहती है। उतना आगे तक न बढ़ा तो भी विचार शक्ति की जानकारी के आदान-प्रदान से आगे बढ़ाकर दूसरों की सेवा सहायता करने में तो निश्चित रूप से लगाया जा सकता है। इस तथ्य की प्रामाणिकता का परिचय देने वाले कितने ही प्रमाण समय− समय पर मिलते रहते है।

टेलीपैथी के एक प्रयोगकर्ता इंग्लैण्ड के ए. एन. क्रीरों ने बहुत समय तक वह प्रयोग चलाया कि बन्द कमरे में क्या हो रहा है इसकी जानकारी प्राप्त की जाय। इस प्रयोग में एक महिला अधिक दिव्यदृष्टि सम्पन्न सिद्ध हुई।

क्रीरी ने अपने प्रयोगों की सचाई जाँचने के लिए अनेक प्रामाणिक व्यक्ति यों से अनुरोध किया। जाँचने वालों में डबलिन विश्व-विद्यालय के प्रो. सर विलियम वैरट इंग्लैण्ड की ‘सोसाइटी फार साइकिकल रिसर्च’ के प्रधान प्रो. सिजविग जैसे मूर्धन्य लोग थे। उन्होंने कई तरह से उलट-पलटकर इन प्रयोगों को देखा और उन प्रयोगों के पीछे निहित सचाई को स्वीकारा।

परा मनोविज्ञान अनुसंधान की दिशा में विधिवत् प्रयत्न लगभग एक शताब्दी से चल रहे हैं। इसका श्री गणेश लन्दन सोसाइटी फार साइकिकल रिसर्च’ के रूप में हुआ। इसके तीन वर्ष वैसी ही शोध सभा अमेरिका में भी गठित हुई उसका नाम रखा गया— ‘अमेरिका सोसाइटी फार साइकिकल रिसर्च’ इंग्लैण्ड में सर विलियम क्रूक्स जैसे मनीषियों ने इन प्रयोगों में गहरी दिलचस्पी ली। अमेरिका में हुए शोध प्रयत्नों में पिछली पीढ़ी के मनीषियों में विलियम जेम्स, मैक्डागल का नाम अग्रिम पंक्ति में है। रूस के शरीर शास्त्री बी. एम. वेख्तेरेफ की खोजों ने परा-मनोविज्ञान शोध को आगे बढ़ाने में भारी प्रयत्न किये है।

फाउण्डेशन आफ रिसर्च आन दि नेचर आफ मेन से सम्बद्ध 'इंस्टीट्यूट फार पैरासाइकोलोजी’ ने परा मनःशक्ति के संदर्भ में अति महत्वपूर्ण शोध सामग्री एकत्रित की है।

ड्यूक विश्व विद्यालय के डा. जे.वी. राइन द्वारा लिखित पुस्तक न्यू फटियर्स आफ माइन्ड में मस्तिष्कीय विलक्षणता पर गम्भीर प्रकाश डाला गया है। इनको विकसित करने पर प्राप्त हो सकने वाले लाभों की ओर मात्र निर्देश किया है।

स्विट्जरलैंड के सेन्ठ पेरुस नगर में बड़े गिरजे के पादरी ऐलाक्सिस गर्मेट अपनी दिव्य दृष्टि के लिए प्रसिद्ध रहे थे। उन्होंने उस क्षमता का उपयोग जमीन के छिपे जल स्त्रोतो की जानकारी देने और सिंचाई की सुविधा बढ़ाने में की। बिना किसी भूमि पर जाये वे उसके नक्शा को देख-भाल करके ही नीचे के पानी का विवरण बता देते थे। उनके ऐसे चमत्कारी कृत्यों में कोलम्बिया के पोपापन नगर को जल सुविधा प्रदान करने की घटना बहुत प्रसिद्ध है। वहाँ उनने माँ नक्शा देखकर 88 फुट से 6 इंच नीचे जल स्त्रोत होने की सूचना दी जो खोदने पर बिलकुल सही निकली। इतना ही नहीं उनने पानी के दबाव की सही स्थिति भी पहले ही बता दी थी। प्रति मिनट 500 लीटर का बहाव होने की बात उनने बताई थी। खोदने पर वह दबाव भी ठीक उतना ही निकला।

