सजल संवेदना से हुई निहाल
मेरी शादी १९८८ में हुई थी। मेरे अभिभावकों ने मेरे पति की पढ़ाई देखकर मेरी शादी तय कर दी थी। मेरे पति एग्रीकल्चर से एम० एससी० कर रहे थे। पिताजी ने सोचा कि लड़का अच्छी पढ़ाई कर रहा है, सर्विस कहीं न कहीं लग ही जाएगी। मेरे मायके में बिजनेस का काम होता था। शादी के बाद धीरे- धीरे परेशानी बढ़ती ही चली गई। मेरे पति इलाहाबाद में कम्पटीशन की तैयारी कर रहे थे। काफी मेहनत कर रहे थे। दिन रात तैयारी में लगे रहने के बावजूद कोई सफलता नहीं मिली। इससे मन बहुत दुखी रहने लगा। इधर दो बार मैं गर्भवती हुई, किन्तु दोनों बार बच्चे खराब हो गए। मैं इन सब बातों से बहुत टूट चुकी थी। मैं दिन रात रोया करती थी।
इन्हीं दिनों मैं अपने मायके गई हुई थी। मेरा वहाँ भी वही हाल था। मुझे दिन रात चिन्तित देखकर मेरे पिताजी बहुत परेशान रहते थे। शारदीय नवरात्रि नजदीक आ गई थी। तुलसीपुर के विधायक श्री कमलेश सिंह जी सपरिवार शान्तिकुञ्ज जाने के लिए तैयार थे। मेरे चाचा (गुलजारी लाल जी) चाची तथा उनकी लड़की भी साथ जा रहे थे। मेरे पिताजी से चाचाजी ने कहा कि एक सीट खाली है। अगर कोई चलना चाहे तो शान्तिकुञ्ज जा सकता है। चाचाजी की बातों को सुनकर मेरे पिताजी ने कहा कि किसी को क्यों, नीरू को ले जाओ। वह दामाद के सर्विस न मिलने और बच्चे की घटना से दिन- रात रोती रहती है। शायद वहाँ जाने से उसका भाग्य सँवर जाए। इस पर चाचाजी ने कहा कि क्या बात करते हो! सीट न भी खाली होती तो भी हम उसको ले जाते। आप उसको भेज दीजिए। माँ के आशीर्वाद से सब ठीक हो जाएगा। पिताजी ने मुझको यह बात बताई तो मेरे मन में आशा का संचार हुआ। मुझे विश्वास हो गया कि अब मेरे कष्ट ज्यादा दिन नहीं रहेंगे। मैं नवरात्रि में शान्तिकुञ्ज पहुँची। मैंने वहाँ नौ दिन के अनुष्ठान का संकल्प लिया। मेरा अनुष्ठान निर्विघ्न सम्पन्न हुआ।
इसके पश्चात् मेरे चाचाजी मुझे लेकर माताजी के दर्शन हेतु पहुँचे। उन्हें देखकर माताजी बोलीं- कहो बेटा कैसे हो? तो चाचाजी ने कहा- माताजी मैं क्या बताऊँ, अगर बच्चे दुखी हैं तो बाप कैसे सुखी रह सकता है। यह मेरे बड़े भइया की लड़की है, लेकिन उसे अपनी बेटी जैसा ही मानता हूँ। इसकी शादी के तीन साल हो गए। भाई साहब ने पढ़ाई देखकर बेटी की शादी कर दी थी। लेकिन दामाद को नौकरी आज तक नहीं मिली है। और इसके दो बच्चे भी खराब हो गए हैं। जिसके कारण यह बहुत परेशान रहती है। दामाद के लिए दुकान खुलवा दूँ। क्या यह ठीक रहेगा?
चाचाजी की बातें सुनकर मेरा सर सहलाते हुए माताजी कुछ क्षण शान्त हो गईं। उसके पश्चात् बोलीं- गुलजारी परेशान मत होओ, दामाद की बड़ी अच्छी सरकारी नौकरी लगेगी। और इसके दो तीन बच्चे भी होंगे। माताजी के मुख से उनकी वाणी सुनकर मेरी आँखों से आँसू आ गए। मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि माँ का आशीर्वाद अवश्य फलीभूत होगा।
कुछ दिन बाद मेरे पति की कृषि विभाग में नौकरी लगी। उसके पश्चात् उत्तरप्रदेश लोक सेवा आयोग से नायाब तहसीलदार के पद पर चयन हुआ। माँ के आशीर्वाद से मेरे तीन बच्चे भी हुए जो पूर्ण स्वस्थ हैं। इस घटना के बाद से मेरे ससुराल के लोगों को भी गुरुदेव- माताजी के प्रति अनन्य श्रद्धा हो गई। आज हम सभी लोग गुरुकार्य में संलग्न हैं। गुरुदेव- माताजी के आशीर्वाद से मुझे सब कुछ मिला है, जिसकी मुझे आवश्यकता थी। हम उनकी कृपा से अभिभूत हैं।
श्रीमती नीरू बलरामपुर (उत्तरप्रदेश)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
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