• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • प्रस्तावना
    • गौ रक्षा एक अनिवार्य राष्ट्रीय कर्तव्य
    • कृषि प्रधान भारत एवं गौपालन
    • गौवंश का संरक्षण समय की महती आवश्यकता
    • गौरक्षा का सही तरीका
    • पशु वर्ग में असाधारण महत्व गाय का
    • गौ-संवर्धन के लिए आवश्यक प्रयास
    • गाय का दूसरा कोई विकल्प नहीं
    • गौ-दुग्ध पियें, सौ बरस जियें
    • गौपालन हमारी अर्थ नीति का अंग बने
    • गाय हमारी माता है!
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - गौ संरक्षण एवं संवर्द्धन एक राष्‍ट्रीय कर्तव्‍य

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


कृषि प्रधान भारत एवं गौपालन

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 2 4 Last
पशुओं ने मनुष्य की प्रगति में महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। भोजन, वस्त्र, यातायात तथा अन्य सुविधाओं के लिए मनुष्य ने पशुओं का सहारा लिया है। भिन्न-भिन्न देशों ने जलवायु के अनुरूप पशुओं को अपना सहयोगी बनाया है। ऊंट को जिस प्रकार अरब वासियों ने अपना वायुयान माना है उसी प्रकार भारतवासी गाय को अपनी मां की तरह मानते हैं तथा उसकी पूजा करते हैं। गाय हमारी सभ्यता का मेरुदण्ड रही है—हमारी अर्थ व्यवस्था का आधार रही है। भारत कृषि प्रधान देश है। हमारी अर्थ व्यवस्था आज भी कृषि पर टिकी हुई है। सौ में से बयासी व्यक्ति प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से कृषि व्यवसाय पर निर्भर करते हैं। हम अपनी अर्थ-व्यवस्था के आधार को देखें तो यह प्रश्न उभर कर सामने आता है कि भारतीय कृषि की प्रगति की दिशा क्या हो? विश्व भर की कृषि योग्य भूमि का चौदहवां हिस्सा हमारे पास है जबकि उस कृषि पर निर्भर जनसंख्या विश्व की समूची जनसंख्या का पांचवां भाग है। इस तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि हमारे देश में विस्तृत कृषि नहीं हो सकती, गहन कृषि हो सकती है। गहन कृषि का अर्थ है, थोड़ी भूमि पर अधिक उपज लेना। थोड़ी भूमि पर अधिक उपज लेने के लिए खाद की आवश्यकता होती है, इसकी पूर्ति गौ पालन तथा संवर्धन से ही सम्भव हो सकती है। समूचे देश के ग्रामीण परिवारों में से अधिकांश परिवार ऐसे हैं जिनके पास एक एकड़ से भी कम भूमि है। इतनी सी भूमि पर पूरे परिवार का भार उठाना कठिन ही नहीं, असम्भव होता है। इस प्रकार के परिवार, जो कि हमारी जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग है, यदि गौ-पालन को अपनी कृषि के सहायक उद्योग के रूप में अपना लें तो उनकी आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित है। 
भारतीय किसान वर्ष के बारह महीनों में से आठ महीने ही खेती करता है, शेष चार महीने बेकार बैठा रहता है। कुछ बड़े किसानों को छोड़कर शेष सामान्य किसानों की आर्थिक व्यवस्था ठीक न रहने का यह एक कारण है। इन चार महीनों में वह अपनी अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ करने में जुट जाय। अपने घर के निकट एक सुन्दर सी गौशाला का निर्माण करे तथा उसमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार गौएं रखे। आधे खेत में उनको खिलाने जितनी घास अथवा चरी बो दे और आधे में शाक-सब्जियां उगाए। थोड़े ही दिनों में उन्हें खिलाने योग्य घास तथा खर-पतवार उसी में से निकलने लग जाएगा। इस प्रकार घर भर के लिए शुद्ध, ताजा तथा स्वास्थ्यवर्धक दूध-घी ही नहीं मिलेगा वरन् दूध बेचकर वह धन भी प्राप्त कर सकेगा और देश में दूध-घी उत्पादन में वृद्धि भी करेगा। भैंस के स्थान पर गाय को प्राथमिकता देना आवश्यक है। भैंस का दूध सभी नहीं पचा सकते। भैंस पालना साधारण किसान के बलबूते को भी नहीं होता। गाय पालना सामान्य किसान के लिए सुगम भी होता है। एक भैंस गाय