नारियों के उत्थान की समस्या
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नारी का महत्त्व इतना अधिक होने पर भी वर्तमान समय में हमारे देश की अवस्था इस दृष्टि से विपरीत दिखलाई पड़ती है । हम यह तो भली प्रकार समझते हैं कि साधारण गृहस्थ समाज में, सुखी जीवन- यापन में नारी का बड़ा भारी हाथ रहता है । योग्य नारी के आगमन से घर चमक उठता है और अयोग्य के उपस्थित होने पर वह कलह एवं अशांति का अखाड़ा बन जाता है । साधारणत: प्रत्येक स्त्री-पुरुष की योग्यता एवं विचारों में भिन्नता रहती ही है, पर वह इतनी अधिक हो जाए कि बात-बात में एक दूसरे से अनबन बढ़ने लगे तो उस घर को लड़ाई का मैदान समझना चाहिए । बहुत बार यह अनुभव हुआ है कि आज के वातावरण में पला हुआ युवक चाहता है कि स्त्री नवीन सभ्यता के ढाँचे में ढल जाए, पर पत्नी वैसे वातावरण में न पलने व शिक्षित न होने के कारण उस बात को पसंद नहीं करती । अत: परस्पर अनबन रहती है । कई व्यक्ति स्त्रियों के साथ जबरदस्ती भी करते हैं । उससे जबरन मनचाहा कार्य करवाया जाता है । करना तो उसे पड़ता ही है, पर उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है । मन दुर्बल हो जाता है। आशाएँ और उत्साह विलीन हो जाता है । अत: दोनों के विचारों में साधारणत: समानता होनी आवश्यक है । अन्यथा सारा जीवन क्लेशदायक और भाररूप हो जाता है । इसके लिए नारी जाति में शिक्षा के प्रचार की बहुत आवश्यकता है, जिससे वह स्वयं अपना भला-बुरा सोच-समझ सके और कर्त्तव्य निर्धारण कर सके ।
शिक्षा की उपयोगिता जीवन के प्रत्येक पल में होने पर भी वर्तमान
शिक्षा में सुधार की आवश्यकता प्रतीत होती है । आज की शिक्षित कन्याएँ
बड़ी फैशनप्रिय हो गई हैं, अत: खरच-बहुत बढ़ जाता है । वे घर वालों के
प्रति अपना कर्त्तव्य भी विसार देती हैं, अत: जिस शिक्षा से वह सुगृहिणी
बनें उसी की आवश्यकता है ।
साधारणतया हमारे यहाँ कन्या का जन्म पिता के लिए बड़ा दु:खद समझा जाता है, क्योंकि वह पराया घर बसाती है । उसके लिए वर ढूँढ़ने, विवाह करने एवं उसे दहेज देने में बड़ा धन व्यय करना पड़ता है । वास्तव में दहेज प्रथा समाज के लिए अभिशाप बन चुकी है । वर के पिता को राजी किए बिना कन्या का विवाह करना कठिन हो गया है । अत: वर्तमान समाज व्यवस्था में सुधार करना परमावश्यक है । उसके पराये घर बसाने की कहकर अनादर करना सर्वथा अविचारपूर्ण है, क्योंकि हमारे घर में पुत्र-वधू आती है, वह पराये घर से आने पर भी हमारा घर बसाती है ।
यह तो बराबरी का सौदा है । विधवा बहनों के प्रति तो हमें अधिक सहानुभूति रखनी चाहिए एवं उन्हें समाज सेवा के योग्य बनाने का प्रयत्न
करना चाहिए । वे चाहें तो समाज का बड़ा कल्याण कर सकती हैं ।