Magazine - Year 2003 - Version 2
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Language: HINDI
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क्लीव न हम कहलाएँ (kavita)
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गुरु का शक्ति-प्रवाह बह रहा, अब इससे जुड़ जाएं हम,
भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।
भागीरथी और गायत्री का अवतरण हुआ इस दिन,
थी मृतप्राय मनुजता, प्राणों का संचरण हुआ इस दिन,
सुधा-बिंदु पाकर उनसे फिर प्राणवान बन जाएं हम,
भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।
ऋषि ने तप से किया मुक्त, गायत्री रही न बंधन में,
पहुँची देश-देश, घर-घर में, संपन्नों में, निर्धन में,
इस प्रभाव को शेष जनों तक भी निश्चित पहुँचाएं हम,
भागीरथ तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।
जो हो गया, न उस पर हम कुछ गर्व करें, अभिमान करें,
वह प्रभाव था केवल गुरु के तप का, इसका ध्यान करें,
व्यर्थ आत्म-सम्मोहन से संपूर्ण मुक्ति पा जाएं हम,
भागीरथ तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।
करें साधना, हों सशक्त, ठहरें न कहीं बाधाओं में,
दृष्टि स्वच्छ हो, जिससे पलभर भ्रमित न हो भटकावों में,
सर्वप्रथम व्यक्तित्व स्वयं का पावन प्रखर बनाएं हम,
भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।
ऋषि का शक्ति-प्रवाह हमें हर कोने तक पहुँचाना है,
युग के महत्कार्य में जनसहयोग सभी का पाना है,
इसके लिए सशक्त संगठन, मिलकर अभी बनाएं हम,
भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।
चिंतन का बिखराव दूर हो, ऐसा सतत प्रयास करें,
संकल्पित ही श्रेय-सफलता पाएंगे, विश्वास करें,
असमंजस को त्यागें, कायर-क्लीव नहीं कहलाएं हम,
भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।
-शचींद्र भटनागर
*समाप्त*