विचार करें........
माँ एक-एक भिंडी को प्यार से धोते पोंछते हुये वह काट रही थी छोटे-छोटे टुकड़ों में, फिर अचानक एक भिंडी के ऊपरी हिस्से में छेद दिख गया, शायद सोचा, भिंडी खराब हो गई, वह फेंक देगी लेकिन नहीं, उसने ऊपर से थोड़ा काटा, कटे हुये हिस्से को फेंक दिया। फिर ध्यान से बची भिंडी को देखा, शायद कुछ और हिस्सा खराब था, उसने थोड़ा और काटा और फेंक दिया फिर तसल्ली की, बाक़ी भिंडी ठीक है कि नहीं। तसल्ली होने पर काट के सब्ज़ी बनाने के लिये रखी भिंडी में मिला दिया।
मैं मन ही मन बोला, वाह क्या बात है, पच्चीस पैसे की भिंडी को भी हम कितने ख्याल से, ध्यान से सुधारते हैं, प्यार से काटते हैं. जितना हिस्सा सड़ा है उतना ही काट के अलग करते हैं, बाक़ी अच्छे हिस्से को स्वीकार कर लेते हैं, ये तो क़ाबिले तारीफ है ।
लेकिन अफसोस!
इंसानों के लिये कठोर हो जाते हैं एक ग़लती दिखी नहीं कि उसके पूरे व्यक्तित्व को काट के फेंक देते हैं, उसके सालों के अच्छे कार्यों को दरकिनार कर देते हैं,महज अपने अहम को संतुष्ट करने के लिए उससे हर नाता तोड़ देते हैं ।
क्या पच्चीस पैसे की एक भिंडी से भी कमतर हो गया है आदमी? विचार करें........
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