हमारी वसीयत और विरासत (भाग 103): ब्राह्म...

भगवान राम ने लंकाविजय और रामराज्य की स्थापना के निमित्त मंगलाचरण रूप में रामेश्वरम् पर शिव प्रतीक की स्थापना की थी। हमारा सौभाग्य है कि हमें युग-परिवर्तन हेतु संघर्ष एवं सृजन प्रयोजन के लिए देवात्मा हिमालय की प्रतिमा प्राण-प्रतिष्ठा समेत करने का आदेश मिला। शान्तिकुञ्ज में देवात्मा हिमालय का भव्य मंद...

Oct. 17, 2025, 11:30 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 102): ब्राह्म...

अब पुरातनकाल के ऋषियों में से किसी का भी स्थूलशरीर नहीं है। उनकी चेतना निर्धारित स्थानों में मौजूद है। सभी से हमारा परिचय कराया गया और कहा गया कि इन्हीं के पदचिह्नों पर चलना है। इन्हीं की कार्यपद्धति अपनानी, देवात्मा हिमालय के प्रतीकस्वरूप शान्तिकुञ्ज हरिद्वार में एक आश्रम बनाना और ऋषिपरंपरा को इस प...

Oct. 16, 2025, 5:17 p.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 101): ब्राह्म...

अपने समय के विभिन्न ऋषिगणों ने अपने हिस्से के काम सँभाले और पूरे किए थे। उन दिनों ऐसी परिस्थितियाँ, अवसर और इतना अवकाश भी था कि समय की आवश्यकता के अनुरूप अपने-अपने कार्यों को वे धैर्यपूर्वक उचित समय में संपन्न करते रह सके। पर अब तो आपत्तिकाल है। इन दिनों अनेक काम एक ही समय में द्रुतगति से निपटाने है...

Oct. 14, 2025, 11:13 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 100): ब्राह्म...

इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने में बहुत देर नहीं लगती। देवमानवों का पुरातन इतिहास इसके लिए प्रमाण-उदाहरणों की एक पूरी शृंखला लाकर खड़ी कर देता है। उनमें से जो भी प्रिय लगे, अनुकूल पड़े, अपने लिए चुना-अपनाया जा सकता है। केवल दैत्य ही हैं, जिनकी इच्छाएँ-आवश्यकताएँ पूरी नहीं होतीं। कामनाएँ, वासनाएँ, तृष...

Oct. 13, 2025, 10:51 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 98): बोओ एवं ...

अध्यात्म को विज्ञान से मिलाने की योजना— कल्पना में तो कइयों के मन में थी, पर उसे कोई कार्यान्वित न कर सका। इस असंभव को संभव होते देखना हो, तो ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान में आकर अपनी आँखों से स्वयं देखना चाहिए। जो संभावनाएँ सामने हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि अगले दिनों अध्यात्म की रूपरेखा वि...

Oct. 2, 2025, 11:31 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 97): बोओ एवं ...

इसे परीक्षा का एक घटनाक्रम ही कहना चाहिए कि पाँच बोर का लोडेड रिवाल्वर शातिर हाथों में भी काम न कर सका। जानवर काटने के छुरे के बारह प्रहार मात्र प्रमाण के निशान छोड़कर अच्छे हो गए। आक्रमणकारी अपने बम से स्वयं घायल होकर जेल जा बैठा। जिसके आदेश से उसने यह किया था, उसे फाँसी की सजा घोषित हुई। असुरता के ...

Oct. 1, 2025, 10:25 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 96): बोओ एवं ...

इस विराट को ही हमने अपना भगवान माना। अर्जुन के दिव्य चक्षु ने इसी विराट के दर्शन किए थे। यशोदा ने कृष्ण के मुँह में स्रष्टा का यही स्वरूप देखा था। राम ने पालने में पड़े-पड़े माता कौशल्या को अपना यही रूप दिखाया था और काकभुशुंडि इसी स्वरूप की झाँकी करके धन्य हुए थे। हमने भी अपने पास जो कुछ था, उसी विराट...

