भावी युग में नारी का स्थान
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आज नवनिर्माण का युग है और इस नवनिर्माण में नारी का सहयोग वांछनीय है अथवा यों कहें कि आने वाले युग का नेतृत्व नारी करेगी तो भी अतिशयोक्ति न होगी । नवनिर्माण एवं युग परिवर्तन कहाँ से और कैसे आरंभ होगा व नारी का उसमें क्या योग रहेगा ? इस विषय का अध्ययन करने से पूर्व जरा प्रस्तुत विश्व स्थिति पर दृष्टिपात किया जाए । संक्षेप में आज का मानव जीवन जिन भीषण परिस्थितियों से गुजर रहा है, उसका अनुमान लगाना भी भयंकर है । आज का वैयक्तिक जीवन, पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जीवन इतना अशांतिमय एवं अभावग्रस्त हो गया है कि मनुष्य को पलभर को चैन नहीं । तृतीय विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी मानवता विज्ञान को कोस रही है और सुरक्षा एवं शांति के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है । भौतिकवाद के नाद में एक देश दूसरे देश को, एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को हड़पने की ताक में बैठा है, सामरिक अस्त्र-शस्त्रों की होड़ ने तथा विषैले बमों ने विश्वशांति को खतरे में डाल रखा है । जीवन में जो अनास्था आ गई है, उसका कोई अंत नहीं । जीवन के हर क्षेत्र में हम पिछड़ गए हैं और अध:पतन की ओर जा रहे हैं । सामाजिक विश्रृंखलता पतन, राजनीतिक विप्लव, धार्मिक अंधानुकरण व अधार्मिकता, नैष्ठिक पतन आज के जीवन में घुन की भाँति लग गए हैं ।
ऐसी पृष्ठभूमि में आज विश्व की माँग है और वह माँग भारत पूरी कर सकता है । वह माँग है शांति की, प्रेम की, सुरक्षा की तथा संगठन की । आज के युग की सबसे बड़ी माँग है-नवनिर्माण की, प्रस्तुत परिस्थितियों में आमूल-चूल परिवर्तन एवं क्रांति की ।
आज हम युग परिवर्तन के प्रहरी बनकर विश्व को शांति का दीप दिखाएँगे, फिर से हमें अपने भारतीय ऋषि-मुनियों की परंपरा को जीवित करना होगा, फिर से धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, नैतिक एवं नैष्ठिक पुनरोत्थान की भावना को जन-जन में भर देना होगा ।
आज हमें भारतीय होने के नाते प्रत्येक नर-नारी को देश के नवनिर्माण में प्राणपण से जुट जाना होगा । इस युग परिवर्तनकारी आंदोलन में और जागरण की स्वर्णिम वेला में भारतीय नारी का प्रथम उत्तरदायित्व है कि वह आगे कदम उठाए । आज की नारी सजग है, वह स्वतंत्रता, धार्मिकता एवं मर्यादा की प्रहरी है ।
आज भारतीय नारी हर क्षेत्र में कार्य कर रही है, वह युग का निर्माण करने के लिए सन्नद्ध है । युग करवट ले रहा है, परिस्थितियों का घटनाक्रम तीव्रगति से घूम रहा है, मानवता के अर्द्धभाग को छोड़कर कोई देश व समाज उन्नति नहीं कर सकता । अपने कर्त्तव्यों एवं अधिकारों के पोषण के लिए भारतीय नारी कटिबद्ध होकर कार्यक्षेत्र में उतर रही है । नारी की शिक्षा का प्रतिशत बढ़ाने के साथ-साथ उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व को ढालना होगा, दासता की शृंखलाओं से मुक्त करना होगा और पुरुष समाज को समझना होगा कि नारी उपभोग एवं वासना की वस्तु नहीं, एक जीती जागती आत्मा है, उसमें भी प्राण है, मान है और है स्वाभिमान की भावना । मनु ने नारा लगाया था- ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" नारी आज हर कदम पर नई प्रेरणा देगी, उसकी अगम शक्ति को फिर से प्रतिस्थापित करना होगा । वह ममतामयी माँ है, स्नेहमयी भगिनी है, पतिपरायण पत्नी है, किंतु दूसरी ओर वह चंडी है, दुर्गा है, काली है । नारी ही वीर पुत्रों को जन्म देती है । ध्रुव, प्रहलाद, अभिमन्यु, शिवाजी, राणाप्रताप को जन्म देने वाली माताएँ भारत में ही हुईं रणचंडी दुर्गा की भाँति मर्यादा और मान के लिए जूझने वाली क्षत्राणियाँ और वीर झाँसी की रानी यहीं हुई, किंतु हम भूल गए उन सतियों के तेज को, उन वीर प्रसविनी जननियों को, उन कुल ललनाओं को; किंतु नारी का तेज आभूषणों की चमक व रेशमी परिधानों में धूमिल पड़ गया । इस चतुर्मुखी निर्माण की वेला में नारी को प्रेरणा लेनी होगी, उसमें फिर से आत्मबल जाग्रत करना होगा । जो आज की शिक्षित नारियों हैं, वे आर्थिक स्वतंत्रता स्व पाश्चात्य सभ्यता को अपनाकर भारतीय गौरव को कलुषित न करें, उनकी सुप्त शक्तियों का ज्ञान कराएँ । देश में कन्याओं की शिक्षा पर लड़कों की शिक्षा से अधिक बल दिया जाए । ये भावावेश की बात नहीं,
यह एक स्वयं सिद्ध सत्य है । नारियाँ शिक्षित होंगी तो पुरुष समाज तो स्वत: सुधर जाएगा, माताओं और पत्नियों के संस्कार से पुरुष समाज अपने आप सुसंस्कृत होगा । देश की मान-मर्यादा की रक्षा करने वाली नारी जब नवविहान का स्वर गुँजा देगी तो कोई संदेह नहीं कि हमारे देश में आज फिर हरिश्चंद्र, प्रताप, राम, भीम और अर्जुन पैदा न होंगे ।
आज संपूर्ण नारी जाति का कर्त्तव्य है कि निंदनीय वातावरण को छोड़कर, परवशता की ग्रंथियों काटकर आगे बड़े और समाज सुधार का, नैतिक उत्थान का, धार्मिक पुनर्जागरण का संदेश मानवता को दे ।
पुरुषों से कंधा मिलाकर घर और बाहर दोनों क्षेत्रों में नारी को कार्य करना होगा, यही आज भारत की माँग है । आज भारत की माँग है- अध्यात्म एवं वैदिक धर्म का पुनरूत्थान और भारतीय धर्म एवं संस्कृति का पुनर्स्थापन ।
जब घर-घर में पुन: वेदों की वाणी गूँज उठेगी, तब भारत फिर से अपने प्राचीन जगदगुरु के गौरव को प्राप्त करेगा । हर क्षेत्र में, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक, नैतिक, शैक्षणिक एवं नैष्ठिक पुनर्गठन करते हुए आज की शिक्षित नारी जिस पथ का निर्माण करेगी, वह पथ बड़ा सुगम एवं आध्यात्मिक होगा । फिर से भारत में ऋषियों की परंपरा जाग्रत होगी, फिर से नारी की मातृशक्ति रूप में पूजा होगी और हम संपूर्ण विश्व को एक मौलिक प्रकाश एवं नवीन संदेश देंगे । नारी ही घर-घर में ऐसा वातावरण उत्पन्न कर सकती है जो भारतीय संस्कृति पर आधारित हो । वह आज सबला बनकर चेतना, प्रेरणा, मुक्ति एवं आध्यात्मिकता की साकार मूर्ति के रूप में अवतरित हो रही है । नारी का सहयोग परिवार में, समाज में आरंभ होगा तो एक ऐसा वातावरण बना होगा, जहाँ फिर से दधीचि, कर्ण और राम पैदा होंगे । नारी कीं सबल प्रेरणा पुरुष को नवशक्ति से भर देगी, किंतु इसके लिए आवश्यक है कि उसे आत्मबल, चरित्रबल, तपबल में महान बनाना होगा ।
नारी विश्व की चेतना है, माया है, ममता है, मोह और मुक्ति है, किंतु समय- समय पर उसकी अवतारणा भिन्न-भिन्न रूपों में होती है । आज हमें उन क्षत्राणियों की आवश्यकता है जो समय पड़ने पर समरांगण में उतर पड़े साथ ही यह न भूलना चाहिए कि उसे पारिवारिक इकाई से विस्तृत क्षेत्र की ओर बढ़ाना है । गहनों से लदी रहने वाली भोग-विलासिनियों की आवश्यकता नहीं, आज तो ऐसी कर्मठ महिलाओं की आवश्यकता है जो पुरुष समाज एवं जाति तथा संपूर्ण देश को भारत की संस्कृति का पावन संदेश देकर देश में, घर-घर में फिर से प्रेम, त्याग, बलिदान, पवित्रता एवं माधुर्य का संदेश दें । अफलातून नामक यूनानी दार्शनिक ने कहा था, नारी स्वर्ग और नरक दोनों का द्वार है, बस आज फिर से नारी जाति कटिबद्ध हो जाए और अपने बल से पृथ्वी पर ही स्वर्ग का अवतरण करे ।