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    • जागों हे माँ कुल कुण्डलिनी
    • घट रही हैं शरीर व मन की दूरियाँ
    • ओजस्वी शब्द जिनने जमाने को बदला
    • अध्यात्म एक उच्चस्तरीय गुह्य विज्ञान
    • भक्तिगाथा-१६ : कर्म व भावनाएँ प्रभु को हों अर्पित
    • सहयोग सहकार से भरा पशु-पक्षियों का संसार
    • आत्मिक प्रगति के लिए गायत्री उपासना सर्वोपरि क्यों
    • आदिशक्ति की लीलाकथा-५ : कवच साधना से प्राप्त होता है पूर्ण फल
    • स्व सम्मोहन से करें अपना उपचार
    • प्रतिभा के कुछ महत्त्वपूर्ण मानदण्ड
    • हम अपने ही दुश्मन तो न बनें
    • अर्थ को धर्मपूर्वक अजर्न करने की नीति बने
    • समाज का आचीर्टेक्ट, वैज्ञानिक, सेवक है शिक्षक
    • साहित्य से सिनमा तक एक नई क्रांति की अपेक्षा
    • आयुवेर्द-४८ : आहार हमारा कैसा हो, ताकि हम स्वस्थ रहें
    • अविद्या के भटकावे हमें ले जाते हैं अस्मिता अहंकार की ओर
    • योगचिकित्सा-५ : स्लिप डिस्क एवं सायटिका का योग द्वारा उपचार
    • आलोग उद्घाटित हुआ
    • अमृतवाणी : संक्रांतिकाल में परिजनों से विशेष अपक्षाएँ
    • युगगीता-८८ : ज्ञान-विज्ञान की पराकाष्ठा पर मोक्ष में प्रतिष्ठा
    • वाङ्मय-२० : नारी जागरण से भावी पीढ़ी के नवनिमार्ण तक
    • कुछ आप कहें कुछ हम कहें
    • प्रतिभागियों को प्रवेश हेतु भावभरा आमन्त्रण (विवि-२७)
    • यदि अब न चेते तो महाविनाश सुनिश्चित
    • अब होगा नारी जागरण
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मनुष्य अपने भाग्य निर्माता आप है

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