Sept. 28, 2025, 10:29 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 95): बोओ एवं ...

हिमालययात्रा से हरिद्वार लौटकर आने के बाद जब आश्रम का प्रारंभिक ढाँचा बनकर तैयार हुआ, तो विस्तार हेतु साधनों की आवश्यकता प्रतीत होने लगी। समय की विषमता ऐसी थी कि जिससे जूझने के लिए हमें कितने ही साधनों, व्यक्तित्वों एवं पराक्रमों की आवश्यकता अपेक्षित थी। दो काम करने थे— एक संघर्ष, दूसरा सृजन। संघर्ष...

Sept. 25, 2025, 11:07 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 94): शान्तिकु...

गुजारा अपनी जेब से एवं काम दिन-रात स्वयंसेवक की तरह मिशन का, ऐसा उदाहरण अन्य संस्थाओं में चिराग लेकर ढूँढ़ना पड़ेगा। यह सौभाग्य मात्र शान्तिकुञ्ज को मिला है कि उसके पास एम०ए०, एम०एस०सी०, एम०डी०, एम०एस०, पी०एच०डी०, आयुर्वेदाचार्य, संस्कृत आचार्य स्तर के कार्यकर्त्ता हैं। उनकी नम्रता, सेवाभावना, श्रमशी...

Sept. 25, 2025, 10:54 a.m.

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 93): शान्तिकु...

यहाँ सभी सत्रों में आने वालों की स्वास्थ्य परीक्षा की जाती है। उसी के अनुरूप उन्हें साधना करने का निर्देश दिया जाता है। अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय पर इस प्रकार शोध करने वाली विश्व की यह पहली एवं स्वयं में अनुपम प्रयोगशाला है। इसके अतिरिक्त भी सामयिक प्रगति के लिए जनसाधारण को जो प्रोत्साहन दिए जान...

Sept. 24, 2025, 10:02 a.m.

Celebrating Creative Excellence: Prelimi...

Congratulations to all the winners of the Preliminary Competitions on National Conference on “The Role of Media in Nation-Building” Sincere appreciation to every participant for their valuable contributions and enthusiastic involvement. A huge number of students actively participated in eight vibran...

Oct. 17, 2025, 8:58 a.m.

शिमला में प्रांतीय कार्यकर्ता सम्मेलन मे...

अपने प्रवास के अगले चरण में देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी शिमला पधारे, जहाँ प्रांतीय कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में, आदरणीय डॉ. पंड्या जी ने हिमाचल प्रदेश में हाल ही में आई प्राकृतिक आपदा में प्रभावित लोगों के प्रति गहरी ...

Oct. 16, 2025, 8:55 a.m.

Respected Dr. in Provincial Workers Conf...

Respected Dr. the replica of Dev Sanskriti University, Haridwar in the next phase of his stay. Chinmay Pandya ji came to Shimla, where the provincial workers conference was organized. In the beginning of the program, Honorable Dr. Pandya ji expressed deep condolences to the people affected by the re...

Oct. 16, 2025, 8:48 a.m.

शिमला गायत्री चेतना केंद्र, गुसान में आद...

अपने प्रवास के अंतर्गत देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने शिमला स्थित गायत्री चेतना केंद्र, गुसान में हिमाचल प्रदेश के विभिन्न प्रांतों से पधारे गायत्री परिजनों से स्नेहिल एवं आत्मीय भेंट की। इस अवसर पर आदरणीय डॉ. पंड्या जी ने सभी परिजनों से व्यक्तिगत ...

Oct. 15, 2025, 5:07 p.m.

Respected Dr at Shimla Gayatri Conscious...

Respected Dr. the advertisement of Dev Sanskriti University, Haridwar under his stay. Chinmay Pandya ji visited Gayatri family from different provinces of Himachal Pradesh in Gayatri Chetna Kendra, Gusan located in Shimla. Respected Dr on this occasion. Pandya ji interacted personally with all famil...