से चार गुना अधिक घास और खली खाती है। गायों की संख्या भैंसों से अधिक है किन्तु उनके स्थान पर भैंसों को अधिक महत्व दिया जाता है। गायें उपेक्षा की शिकार हो रही हैं। गौ-वंश की यह उपेक्षा ही हमारी आर्थिक व्यवस्था को लड़खड़ा रही है। गाय के दूध देने का आधार उसे दिया जाने वाला आहार भर नहीं होता। उसमें सम्वेदना शक्ति होती है। गाय की सेवा, दुलार तथा उसकी देखभाल पर उसके दूध की मात्रा निर्भर करती है। कई पाश्चात्य देशों ने इस तथ्य को जाना तथा उससे लाभ उठाया है। वे गौ-नस्ल सुधार पर भी ध्यान रखते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, स्वीडन तथा डेनमार्क में गायों की दूध देने की क्षमता आश्चर्यजनक है। एक सामान्य गाय एक समय में बीस किलो दूध दे देती है। इतना अधिक दूध दुहने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है। ये मशीनें दिन में दो-तीन बार दूध दुहती है। इस प्रकार एक सामान्य गाय दिन में तीस से चालीस किलो तक दूध दे देती है। विशिष्ट गायों का तो कहना ही क्या? इसी का परिणाम है कि न्यूजीलैण्ड में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति एक किलो सात सौ ग्राम, आस्ट्रेलिया में एक किलो चार सौ ग्राम, नारवे में एक किलो तीन सौ पचास ग्राम, डेनमार्क में सवा किलो, इंग्लैण्ड में एक किलो दो सौ पच्चीस ग्राम, कनाडा, जर्मनी, हालैण्ड तथा बेल्जियम में एक किलो पिचहत्तर ग्राम, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक किलो पच्चीस ग्राम, फ्रांस में नौ सौ पचास ग्राम, स्विट्जरलैण्ड में नौ सौ पच्चीस ग्राम तथा पोलैण्ड में सात सौ ग्राम गौ-दूध का उपभोग करना सम्भव हुआ है। कई व्यक्ति तो इससे अधिक मात्रा में भी गौ-दुग्ध पीते हैं। यह तभी सम्भव हो सका है जब कि उन्होंने गायों को अधिक दूध देने योग्य बनाया है, उनकी वैसी ही देखभाल की है। भैंस का दूध इस प्रकार बढ़ाया ही नहीं जा सकता। यही कारण है कि वे भैंस पालना पसन्द नहीं करते। यह हमारे देशवासियों का दुर्भाग्य है कि हमने गाय के स्थान पर भैंस को अधिक महत्व दिया। हमारे धर्मशास्त्रों तथा संस्कृति में गाय को इतना अधिक महत्व मिला है फिर भी इस उपेक्षा के कारण तथा आर्थिक पहलू को भुला देने के कारण वह मांस व चमड़े के लिए काटी जाती है। यदि उसका महत्व दूध-घी, गोबर आदि पदार्थों के कारण रहा होता तो यह स्थिति आती ही नहीं। कृषि एक ऐसा व्यवसाय है कि जिसमें निश्चिन्तता नहीं है। हमारी कृषि को अर्थशास्त्रियों ने जुआ माना है। किसान का अपना ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कहा नहीं जा सकता। जब तक फसल कटकर घर में नहीं आ जाती तब तक आशंका की तलवार उसके सिर पर कच्चे धागे से लटकी रहती है। कहा नहीं जा सकता कि किस समय वह टूटकर गिर पड़े। अति वृष्टि, अनावृष्टि, पाला, तुषार के जरा से धक्के से उसके सपनों का शीशमहल, परिवार व्यवस्था का आधार तथा देश की समृद्धि का महल टूट सकता है। भारतवर्ष में वर्ष भर में केवल साढ़े तीन महीने ही वर्षा होती है। इसकी मात्रा तथा समय बिल्कुल अनिश्चित होता है। जब फसल को पानी चाहिए तब पानी नहीं बरसे और जब फसल को पानी नहीं चाहिए तब मूसलाधार वर्षा हो—ऐसी ही अनिश्चितता बनी रहती है। इसी तरह पाला-तुषार का भी कोई ठिकाना नहीं रहता। इस अनिश्चित भविष्य में किसान के लिए कोई सहारा खोजा जा सकता है तो वह यही है कि वह गौ सम्वर्धन को अपना पूरक व्यवसाय बना ले। जब कभी प्रकृति माता का उस पर कोप हो तो गौ-माता उसे सहारा दे देगी। उसके लिए ही नहीं, देश के लिए भोजन सामग्री की जो समस्या उस समय उपस्थित होगी उसका भी निराकरण अपने दूध के द्वारा कर देगी। हमारे देश में भी अब मशीनों का प्रचार बढ़ रहा है, रासायनिक खादों का प्रयोग बढ़ रहा है। इसका यह अर्थ नहीं है कि अब बैलों व गायों की