आत्मचिंतन के क्षण
सब लोग सुखी तो होना चाहते हैं, परंतु उसके लिए परिश्रम नहीं करना चाहते। यह तो न्याय की बात है, कि बिना कर्म किए फल मिलता नहीं। यदि आप उत्तम फल चाहते हैं तो पुरुषार्थ तो अवश्य ही करना होगा। यदि भोजन खाना है, तो रसोई में तो जाना ही होगा, वहां भोजन बनाने का परिश्रम तो करना ही होगा। तभी अच्छा भोजन प्राप्त हो सकेगा। इसी तरह से जो लोग मन की शांति और सुख पूर्वक जीवन जीना चाहते हैं, तो उन्हें इसके लिए दो कार्य करने होंगे।
पहला - प्रतिदिन सुबह शाम नियमित रूप से ईश्वर की उपासना करना। चाहे 15/ 20 मिनट ही करें, परंतु नियमित रूप से करें। इससे आपकी आत्मा की बैटरी चार्ज हो जाएगी। उसमें ईश्वरीय गुण न्याय दया सेवा परोपकार सच्चाई ईमानदारी आदि प्रविष्ट हो जाएंगे। फिर इन गुणों की सहायता से आप दिनभर दूसरे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।
दूसरा कार्य है कि दूसरों के साथ इमानदारी और सच्चाई से व्यवहार करें। ऐसा करने से ईश्वर आपको अंदर से बहुत सुख शांति आनंद देगा। आपका व्यावहारिक जीवन भी सुखमय होगा।
और यदि आप ऐसा नहीं करते हैं , तो आपकी आत्मा की बैटरी चार्ज नहीं होगी। उसमें काम क्रोध लोभ ईर्ष्या द्वेष अभिमान आदि दोष भरे पड़े रहेंगे, जिनके कारण आप लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर पाएंगे। इसका परिणाम यह होगा, कि मन में भी अशांति होगी और आपका व्यवहार भी बिगड़ जाएगा। आगे चलकर खिन्नता क्रोध पागलपन आदि मानसिक रोग लगेंगे। और शरीर में एसिडिटी हृदय रोग रक्तचाप मधुमेह आदि अनेक रोग भी उत्पन्न हो सकते हैं। यदि ऐसा ही जीवन रहा, तो अगला जन्म भी अच्छा नहीं मिलेगा। पशु पक्षी आदि योनियों में इन सब पाप कर्मों का दंड भोगना पड़ेगा। इसलिए ऊपर बताए दो कार्य प्रतिदिन करें। अपने जीवन को अच्छा बनाएं और सुखी रहें।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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