हमारी वसीयत और विरासत (भाग 86): आराधना, ...

लोक-साधना का महत्त्व तब घटता है, जब उसके बदले नामवरी लूटने की ललक होती है। यह तो अखबारों में इश्तिहार छपाकर विज्ञापनबाजी करने जैसा व्यवसाय है। एहसान जताने और बदला चाहने से भी पुण्यफल नष्ट होता है। दोस्तों के दबाव से किसी भी काम के लिए चंदा दे बैठने से भी दान की भावना पूर्ण नहीं होती। देखा यह जाना चा...

Sept. 16, 2025, 10:15 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 85): आराधना, ...

बाजरे का— मक्का का एक दाना सौ दाने होकर पकता है। यह उदाहरण हमने अपनी संचित संपदा के उत्सर्ग करने जैसा दुस्साहस करने में देखा। जो था, वह परिवार के लिए उतनी ही मात्रा में— उतनी ही अवधि तक दिया, जब तक कि वे लोग हाथ-पैरों से कमाने-खाने लायक नहीं बन गए। उत्तराधिकार में समर्थ संतान हेतु संपदा छोड़ मरना— अप...

Sept. 15, 2025, 10:14 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 84): आराधना, ...

गुरुदेव के निर्देशन में अपनी चारों ही संपदाओं को भगवान के चरणों में अर्पित करने का निश्चय किया। (1) शारीरिक श्रम, (2) मानसिक श्रम, (3) भाव-संवेदनाएँ, (4) पूर्वजों का उपार्जित धन। अपना कमाया तो कुछ था ही नहीं। चारों को अनन्य निष्ठा के साथ निर्धारित लक्ष्य के लिए लगाते चले आए हैं। फलतः सचमुच ही वे सौ ...

Sept. 14, 2025, 11:45 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 83): आराधना, ...

इतने पर भी वे सेवाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक प्रज्ञा परिवार से प्रायः 24 लाख से भी अधिक व्यक्ति संबंधित हैं। उनमें से जो मात्र सिद्धांतों, आदर्शों से प्रभावित होकर इस ओर आकर्षित हुए हैं, वे कम हैं। संख्या उनकी ज्यादा है, जिनने व्यक्तिगत जीवन में प्रकाश, दुलार, सहयोग, परामर्श एवं अनुदान प्राप्त किया ...

Sept. 12, 2025, 10:08 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 82): आराधना, ...

सर्वव्यापी ईश्वर निराकार ही हो सकता है। उसे परमात्मा कहा गया है। परमात्मा अर्थात आत्माओं का परम समुच्चय। इसे आदर्शों का एकाकार कहने में भी हर्ज नहीं। यही विराट ब्रह्म या विराट विश्व है। कृष्ण ने अर्जुन और यशोदा को अपने इसी रूप का दर्शन कराया था। राम ने कौशल्या तथा काकभुशुंडि को इसी रूप में, झलक के र...

Sept. 11, 2025, 10:22 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 81): आराधना, ...

गंगा, यमुना, सरस्वती के मिलने से त्रिवेणी संगम बनने और उसमें स्नान करने वाले का कायाकल्प होने की बात कही गई है। बगुले का हंस और कौए का कोयल आकृति में बदल जाना तो संभव नहीं, पर इस आधार पर विनिर्मित हुई अध्यात्मधारा का अवगाहन करने से मनुष्य का अंतरंग और बहिरंग जीवन असाधारण रूप से बदल सकता है, यह निश्च...

Sept. 10, 2025, 10:17 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 80): जीवन-साध...

तीसरा पक्ष अहंता का है। शेखीखोरी, बड़प्पन, ठाठ-बाट, सज-धज, फैशन आदि में लोग ढेरों समय और धन खरच करते हैं। निजी जीवन तथा परिवार में नम्रता और सादगी का ऐसा ब्राह्मणोचित माहौल बनाए रखा गया कि अहंकार के प्रदर्शन की कोई गुंजाइश नहीं थी। हाथ से घरेलू काम करने की आदत अपनाई गई। माताजी ने मुद्दतों हाथ से चक्क...