Oct. 15, 2025, 5:03 p.m.

Visit of Yoga and Ayurveda Delegation fr...

A 10-member delegation from Sawha Yoga School, Holland, led by Mr. Gergie Ji, visited Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar, to explore the ancient wisdom of Yoga and Ayurveda. The delegation was warmly welcomed by Respected Dr. Chinmay Pandya, Pro Vice Chancellor of the University, who interacted...

Oct. 15, 2025, 2:44 p.m.

मोहाली में प्रांतीय कार्यकर्ता सम्मेलन म...

अपने दो दिवसीय प्रवास के अगले चरण में देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने मोहाली में आयोजित प्रांतीय कार्यकर्ता सम्मेलन में सहभागिता की। इस अवसर पर आदरणीय डॉ. पंड्या जी ने “व्यक्ति के अंदर के अंधकार को कैसे करें दूर” विषय पर प्रेरणादायक उद्बोधन दिया। उन...

Oct. 15, 2025, 2:38 p.m.

Respected Dr in Provincial Workers Confe...

Respected Dr. the replica of Dev Sanskriti University, Haridwar in the next phase of his two days stay. Chinmay Pandya ji participated in the provincial workers conference organized in Mohali. Respected Dr on this occasion. Pandya ji gave inspirational speech on the topic "How to remove the darkness...

Oct. 15, 2025, 1:27 p.m.

मोहाली शक्तिपीठ में दर्शन, प्रणाम एवं दा...

अपने दो दिवसीय प्रवास के अगले चरण में देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी मोहाली स्थित गायत्री शक्तिपीठ पधारे। इस अवसर पर उन्होंने माता गायत्री के पवित्र दर्शन एवं प्रणाम किए तथा श्रद्धेय दादा गुरु की प्रतिमा का अनावरण कर उपस्थित साधक परिवार को आत्मीय आशीर...

Oct. 15, 2025, 9:37 a.m.

Darshan in Mohali Shaktipeeth, Pranam an...

Respected Dr. the replica of Dev Sanskriti University, Haridwar in the next phase of his two days stay. Chinmay Pandya ji visited Gayatri Shaktipeeth located in Mohali. On this occasion, she paid holy darshan and salutations to Mata Gayatri and unveiling the statue of respected Dada Guru and gave so...

Oct. 15, 2025, 9:32 a.m.
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गुरुदेव से प्रथम भेंट

15 वर्ष की आयु में— बसंत पंचमी पर्व सन् 1926 को स्वगृह— आँवलखेड़ा (आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत) में पूजास्थल में ही दादागुरु स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी के दर्शन एवं मार्गदर्शन के साथ-ही-साथ आत्मसाक्षात्कार हुआ।

अखण्ड दीपक

सन् 1926 से निरंतर प्रज्वलित दीपक, जिसके सान्निध्य में परम पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने 24-24 लक्ष के चौबीस गायत्री महापुरश्चरण संपन्न किए, आज भी इसके बस एक झलक भर प्राप्त कर लेने से ही लोगों को दैवीय प्रेरणा और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। इसके सान्निध्य में अब तक 2400 करोड़ से भी अधिक गायत्री मंत्र का जप किया जा चुका है।

अखण्ड ज्योति पत्रिका

इसका आरंभ सन् 1938 में पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा किया गया था। पत्रिका का मुख्य उद्देश्य— वैज्ञानिक आध्यात्मिकता और 21वीं शताब्दी के धर्म, अर्थात वैज्ञानिक धर्म को बढ़ावा देना है।

गायत्री मन्त्र

दृढ़ निष्ठा से सतत गायत्री साधना करने से मन (अंतःकरण) तीव्र गति और चामत्कारिक प्रकार से पवित्र, निर्मल, व्यवस्थित और स्थिर होता है, जिससे साधक अपने बाह्य भौतिक जीवन की गंभीर परीक्षाओं एवं समस्याओं से जूझते हुए भी अटल आतंरिक शांति और आनंद की अनुभूति करता है।

