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Saturday 06, December 2025

कृष्ण पक्ष द्वितीया, पौष 2025




पंचांग 06/12/2025 • December 06, 2025

पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), मार्गशीर्ष | द्वितीया तिथि 09:25 PM तक उपरांत तृतीया | नक्षत्र म्रृगशीर्षा 08:48 AM तक उपरांत आद्रा 06:13 AM तक उपरांत पुनर्वसु | शुभ योग 11:45 PM तक, उसके बाद शुक्ल योग | करण तैतिल 11:08 AM तक, बाद गर 09:26 PM तक, बाद वणिज |

दिसम्बर 06 शनिवार को राहु 09:36 AM से 10:52 AM तक है | चन्द्रमा मिथुन राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 7:03 AM सूर्यास्त 5:12 PM चन्द्रोदय 6:36 PM चन्द्रास्त 9:31 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत 

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - पौष
  4. अमांत - मार्गशीर्ष

तिथि

  1. कृष्ण पक्ष द्वितीया   - Dec 06 12:55 AM – Dec 06 09:25 PM
  2. कृष्ण पक्ष तृतीया   - Dec 06 09:25 PM – Dec 07 06:25 PM

नक्षत्र

  1. म्रृगशीर्षा - Dec 05 11:46 AM – Dec 06 08:48 AM
  2. आद्रा - Dec 06 08:48 AM – Dec 07 06:13 AM
  3. पुनर्वसु - Dec 07 06:13 AM – Dec 08 04:11 AM


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अमृत सन्देश:- आपकी मुसीबतों को हम अपने ऊपर ले लेंगे । Aapki Musibaton Ko Ham Apne Upar Le Lenge

अमृत सन्देश:- आपकी मुसीबतों को हम अपने ऊपर ले लेंगे । Aapki Musibaton Ko Ham Apne Upar Le Lenge

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गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना | Gurudev Daya Karke Mujhko Apna Lena |

गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना | Gurudev Daya Karke Mujhko Apna Lena |

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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गायत्री माता - अखंड दीपक
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चरण पादुका
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


!! शांतिकुंज दर्शन 06 December 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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अमृतवाणी:- सार्थक जीवन की जीवन दैनिक साधना रम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



जिस दिन आप सो करके उठें, उसी दिन यह रखिए कि बस एक ही दिन हमारे लिए जिंदगी का है, और इस आज के दिन को हम अच्छे से अच्छा बनाकर दिखाएँगे। बस इतनी बात कर लें, तो इसी क्रम को रोज़-रोज़ अपनाते हुए, सारी जिंदगी को भी अच्छा बना सकते हैं।
एक-एक दिन को हिसाब से जोड़ देने का मतलब होता है — सारे समय को, सारी जिंदगी को ठीक तरीके से सुव्यवस्थित बना देना।
प्रातःकाल उठा कीजिए और यह ध्यान किया कीजिए — नया जन्म, हर दिन नया जन्म। हर दिन नया जन्म को लेकर, प्रातःकाल से सायंकाल तक कैसे उपयोग करेंगे?
इसके लिए टाइम-टेबल सवेरे उठकर बना लेना चाहिए —
आप क्या करेंगे? कैसे करेंगे? क्यों करेंगे?
क्रिया के साथ-साथ चिंतन को जोड़ दीजिए। चिंतन और क्रिया को दोनों को जोड़ देते हैं, तो एक समग्र बात बन जाती है।
आप शरीर से काम करते रहें, पर कोई उद्देश्य न हो, और उद्देश्य आप ऊँचे रखें लेकिन उसको क्रियान्वित करने का कोई मौका न हो — तो दोनों ही बातें बेकार हो जाएँगी।
इसीलिए, आप सवेरे उठते ही जहाँ अपने जीवन को सराहें, जहाँ मनुष्य जीवन पर गर्व, गौरव अनुभव करें — वहाँ एक और बात साथ-साथ चालू कर दें।
सायंकाल तक का एक ऐसा टाइम-टेबल बनाएं, जिसको सिद्धांतवादी कहा जा सके, आदर्शवादी कहा जा सके।
इसमें भगवान की हिस्सेदारी रखिए।
शरीर के लिए भी गुज़ारे का समय निकालिए।
भगवान के लिए भी गुज़ारे का समय निकालिए।
भगवान भी तो हिस्सेदार हैं! उसके लिए भी तो कुछ करना है।
आपका शरीर ही सब कुछ थोड़े ही है — आत्मा भी तो कुछ है!
आत्मा के लिए भी कुछ किया जाना चाहिए।
सब कुछ शरीर के लिए ही खिलाने-पिलाने के लिए करेंगे — ऐसा क्यों करेंगे?
क्या आत्मा की कोई औकात नहीं है?
आत्मा की कोई इज्जत नहीं है?
आत्मा का कोई मूल्य नहीं है?
आत्मा से आपका कोई संबंध नहीं है?
अगर है, तो आपको ऐसा करना पड़ेगा।
इसके साथ-साथ दिनचर्या में आदर्शवादी सिद्धांतों को मिलाकर रखना पड़ेगा।
दिनचर्या ऐसी बनाइए जिसमें —
 आपका पेट भरने की भी गुंजाइश हो
अपने कुटुंब-परिवार का सहयोग भी हो
 और… आत्मा को संतोष देने के लिए, परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए कार्य व विचारों का समावेश भी हो
आप स्वाध्याय का दैनिक जीवन में स्थान रखिए।
आप सेवा का दैनिक जीवन में स्थान रखिए।
आप उपासना का दैनिक जीवन में स्थान रखिए।
इन सब बातों का समन्वित जीवन का अभ्यास कर लें —
तो बस… आपका सवेरे का प्रातःकाल वाली संध्या-वंदन पूरा हो जाएगा।

 परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य

 

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अखण्ड-ज्योति से



जो कर्म क्षेत्र में प्रविष्ट होता है, वही आगे बढ़ता है। जो अपनी शुभ कामनाओं का क्रियात्मक रुप प्रदान करता है वही अन्त में पूर्ण विजयी होता है। प्रत्येक मनुष्य का कार्य में संलग्न होना ही राष्ट्र की उन्नति का मूल-मंत्र हैं।

आत्म संयम और चरित्र गठन तो जीवन-व्यापी कार्य है। हममें से यह कोई नहीं कह सकता कि मैं अपना यह कार्य समाप्त कर चुका हूँ और पूर्ण निश्चित हूँ। शरीर के भीतर रहने वाले दुश्मनों पर पूर्ण विजय प्राप्त करना इतना सरल नहीं है जितना अन्य कार्यों में विजय प्राप्त करना और सबसे बलशाली दुश्मन तो यह अकर्मण्यता है जो हमें आगे नहीं चलने देता। कहीं हम आलसी, बातूनी, बक्की-झक्की कोरे अकर्मण्य ही न बन जाए इस बात पर तीव्र दृष्टि रखने की परम आवश्यकता है। चंचलता, व्यग्रता हमारे मार्ग को अवरुद्ध कर सकती हैं, और कर्मभूमि में पग पग पर ठुकरा सकती हैं। वासनाऐं, चिंताएं और काल्पनिक भय हमारे अध्यवसायों को शिथिल कर सकती हैं, पर हमें चित्त संयम रखने का प्रयत्न करना चाहिए।

संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं जो तुम सम्पादित न कर सकते हो। जो कार्य, जो सफलताएँ, जो आर्श्चय-चकित फल एक व्यक्ति प्राप्त कर सकता है, उस सब की सामर्थ्य तुम में भी विद्यमान है। जो प्रतिभा, जो बुद्धि सामर्थ्य एक मनुष्य के पास है वह तुम में भी बीज-रुप से मौजूद है। तुम जो चाहोगे वही कर सकोगे, तुम जिसकी याचना करोगे वही प्राप्त होगा। यदि तुम सुख समृद्धि की याचना करोगे तो तुम्हें सुख मिल सकेगा। यदि मुक्ति की आकाँक्षा करोगे तो मुक्ति मिलेगी। संसार तो कल्पवृक्ष है, उससे तुम जो चाहोगे वही प्रदान करेगा।

तुम विभूति के लिए हाथ पसारोगे, तो तुम्हारे लिए रत्नाकर, वसुन्धरा, और हिमालय के मुक्तामणि खोल देगा। तुम आनन्द प्राप्ति के लिए अनुरोध करोगे तो वही तुम्हारे लिए र्स्वग बन जायगा। जो उसे हरा भरा क्रीडास्थल देखने के आदी है, उसके लिए नित्य, शाश्वत और आनन्द-धाम बन जायगा। केवल एकाग्रचित्त हो, उत्तम और उच्च विचारों को कार्य रुप में प्रकट करना सीख लो। तुम्हारी यह सर्वोत्कृष्ट शक्ति है। इसे इष्ट कार्य में लगाने से अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है।

तुम आज से अभी से दृढ़ संकल्प करो कि थोथी विचार धारा में निमग्न नहीं रहूँगा। मेरी कार्यशक्ति अत्यन्त है। मुझे पूर्ण अनुभव हो गया है कि मनुष्य जो क्रिया करता है उसी का फल उसे प्राप्त होता है मेरी उन्नति या अवनति, मान या हानि मेरे कार्यों पर निर्भर है। उत्तम कार्य, उचित कर्म और निरन्तर साधना-युक्त हो सक्रियात्मक विचार ही उत्तम जीवन निर्माण करते हैं।

समाप्त

 अखण्ड ज्योति 1951 अक्टूबर, पृष्ठ 17

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