Sept. 8, 2025, 10:02 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 79): जीवन-साध...

देखा गया है कि अपराध प्रायः आर्थिक प्रलोभनों या आवश्यकताओं के कारण होते हैं। इसलिए उनकी जड़ें काटने के लिए औसत भारतीय स्तर का जीवनयापन अपनाने का व्रत लिया गया। अपनी निज की कमाई कितनी ही क्यों न हो; भले ही वह ईमानदारी या परिश्रम की क्यों न हो, पर उसमें से अपने लिए— परिवार के लिए खरच देशी हिसाब से किया...

Sept. 4, 2025, 11:12 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 78): जीवन-स...

यह दैवी उपलब्धि किस प्रकार संभव हुई। इसका एक ही उत्तर है— पात्रता का अभिवर्द्धन। उसी का नाम जीवन-साधना है। उपासना के साथ उसका अनन्य एवं घनिष्ठ संबंध है। बिजली धातु में दौड़ती है, लकड़ी में नहीं। आग सूखे को जलाती है, गीले को नहीं। माता बच्चे को गोदी तब लेती है, जब वह साफ-सुथरा हो। मल-मूत्र से सना हो तो...

Sept. 2, 2025, 9:50 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 77): जीवन-साध...

बालक की तरह मनुष्य सीमित है। उसे असीम क्षमता उसके सुसंपन्न सृजेता भगवान से उपलब्ध होती है, पर यह सशर्त है। छोटे बच्चे वस्तुओं का सही उपयोग नहीं जानते, न उनकी सँभाल रख सकते हैं। इसलिए उन्हें दुलार में जो मिलता है, हलके दरजे का होता है। गुब्बारे, झुनझुने, सीटी, लेमनचूस स्तर की विनोद वाली वस्तुएँ ही मा...

Sept. 1, 2025, 10:31 a.m.

कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर हरिद्वार में हुआ ...

हरिद्वार। 16 सितंबर। देवभूमि उत्तराखंड स्थित देवसंस्कृति विश्वविद्यालय (देसंविवि), हरिद्वार एक ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना जब देश-विदेश के विशेषज्ञों, दो नोबेल पुरस्कार विजेताओं और बीस देशों के प्रतिनिधियों ने एक मंच पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence – AI) के वर्तमान और भविष्य पर अपने ...

Sept. 16, 2025, 2:52 p.m.

देसंविवि में एआई फेथ एवं फ्यूचर पर अंतर्...

हरिद्वार 15 सितम्बर। देवभूमि उत्तराखण्ड या यूं कहें कि भारत की पवित्र धरती पर पहली बार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के विश्वास एवं भविष्य को लेकर एक भव्य अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन 16 सितंबर को देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार में होने जा रहा है।     सेमीनार के उद्घाटन समारोह में लोकस...

Sept. 15, 2025, 11:46 a.m.

आपदा प्रबंधन के लिए शांतिकुंज में हुआ प्...

शांतिकुंज,13 सितंबर 2025 - प्रकृति जन्य या मानव निर्मित आपदाओं के समय मानव सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए, अखिल विश्व गायत्री परिवार ने शांतिकुंज मुख्यालय में एक राष्ट्र रक्षा-आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से आए परिजनों ने हिस्स...

Sept. 15, 2025, 11:40 a.m.

हिन्दी हमारी आत्मा की अभिव्यक्ति है, यह ...

देव संस्कृति विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में दो दिवसीय विशेष कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने वाद-विवाद, काव्यपाठ, निबंध लेखन, भाषण, प्रश्नोत्तरी एवं सांस्कृतिक प्रस्तुतियों जैसे विविध आयोजनों में उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम के समापन...

Sept. 15, 2025, 11:33 a.m.

Science Meets Spirituality: Shri Rajnish...