कैलीफोर्निया के पुलिस अधिकारी ‘रिचमाण्ड’ ने अचानक फोन पर किसी व्यक्ति की सूचना सुनी-पैनपाब्लो के मैकडोल्ड एवेन्यू में स्टीम लाइनर से टकराकर एक दुर्घटना-ग्रस्त हो गया। चालक के सीने में गम्भीर चोट लगी है और दूसरे व्यक्ति घायल हो गये है। वहाँ जल्दी पहुँचिये”।

फोन पर प्राप्त सूचना के अनुसार अधिकारी ने एक पुलिस दल को तुरन्त वहाँ भेज दिया। वहाँ पूछताछ करने पर पता चला कि इस तरह की कोई घटना अभी नहीं घटी है। पुलिस कर्मचारियों ने समझा कि किसी ने यों ही मजाक में उन्हें तंग किया है।

पुलिस दल लौटने ही वाला था कि उसके सामने ही एक स्टीम लाइनर सामने से आ रहे एक ट्रक से टकरा गया। ड्राइवर की छाती चूर-चूर हो गयी और कई अन्य व्यक्ति बुरी तरह घायल हो गए।

विंसेट तथा मारग्रेट नामक दो वैज्ञानिकों ने सैकड़ों जुड़वा बच्चों पर शोध कर अनेक महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं। जुड़वा बच्चों में कुछ सामान्य अन्तर होते हुए भी उनकी आदतों, विचारों एवं स्वभाव में पर्याप्त साम्य पाया गया है। इस संदर्भ में उक्त वैज्ञानिकों ने कई घटनाक्रमों का उल्लेख किया है। पार्टी में सम्मिलित एक डाँक्टर की पत्नी डोंग मार्टिन अपने मित्रों से हँस-हँसकर बोल बतिया रही थी, अचानक वे उदास हो गई और फूट-फूटकर रोने लगीं। तत्काल तो उनका कोई कारण न ढूँढ़ा जा सका परन्तु कालान्तर में ज्ञात हुआ कि उसी समय उसकी जुड़वा बहन अचानक बीमार पड़ गई थी।

बकिंघम शहर की एक और घटना इसी प्रकार आश्चर्यचकित कर देने वाली हुई। मारग्रेट एक परिवार में अतिथि बन कर गये हुए थे। उस परिवार की महिला रसोई में, खूब प्रसन्न और स्वस्थ स्थिति में काम कर रही थीं। अचानक रसोई से कराहने की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी । मारग्रेट सहित परिवार के अन्य सदस्य दौड़ आये। कराहने का कारण पूछने पर महिला ने बताया कि अचानक उसके चेहरे, पीठ और पैरों में इस प्रकार दर्द होने लगा था, जैसे वह किसी दुर्घटना से आहत हो गई हो। तत्काल तो उसका कारण पता न चला, पर बाद में ज्ञात हुआ कि उसी समय जब महिला कराह रही थी उसकी बहिन ‘जैक्स’ एक कार दुर्घटना से बुरी तरह घायल हो गई थी और उसके चेहरे, पीठ और पैरों पर काफी चोटें आई थीं।

ब्रिटेन की लेबर पार्टी के संसद सदस्य डैगलस की बेटी कैथरीन ने लिस समय एक बच्चे को जन्म दिया, उसी समय उसकी जुड़वा बहन हेलन के पेट में भी सख्त पीड़ा हो रही थी।

प्रो. जे. एच. कैमरान ने लिवरपूल के एक मैकेनिक का विचित्र विवरण दिया है, जिसे न कहीं चोट आई न कोई बीमारी हुई फिर भी वह एक सप्ताह तक चलने-फिरने में असमर्थ रहा, कारण कि उसके एक जुड़वा भाई की टाँग एक दुर्घटना में टूट चुकी थी।

