माता शबरी जैसी हो एकनिष्ठ साधना ः डॉ. पण्ड्या
शांतिकुंज में पहुंचे देश विदेश से हजारों साधक, मनोयोगपूर्वक गायत्री साधना में जुटे
हरिद्वार 9 अप्रैल।अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि माता शबरी जैसी गुरु भक्ति में एकनिष्ठ हो, साधना करनी चाहिए। माता शबरी की श्रद्धा निष्ठा के कारण ही उन्हें प्रभु श्रीराम ने भक्ति के नौ सोपानों का उपदेश दिया। इस नवरात्र साधना में माता शबरी की भाँति श्रद्धाभाव से जप साधना करें।
श्रीरामचरित मानस विषय पर अनेक पुस्तकों के व्याख्याकार श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या चैत्र नवरात्रि साधना के प्रथम दिन देश-विदेश से आये हजारों साधकों को शांतिकुंज के मुख्य सभागार में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जप साधना के दौरान संतों (सद्गुणों से ओतप्रोत) का सत्संग, भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा, उनके चरणों की सेवा, इंद्रियों का संयम, आत्म संतोष, सरल व्यवहार जैसे सद्गुण को अपनायें। इससे भगवान की विशेष कृपा की प्राप्ति होगी। प्रसिद्ध आध्यात्मिक विचारक श्रद्धेय डॉ पण्ड्या ने कहा कि गुरु की आज्ञा का पालन सब कार्यों में सफलता की जननी है। संसार रूपी भवसागर से पार करने के लिए सद्गुरु ही एकमात्र आधार हैं। उन्होंने साधनाकाल में साधनात्मक मनोभूमि बनी रहे, इस हेतु विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से विस्तृत जानकारी दी। इससे पूर्व गायत्री साधकों को श्री श्याम बिहारी दुबे ने नवरात्र अनुष्ठान का संकल्प कराया और साधना के अनुशासन एवं विधि पर विस्तृत जानकारी दी और कहा कि सामूहिक गायत्री साधना से उत्सर्जित ऊर्जा भारत को विश्वगुरु बनाने में मील का पत्थर साबित होगा।
गायत्री के सिद्ध साधक पं. श्रीराम शर्मा आचार्यश्री की तपोभूमि शांतिकुंज में देश के विभिन्न राज्यों से हजारों साधक नवरात्र साधना करने पहुँचे हैं। नवरात्र साधना के प्रथम दिन २७ कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में कई पारियों में साधकों ने अनुष्ठान की सफलता एवं समाज के चहुंमुखी विकास की प्रार्थना के साथ यज्ञाहुतियाँ दीं।
उधर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के सैकड़ों युवाओं ने भी साधना के लिए संकल्पित हो सामूहिक जप अनुष्ठान प्रारंभ किया। देसंविवि के युवा, साधकों को साधना की पृष्ठभूमि से लेकर सफलता तक के विभिन्न विषयों पर मार्गदर्शन करेंगे।
Recent Post
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म निरीक्षण और विचार पद्धति का कार्य उसी प्रकार चलाना चाहिए जिस प्रकार साहूकार अपनी आय और व्यय का ठीक-ठीक खाता रखते हैं। हमारी दुर्बलताओं और कुचेष्टाओं का खर्च-खाता भी हो और विवेक सत्याचरण तथा आत...
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवाद...
आत्मचिंतन के क्षण
मनुष्य अपनी वरिष्ठता का कारण अपने वैभव- पुरुषार्थ, बुद्धिबल- धनबल को मानता है, जबकि यह मान्यता नितान्त मिथ्या है। व्यक्तित्व का निर्धारण तो अपना ही स्व- अन्त:करण करता है। निर्णय, निर्धारण यहाँ...
आत्मचिंतन के क्षण
ईश्वर उपासना मानव जीवन की अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकता है। आत्मिक स्तर को सुविकसित, सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने के लिए हमारी मनोभूमि में ईश्वर के लिए समुचित स्थान रहना चाहिए और यह तभी संभव है जब उसक...
आत्मचिंतन के क्षण
जो अपनी पैतृक सम्पत्ति को जान लेता है, अपने वंश के गुण, ऐश्वर्य, शक्ति,सामर्थ्य आदि से पूर्ण परिचित हो जाता है, वह उसी उच्च परम्परा के अनुसार कार्य करता है, वैसा ही शुभ व्यवहार करता ...
रचनात्मक आन्दोलनों के प्रति जन-जन में उत्साह जगाए
यह यज्ञभाव को जनजीवन में उतारने का चुनौतीपूर्ण समय है
विगत आश्विन नवरात्र के बाद से अब तक का समय विचार क्रान्ति ...
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भाण्डागार है
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भाण्डागार है। ये शक्तियाँ ही जीवन के उत्कर्ष का आधार हैं। शारीरिक, मानसिक, आत्मिक क्षमताओं का विकास, सफलता, सिद्धि, सुख और आनन्द की प्राप्ति सब इन्हीं आत्मशक्तियों के जागरण...
आत्मचिंतन के क्षण
जीवन का लक्ष्य खाओ पीओ मौज करो के अतिरिक्त कुछ और ही रहा होगा यदि हमने अपना अवतरण ईश्वर के सहायक सहयोगी के रूप में उसकी सृष्टि को सुन्दर समुन्नत बनाने के लिए हुआ अनुभव किया होता पर किया क्या जाय बु...
आत्मचिंतन के क्षण
एकाँगी उपासना का क्षेत्र विकसित कर अपना अहंकार बढ़ाने वाले व्यक्ति , ईश्वर के सच्चे भक्त नहीं कहे जा सकते। परमात्मा सर्व न्यायकारी है। वह, ऐसे भक्त को जो अपना सुख, अपना ही स्वार्थ सिद्ध करना च...
आत्मचिंतन के क्षण
किसी एक समुदाय के विचार किसी दूसरे समुदाय के विरुद्ध हो सकते हैं। किसी एक वर्ग का आहार -विहार दूसरे वर्ग के विपरीत पड़ सकता है। एक की भावनायें, मान्यतायें आदि दूसरे से टकरा सकती हैं। इसी विविधता, व...