Shri Rajnish Prakash Ji, Former CEO of the Heavy Water Board, Ex-Independent Director of NPCIL, and Ex-Chairman of the Atomic Energy Education Society, visited Shantikunj, Haridwar, on 13th September 2025, accompanied by his brother (Chief Engineer, Delhi) and their families. During his visit, he ha...

Sept. 15, 2025, 11:26 a.m.

Teachers as Nation-Builders: A Value-Cen...

Shri Awadhesh Kumar Mishra Ji, President of Uttar Pradesh Shikshak Sangh (aged 46, Chandauli), who has been associated with Gayatri Parivar since 2019, along with Dr. Rajendra Pratap Singh Ji, often revered as the “Malviya” of the educational field in Chandauli, visited Dev Sanskriti Vishwavidyalaya...

Sept. 15, 2025, 11:21 a.m.

Reviving Vedic Wisdom in Modern Architec...

Architect Abhishek Deshpande Ji, a distinguished Indian architect, sthapati, and spiritual engineer, widely recognized for his expertise in Sthapatya Veda (Vedic Architecture), visited Dev Sanskriti Vishwavidyalaya. During his visit, he met our Pro Vice Chancellor, Respected Dr. Chinmay Pandya, and ...

Sept. 15, 2025, 11:12 a.m.

The world awaits the International Confe...

16th-17th September 2025 Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar GURUDEV’S VISION : SCIENTIFIC SPIRITUALITY When Technology Walks with Dharma,Guided by Ethics and Values Pt. Shriram Sharma Acharya Ji foresaw a future where spirituality and science converge to shape humanity’s destiny. As Artificial ...

Sept. 15, 2025, 10:55 a.m.

Transformative Education Rooted in Value...

Shri Naveen Maheshwari Ji, Director of Allen, Kota, visited Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar, where he interacted with Respected Dr. Chinmay Pandya, Pro-Vice Chancellor of the University. During the meeting, discussions revolved around the transformative power of education and the role of val...

Sept. 15, 2025, 10:39 a.m.

देव संस्कृति विश्वविद्यालय में शोध सत्र ...

देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में पूर्व में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन “वैश्विक समस्याएँ – भारतीय समाधान” के अंतर्गत एक विशेष शोध सत्र का आयोजन हुआ। इस सत्र में विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी के मार्गदर्शन एवं प्रेरक विचारों से प्रतिभागीगण लाभान्वित हुए। इस अवसर पर 40 ...

Sept. 15, 2025, 10:09 a.m.
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गुरुदेव से प्रथम भेंट

15 वर्ष की आयु में— बसंत पंचमी पर्व सन् 1926 को स्वगृह— आँवलखेड़ा (आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत) में पूजास्थल में ही दादागुरु स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी के दर्शन एवं मार्गदर्शन के साथ-ही-साथ आत्मसाक्षात्कार हुआ।

अखण्ड दीपक

सन् 1926 से निरंतर प्रज्वलित दीपक, जिसके सान्निध्य में परम पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने 24-24 लक्ष के चौबीस गायत्री महापुरश्चरण संपन्न किए, आज भी इसके बस एक झलक भर प्राप्त कर लेने से ही लोगों को दैवीय प्रेरणा और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। इसके सान्निध्य में अब तक 2400 करोड़ से भी अधिक गायत्री मंत्र का जप किया जा चुका है।

अखण्ड ज्योति पत्रिका

इसका आरंभ सन् 1938 में पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा किया गया था। पत्रिका का मुख्य उद्देश्य— वैज्ञानिक आध्यात्मिकता और 21वीं शताब्दी के धर्म, अर्थात वैज्ञानिक धर्म को बढ़ावा देना है।

गायत्री मन्त्र

दृढ़ निष्ठा से सतत गायत्री साधना करने से मन (अंतःकरण) तीव्र गति और चामत्कारिक प्रकार से पवित्र, निर्मल, व्यवस्थित और स्थिर होता है, जिससे साधक अपने बाह्य भौतिक जीवन की गंभीर परीक्षाओं एवं समस्याओं से जूझते हुए भी अटल आतंरिक शांति और आनंद की अनुभूति करता है।