आवश्यकता नहीं रही। यदि ऐसा होता तो बैलों और गायों की कीमत इतनी बढ़ी नहीं होती। हमारे छोटे-छोटे खेतों में मशीनें काम नहीं देतीं। मशीनों का प्रयोग केवल बारह प्रतिशत बड़े किसान ही कर सकते हैं। शेष छोटे किसान जो कुल कृषकों के 72 प्रतिशत हैं तथा उनके पास देश की कुल कृषि योग्य भूमि 65 प्रतिशत अंश है तथा 38 प्रतिशत खेतिहर मजदूर जिनके पास सारे देश की 5 प्रतिशत भूमि है, वे बेचारे इन मशीनों से कैसे काम लेंगे। मशीनें डीजल खाती हैं जो उनके खेत में उगता नहीं और न वे गोबर ही पैदा करती हैं जो उनके खेतों में खाद का काम दे देता। उनके लिए तो बैल ही उपयुक्त रहते हैं। खेती के साथ गौ-पालन करने में पृथक से कोई धन नहीं खर्चना पड़ता। खेत की निराई करते समय जो खर-पतवार उखाड़ा जाता है। उसे धोकर उसकी कुट्टी काटकर गायों व बैलों को खिला दिया जाय तो चारे की बचत हो जाती है। मूली के पके पत्ते, कड़ी मूली, शलजम के पत्ते, गन्ने के पत्ते, शकरकन्द की अनावश्यक लताएं आदि गायें बड़े चाव से खाकर उत्तम दूध तो देती ही हैं, उन्हें गोबर की सर्वोत्तम खाद के रूप में परिवर्तित कर देती हैं। ऐसी प्रकृति प्रदत्त जीती जागती मशीन को रखना सरल व सुगम है। विश्व में सबसे अधिक पशु भारत में ही हैं किन्तु उत्पादन की दृष्टि से भारत सबसे पीछे है। हमारे ये पशु कितना दूध देते हैं इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में प्रति व्यक्ति दूध का उपभोग केवल दो सौ ग्राम है। भेड़-बकरियां तो ऊन के लिए पाली जाती हैं। दूध को स्वास्थ्य के लिए ठीक तथा भैंस को अधिक दूध देने वाला मानने के कारण गाय को उपेक्षित रखा गया। जबकि मनुष्य के लिए गौ-दुग्ध अमृत है तथा भैंस का दूध दुष्पाच्य तथा अनावश्यक चर्बी बढ़ाने वाला है। गौ-पालन कृषकों की आहार, धन तथा खाद की समस्या को ही हल नहीं करेगा वरन् उन्हें खेती में काम करने के लिए उत्तम बैल भी प्रदान करेगा। छोटे-छोटे तथा बिखरे-बिखरे खेत होने के कारण मशीनों का प्रयोग प्रत्येक किसान के लिए सम्भव नहीं होता। बैल हल जोतने, बुवाई करने, सिंचाई करने, गहाई करने, उपज को खेत से घर तथा बाजार तक पहुंचाने आदि के सब कामों में प्रयुक्त होते हैं। गाय के स्थान पर भैंस पाली जाय तो किसान का यह उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। बैल जितना अधिक काम करते हैं तथा जितने श्रम साध्य होते हैं उतने भैंसे नहीं होते। बैलों को यदि बेचा भी जाए तो उनसे दो-तीन गुनी अधिक कीमत पर बिकते हैं। आवश्यकता से अधिक बैलों को बेचा भी जा सकता है। आज की प्रगतिशीलता की दौड़ में हमारा देश तभी दौड़ सकेगा जबकि हमारे देश के किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो। उनके पास जब उत्तम बीज खरीदने के लिए पर्याप्त धन होगा, थोड़ी सी भूमि से अधिक अन्न उपजाने के लिए पर्याप्त खाद होगी, जी तोड़ परिश्रम करने के लिए उन्हें स्वास्थ्यवर्धक भोजन मिलेगा, तभी वे इस बढ़ती जनसंख्या का भार उठा पायेंगे। इन सबकी पूर्ति के लिए किसान भाई गौपालन तथा गौ संवर्धन को पूरक व्यवसाय के रूप में अपना लें तो वे इस विभीषिका से निपटने में समर्थ होंगे। 
First 2 4 Last


Other Version of this book



गौ संरक्षण एवं संवर्द्धन एक राष्‍ट्रीय कर्तव्‍य
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • प्रस्तावना
  • गौ रक्षा एक अनिवार्य राष्ट्रीय कर्तव्य
  • कृषि प्रधान भारत एवं गौपालन
  • गौवंश का संरक्षण समय की महती आवश्यकता
  • गौरक्षा का सही तरीका
  • पशु वर्ग में असाधारण महत्व गाय का
  • गौ-संवर्धन के लिए आवश्यक प्रयास
  • गाय का दूसरा कोई विकल्प नहीं
  • गौ-दुग्ध पियें, सौ बरस जियें
  • गौपालन हमारी अर्थ नीति का अंग बने
  • गाय हमारी माता है!
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj