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Magazine - Year 1996 - Version 2

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जगज्जननी की कृपा से नारी का स्वरूप बोध

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हे माँ। आपका सान्निध्य पाकर हम जान सके कि नारी ब्रह्म विद्या है, श्रद्धा है, शक्ति है, पवित्रता है, कला है और वह सब कुछ है जो इस संसार में सर्वश्रेष्ठ के रूप में दृष्टिगोचर होता है। नारी कामधेनु है, अन्नपूर्णा है, सिद्धि है, रिद्धि है और वह सब कुछ है जो मानव प्राणी के समस्त अभावों, कष्टों एवं संकटों को निवारण करने में समर्थ है। यदि उसे श्रद्धासिक्त सद्भावना अर्पित की जाए तो वह विश्व के कण कण को स्वर्गीय परिस्थितियों से ओत प्रोत कर सकती है।

आपका वात्सल्य पाकर हमें बोध हुआ है कि नारी सनातन शक्ति है। वह आदिकाल से उन सामाजिक दायित्वों को अपने कन्धों पर उठाए आ रही है, जिन्हें केवल पुरुष के कन्धों पर डाल दिया गया होता , तो वह न जाने कब लड़खड़ा गया होता, किन्तु विशाल भवनों का असह्य भार वहन करने वाली गाँव के समान वह उतनी ही कर्तव्यनिष्ठा, उतने ही मनोयोग, संतोष और उतनी ही प्रसन्नता के साथ उसे आज भी ढोए चल रही है। वह मानवीय तपस्या की साकार प्रतिमा है।

भौतिक जीवन की लालसाओं की उसी की पवित्रता ने रोका और सीमाबद्ध करके उन्हें प्यार की दिशा दी। प्रेम नारी का जीवन है। अपनी इस निधि को वह अतीत काल से मानव पर न्यौछावर करती आयी है। कभी न रुकने वाले इस अमृत निर्झर ने संसार की शान्ति और शीतलता दी है।

हे जगज्जननी ! आपकी कृपा से हम अपने अन्तःकरण में इस ऋषि वाणी को अनुभव करते हैं:-

विद्या समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ता सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्ति॥

हे देवि ! समस्त संसार की सब विधाएं तुम्हीं से निकली हैं और सब सिद्धियाँ तुम्हारी स्वरूप हैं, समस्त विश्व एक तुम्हीं से पूरित है। अतः तुम्हारी स्तुति किस प्रकार की जाए ?

अन्तःकरण में इस भाव की घनीभूत अनुभूति से प्रेरित होकर हम सब आपकी सन्तानें, आपकी द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर अखण्ड ज्योति के इस अंक को नारी अंक के रूप में आपको समर्पित करते हैं। भावों की इस पुष्पाँजलि को स्वीकार करो माँ ! और हम सब पर सदा की भाँति अपने आँचल की वरद् छाया बनाए रखना।

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