आचार्य जी ने सिद्धांत और साधना को आधुनिक युग के अनुकूल तर्क व शब्द देकर सामाजिक परिवर्तन का जो मार्ग दिखाया है, उसके लिए आने वाली पीढ़ियाँ युगों-युगों तक कृतज्ञ रहेंगी।

डॉ. शंकर दयाल शर्मा (पूर्व राष्ट्रपति)

मुझे ज्ञात है कि इस विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता सेनानी और लगभग ३००० पुस्तकों के लेखक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्यजी के स्वप्न को साकार रूप दिया है। इन्हें भारत में ज्ञान क्रांति का प्रवर्तक कहना उपयुक्त होगा। आचार्यश्री का विचार था कि अज्ञानता ही निर्धनता और बीमारी आदि सभी समस्याओं की जड़ है।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (पूर्व राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक)

आचार्य जी का एकाकी पुरुषार्थ सारे संत समाज की सम्मिलित शक्ति के स्तर का है, उनने गायत्री व यज्ञ को प्रतिबंध रहित करने निमित्त जो कुछ भी किया वह शास्त्रों के अनुसार ही था। मेरा उन्हें बारम्बार नमन है।

स्वामी जयेन्द्रतीर्थ सरस्वती (शंकराचार्य कांची कामकोटि पीठ)

श्रद्धेय आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने जो कार्य कर दिखाया वह अद्भुत है, युग के लिए नितांत आवश्यक है। आचार्य जी के साहित्य से मैं बहुत प्रभावित हूँ। प्रज्ञा पुराण ने विशेष रूप से मुझे अपने कार्यों में बहुत बल प्रदान किया है। उनका चिंतन राष्ट्र को शक्तिशाली बनाता और मानव मात्र को सही दिशा प्रदान करता है।

श्री नानाजी देशमुख (संस्थापक ग्रामोदय विश्वविद्यालय)

आचार्य जी द्वारा भाष्य किए गए उपनिषदों का स्वाध्याय करने के बाद उन्होंने कहा कि- ‘‘काश! यह साहित्य मुझे जवानी में मिल गया होता तो मेरे जीवन की दिशाधारा कुछ और ही होती; मैं राजनीति में न जाकर आचार्य श्री के चरणों में बैठा अध्यात्म का ज्ञान ले रहा होता।’’

सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन्

विनोबा जी ने वेदों के पूज्यवर द्वारा किए गए भाष्य को ग्वालियर मेंं एक सार्वजनिक सभा में अपने सिर पर धारण करते हुए कहा- "ये ग्रन्थ किसी व्यक्ति द्वारा नहीं, शक्ति द्वारा लिखे गये हैं।"

आचार्य विनोबा भावे

सुप्रसिद्ध सन्त देवरहा बाबा एक सिद्ध पुरुष थे। उनने एक परिजन से कहा- ‘‘बेटा! उनके बारे में मैं क्या कहूँ? यह समझो कि मैं हृदय से सतत उनका स्मरण करता रहता हूँ। गायत्री उनमें पूर्णतः समा गयी है एवं वे साक्षात् सविता स्वरूप हैं।’’

देवरहा बाबा

‘‘आचार्यश्री ने गायत्री को जन-जन की बनाकर महर्षि दयानन्द के कार्यों को आगे बढ़ाया है। गायत्री और ये एकरूप हो गये हैं।’’

महात्मा आनन्द स्वामी

अपने भावभरे उद्गार पूज्यवर के सम्बन्ध में इस रूप में व्यक्त किए थे- ‘‘आचार्य जी इस युग में गायत्री के जनक हैं। उनने गायत्री को सबकी बना दिया। यदि इसे मात्र ब्राह्मणों की मानकर उन्हीं के भरोसे छोड़ दिया होता तो अब तक गायत्री महाविद्या सम्भवतः लुप्त हो गयी होती।’’

करपात्री जी महाराज