आचार्य जी ने सिद्धांत और साधना को आधुनिक युग के अनुकूल तर्क व शब्द देकर सामाजिक परिवर्तन का जो मार्ग दिखाया है, उसके लिए आने वाली पीढ़ियाँ युगों-युगों तक कृतज्ञ रहेंगी।

डॉ. शंकर दयाल शर्मा (पूर्व राष्ट्रपति)

मुझे ज्ञात है कि इस विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता सेनानी और लगभग ३००० पुस्तकों के लेखक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्यजी के स्वप्न को साकार रूप दिया है। इन्हें भारत में ज्ञान क्रांति का प्रवर्तक कहना उपयुक्त होगा। आचार्यश्री का विचार था कि अज्ञानता ही निर्धनता और बीमारी आदि सभी समस्याओं की जड़ है।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (पूर्व राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक)

आचार्य जी का एकाकी पुरुषार्थ सारे संत समाज की सम्मिलित शक्ति के स्तर का है, उनने गायत्री व यज्ञ को प्रतिबंध रहित करने निमित्त जो कुछ भी किया वह शास्त्रों के अनुसार ही था। मेरा उन्हें बारम्बार नमन है।

स्वामी जयेन्द्रतीर्थ सरस्वती (शंकराचार्य कांची कामकोटि पीठ)

श्रद्धेय आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने जो कार्य कर दिखाया वह अद्भुत है, युग के लिए नितांत आवश्यक है। आचार्य जी के साहित्य से मैं बहुत प्रभावित हूँ। प्रज्ञा पुराण ने विशेष रूप से मुझे अपने कार्यों में बहुत बल प्रदान किया है। उनका चिंतन राष्ट्र को शक्तिशाली बनाता और मानव मात्र को सही दिशा प्रदान करता है।

श्री नानाजी देशमुख (संस्थापक ग्रामोदय विश्वविद्यालय)

आचार्य जी द्वारा भाष्य किए गए उपनिषदों का स्वाध्याय करने के बाद उन्होंने कहा कि- ‘‘काश! यह साहित्य मुझे जवानी में मिल गया होता तो मेरे जीवन की दिशाधारा कुछ और ही होती; मैं राजनीति में न जाकर आचार्य श्री के चरणों में बैठा अध्यात्म का ज्ञान ले रहा होता।’’

सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन्

विनोबा जी ने वेदों के पूज्यवर द्वारा किए गए भाष्य को ग्वालियर मेंं एक सार्वजनिक सभा में अपने सिर पर धारण करते हुए कहा- "ये ग्रन्थ किसी व्यक्ति द्वारा नहीं, शक्ति द्वारा लिखे गये हैं।"

आचार्य विनोबा भावे

सुप्रसिद्ध सन्त देवरहा बाबा एक सिद्ध पुरुष थे। उनने एक परिजन से कहा- ‘‘बेटा! उनके बारे में मैं क्या कहूँ? यह समझो कि मैं हृदय से सतत उनका स्मरण करता रहता हूँ। गायत्री उनमें पूर्णतः समा गयी है एवं वे साक्षात् सविता स्वरूप हैं।’’

देवरहा बाबा

‘‘आचार्यश्री ने गायत्री को जन-जन की बनाकर महर्षि दयानन्द के कार्यों को आगे बढ़ाया है। गायत्री और ये एकरूप हो गये हैं।’’

महात्मा आनन्द स्वामी

अपने भावभरे उद्गार पूज्यवर के सम्बन्ध में इस रूप में व्यक्त किए थे- ‘‘आचार्य जी इस युग में गायत्री के जनक हैं। उनने गायत्री को सबकी बना दिया। यदि इसे मात्र ब्राह्मणों की मानकर उन्हीं के भरोसे छोड़ दिया होता तो अब तक गायत्री महाविद्या सम्भवतः लुप्त हो गयी होती।’’

करपात्री जी महाराज