संगीत से जन-मानस का परिष्कारसंगीत जीवन का रस है, जिससे जीवन का तार झंकृत हो जाते हैं | अपने युग के अनुरूप संगीत व्यक्ति के आदर्शों , मर्यादाओं और मानवी पुरुषार्थ को जागृत करता है | विषम परिस्थितियों में मानवी अंतःकरण को झकझोर कर आदर्शों पर चलने के लिए "संगीत" उपयुक्त साधन है |
सभी कलाओं में संगीत कला का अपना महत्वपूर्ण स्थान है | मानवीय ह्रदय को तरंगित करने में इसके जादुई प्रभाव से सभी परिचित हैं | उच्च भावनाओं के साथ जोड़ने पर इसे मनोरंजन के साथ लोक मानस के परिष्कार के रूप में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है| संगीत के सुर-सागर में मानव की सभी इच्छाएँ, आकांक्षाएँ , एकाकार होकर आनंद की अनुभूति प्राप्त करती हैं | इस तरह संगीत जहाँ व्यक्ति के अंतःकरण को झकझोरता है वहीं उसे सामाजिक परिवेश से भी जोड़ता है |
संगीत आत्मा का स्वर है | गायन आत्मा की कला है | इतना ही नहीं , यह परमात्मोपासना का दिव्य माध्यम है | शुद्ध एवं पवित्र संगीत में प्रचंड क्षमता भरी होती है | यह तन-मन को झंकृत कर उसमे आशा , उत्साह एवं उमंगो की नूतन धाराएँ संचरित करता है | इसे सांस्कृतिक चेतना , सामाजिक समरसता एवं वैयक्तिक सद्भावना व संवेदना जागृत होती है | संगीत की सुरधारा सामगान के दिव्य दर्शियों से लेकर देवर्षि नारद तक , एवं स्वामी हरिदास और तानसेन से लेकर प्रचलित गीतों तक प्रवाहित हुई है | तुलसी, सुर, कबीर, मीरा, नरसी मेहता एवं चैतन्य महाप्रभु आदि संगीत प्रिय भक्तों ने अपने भक्ति भावना के प्रचार का माध्यम संगीत को ही बनाया|
शांतिकुंज के युग-निर्माण मिशन ने कला की इस संकटपूर्ण स्थिति को देखते हुए अपने सीमित साधनों के बावजूद कला को अपने आदर्श रूप में प्रस्तुत करने और उसके माध्यम से जनमानस को श्रेष्ठता तथा आदर्शवादिता की ओर प्रेरित करने के लिए छोटे किन्तु महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं | संगीत के माध्यम से जनमानस की भाव संवेदनाओं को उभरने व लोक-मंगल की ओर उन्मुख करने का प्रयास चल रहा है | मिशन के समर्पित गीतकारों ने भाव परक एवं प्रेरणाप्रद गीतों की रचना की है, जिन्हें युग-गायन के रूप में लोक-मानस के बीच भाव पूर्ण एवं सुमधुर शैली में कुशल संगीतज्ञों द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है |
मिशन के संगीत विभाग ने अति सरलता पूर्वक एवं अति स्वल्पकाल में सस्ते एवं सर्वसुलभ ढ़ंग से युग-गायन व वादन सिखाने का बीड़ा हाथ में लिया है | एक मासीय यगु शिल्पी सत्र और त्रैमासिक सत्र एवं कार्यकर्ता प्रशिक्षण के माध्यम से अब तक हजारों युग-गायक तैयार हो चुके हैं | जो अपने-अपने क्षेत्रों में युग गायन के द्वारा जन ह्रदय को तरंगित करके उन्हें आत्म-कल्याण एवं लोक-कल्याण के पथ पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं |
1. शांतिकुंज में पूर्व में नौ दिवसीय / एक मासीय या परिव्राजक सत्र अनिवार्य रूप से किया गया हो I प्रशिक्षण के दौरान भोजन, आवास, प्रशिक्षण तथा बिजली, पानी निशुल्क है I अपनी निजी खर्च की राशी के अलावा 1000/ रुपये वापसी मार्ग व्यय हेतु अवश्य लायें I 2. ... See More
ढपली प्रारम्भिक प्रशिक्षणप्रथम माह1 -ढपली पर कहरवा ताल बजने की विधि| 2 -कहरवा ताल का बोलकर धीमी गति से अभ्यास| 3 -मन में बोलकर धीमी गति से अभ्यास| 4 -बिना बोले थाह, दुगुन का अभ्यास| 5- ढपली की आवाज कम एवं ज्यादा करने का अभ्यास| 6 -बातचीत करते हुए बजाने... See More
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