इस प्रकार की अनेक घटनाएँ प्रकाश में आती रहती हैं, जिससे जुड़वा बच्चों को एक ही व्यक्ति त्व के दो बिम्ब कहा जाये तो भी अत्युक्ति नहीं होगी। कई ऐसे व्यक्ति यों में तो सुदूर प्रवेश में रहने पर भी एक दूसरे तक अपने विचार और सम्वेदना सम्प्रेषित करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है।

इन साम्यों का कारण ढूँढ़ना वैज्ञानिकों के लिए चुनौती सदृश है। अमरीकी विशेषज्ञ विंसेट का कथन है कि ‘उन बच्चों का विकास गर्भाशय के भीतर ही एक-सी ही स्थितियों में होता है। उस समान स्थिति में पलने के कारण अलग-अलग देहधारी होते हुए भी उनके व्यक्ति त्व तथा आचरण में समानता आ जाती है।’

लन्दन हास्पिटल के ‘साइकी आर्टी इंस्टीट्यूट के डाँ. जेम्स शील्ड ने जुड़वा बच्चों पर काफी अनुसन्धान कार्य किया और उनमें पाई जाने वाली समानताओं के वैज्ञानिक कारण प्रस्तुत किये हैं। उनका विचार है कि एक ही परिवेश में पले और विकसित हुए बच्चों के शरीर, स्वभाव, आदतों, व्यवहार, रुचियों एवं मस्तिष्कीय क्षमताओं में पर्याप्त समानता आ जाती है। इसका प्रधान कारण गर्भ में एक ही प्रकार का पोषण मिलना है।

वुडलैण्ड (अमेरिका) के डाँक्टर जियो वर्नहाट ने अपना अनुभव परामनोविज्ञान की एक प्रसिद्ध पत्रिका में प्रकाशित कराया है। वे लिखते हैं कि ‘सन् 1971 की घटना है-एक दिन बैठे-बैठे लगा कि उनका पुत्र जाँन वियतनाम के युद्ध मोर्चे पर बुरी तरह आग में फँस गया है और उसके तंबू की आग फैल रही है। वह बड़े सन्दूक के नीचे दब गया है। उन्हें लगा कि जैसे उन्होंने जान को सन्दूक के नीचे से उठाया और तंबू से बाहर घसीट लाये और खड़ा कर दिया। इसके बाद मुझे अपना शरीर पूर्ववत् महसूस होने लगा। आँखें खोलीं तो मालूम पड़ा कि तन्द्रा-सी आ गई है। पत्नी नब्ज़ टटोल रही थी मैंने पूछा कि क्या बात है तो वे बोली ऐसा लगा कि आप “एव नाँर्मल” हैं मैंने पत्नी को वह सपने की-सी बात कह सुनाई उन्होंने हँसकर टाल दिया। बात आई गई हो गई छः माह बाद जाँन मोर्चे से वापस आया तो सर्वप्रथम उसने अग्निकाण्ड में फँसने और अचानक किसी अनजान शक्ति की मदद से निकालने की बात ने पुनः उस घटना की स्मृति तरोताजा कर दी और रहस्य पर से पर्दा उठा दिया।”

परामनोविज्ञान की परिधि बड़ी विशाल है। यह अविज्ञात का क्षेत्र है। मानवी चेतना की रहस्यमयी परतों में ऐसी न जाने कितनी विलक्षणताएँ छिपी पड़ी हैं। अध्यात्म शास्त्र में इन्हें सामान्य मन की प्रसुप्त सामर्थ्य माना जाता है। यह कोई सिद्धि अथवा विलक्षण उपलब्धि नहीं, प्रकृति प्रदत्त क्षमता है जो सबमें एक समान रूप से विद्यमान है। कोई इन्हें साधना पुरुषार्थ से व कोई-कोई पूर्व अर्जित सुसंस्कारोंवश जल्दी जगा लेते हैं। पाश्चात्य चिकित्सा शास्त्री व शोधकर्ता इन्हें आश्चर्य से देखते हैं जबकि यह मनःसंस्थान के सूक्ष्म शक्ति केन्द्र के जागरण की प्रतिक्रिया मात्र है। मनुष्य असीम सामर्थ्यों से भरपूर है। अपने आपको पहचानने का प्रयास तो किया जाय। फिर तो असीम उपलब्धियों का क्षेत्र खुल जाता है।

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