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तुम उसे अवश्य पा लोगे
वही सच्चा तपस्वी जो.............
'विश्ववारा' भारतीय संस्कृति
जिस मरने से जग डरे, मेरे मन आनन्द
अचेतन की ढलाई के चमत्कारी सत्परिणाम
गुणसूत्र दर्पण् है, बहिरंग में विकृति के
नाम-यश का मोह, कितना झूठा-कितना सच्चा
ज्योतिवज्ञान को समझें, इस विधा का लाभ लें
अतीत की वापसी
देखें सार्थक एवं सोद्देश्य सपने
सुपात्र बनें तो दैवी अनुकम्पा बरसे
यो यच्छृद्धः स एव सः
दिवा स्वप्न नहीं, काल का लीला सन्दोह है
सविता की स्वणम प्रकाश-साधना सरल और निरापद भी
हारे को हरिनाम
आनन्द की देवी
व्यवस्था बनायेगा, प्रकृति का अनुशासन चक्र
प्रकृति के साथ विवेक सम्मत व्यवहार करें
उद्धत स्वार्थपर्ता की पराकाष्ठा है यह
एक प्रतिभावान अभीष्ट है या कई अनगढ़
आइए! इक्कीसवी सदी का स्वागत हरीतिमा से करें
बुद्धिमान बनें कि प्रज्ञावान
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
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Year 1996 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
गुणसूत्र दर्पण् है, बहिरंग में विकृति के
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Other Version of this book
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...
Version 1
Type: SCAN
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