गुरु गायत्री दोऊ खड़े प्रारब्ध करै पार
यह उस समय की घटना है, जब मैं लखीमपुर में रहता था। मेरा पुश्तैनी मकान पलिया कला, लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) में है। क्षत्रिय परिवार में जन्म लेने के कारण मेरा खान- पान सब उसी हिसाब से था। सन् १९७५ में मैंने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानन्द जी महाराज से शिव मंत्र की दीक्षा ले ली थी। वे उस समय बहुत प्रसिद्ध थे। श्री राम जन्म भूमि का शिलान्यास उन्होंने ही किया था। मैं दीक्षा लेकर नियमित शिव मंत्र का जाप किया करता था। लेकिन मुझे अपने में कोई परिवर्तन महसूस नहीं हुआ था।
मेरे जीवन का स्वर्णिम समय तब आया जब लखनऊ अश्वमेध यज्ञ होने वाला था। रजवन्दन का कार्यक्रम चल रहा था। गाँव में प्रचार- प्रसार हो रहा था। मेरे परिचित एक डाक्टर साहब थे, उन्हीं के द्वारा मुझे इस कार्यक्रम की जानकारी मिली। मैंने पुनः गायत्री मंत्र से दीक्षा ली और घर में देव स्थापना भी कराई। इस प्रकार नियमित गायत्री मंत्र का जप करने लगा। धीरे- धीरे खुद- ब मेरा खान- पान सात्विक हो गया। अब मैंने धर्म के असली स्वरूप को देखा, धीरे- धीरे साधना की ओर रुचि बढ़ी। मगर पिछले दुष्कृत्यों का फल भोगना शेष था, जो शारीरिक रोग के रूप में प्रकट हुआ। मेरे पेट में पथरी जमा हो गयी थी, जिसका ऑपरेशन आवश्यक था। लखनऊ के डॉ० सन्दीप अग्रवाल से चेकअप कराने गया था। घर में किसी को नहीं बताया था, मगर डाक्टर की सलाह पर मैंने उसी समय ऑपरेशन कराना तय कर लिया और अगले दिन २ दिसम्बर १९९२ को वहाँ एडमिट हो गया।
ऑपरेशन तय हो जाने के बाद से मैं निरंतर पूज्य गुरुदेव का ध्यान करते हुए मानसिक गायत्री जप करता रहा। ऑपरेशन के पहले रोगी को बेहोश किया जाता है। मुझे भी बेहोशी की सूई दी गई, पर मैं बेहोश नहीं हुआ। चुपचाप आँखें बंद कर पड़ा रहा और सब कुछ सुनकर अनुभव करता रहा।
ऑपरेशन की प्रक्रिया शुरू हुई पर आश्चर्य की बात है कि मुझे दर्द का अहसास बिल्कुल नहीं हो रहा था। डॉ० सन्दीप नर्स से कुछ बातें करने लगे। उनके हाथ ऑपरेशन की प्रक्रिया में संलग्र थे। ध्यान बँट जाने से अचानक हाथ गलत दिशा में चल गया। जिसके कारण मेरी आर्टरी (खून की नस) बीच में कट गई। वे बोल उठे- अरे! बहुत गलत हो गया, आर्टरी कट गई। नस कटने से खून का फव्वारा डॉ० संदीप के मुँह पर पड़ने लगा। उन्होंने जल्दी में कहा- ग्लुकोज की पूरी बोतल खोल दो। सभी अपनी- अपनी तरह से उपाय करने लगे। इतने में डॉ० संदीप बोले- ‘‘डॉ० राना हैड गॉन’’।
इसके बाद मैंने अपने आपको बिल्कुल दूसरी ही दुनिया में पाया। न अस्पताल, न चिकित्सक, न मुझे ऑपरेशन की कोई सुध। हरिद्वार के प्रसिद्ध चंडी मंदिर के नजदीक गंगा नदी में, एक छोटे से शिवालय के पास अथाह जल राशि का स्रोत फूट रहा था। चक्र सा भँवर बना हुआ था। उस भँवर से एक प्रकाशपुँज निकलकर आसमान में दृष्टि सीमा से परे तक गया हुआ था। मैं उस प्रकाश के रास्ते आकाश की ओर चला जा रहा था। उस समय मुझे चिन्ता, शोक, दुःख कुछ भी अनुभव नहीं हो रहा था। मैं बहुत प्रसन्नचित्त था। इसी बीच अचानक मैंने देखा कि उसी रोशनी के रास्ते ऊपर से परम पूज्य गुरुदेव आ रहे हैं। वे पीले खद्दर का कुर्ता एव सफेद रंग की धोती पहने हुए हैं। उस प्रकाश मार्ग के बीच मुझे देख गुरु देव आश्चर्य से बोले ‘‘अरे! डॉ० राना, तुम यहाँ कैसे? जाओ, अभी तुम्हें बहुत काम करने हैं। उनके इतना कहते ही मैं पुनः लखनऊ के उस ऑपरेशन रूम में पहुँच गया।
शरीर में ऑपरेशन वाले स्थान पर बिजली के झटके सा अनुभव हुआ और पूरी तरह चेतना लौट आयी। पुनः ऑपरेशन रूम की सारी हलचलें स्पष्ट रूप से अनुभव होने लगीं। वहाँ असिस्टेंट और नर्स से डॉ० संदीप की बातचीत से ही पता चला कि मैं अचेत हो गया था। शायद उन्हें मेरे जीवित होने में भी संदेह था; और अभी- अभी वे आश्वस्त हुए कि मैं जीवित हूँ। ऑपरेशन की प्रक्रिया फिर से शुरू हुई। अन्त में जब टाँका लगाकर पट्टी बाँधी गई तब तक मैं गायत्री मंत्र का मानसिक जप करता रहा।
ऑपरेशन के तीसरे दिन टाँका कटा। उस दिन बाबरी मस्जिद प्रकरण के कारण सभी जगह कर्फ्यू लगा हुआ था। मैं अपनी गाड़ी खुद चलाकर मन में गायत्री मंत्र जपता हुआ सकुशल अपने घर बलरामपुर पहुँच गया था।
अपनी पिछली करनी का फल तो असमय मौत ही थी, पर गुरुदेव ने कृपा कर हमें अपनाया और वह मार्ग दिखाया जिससे इस जीवन का सदुपयोग जान सकूँ। उनकी इस अहैतुकी कृपा से मैं आजीवन कृतार्थ हूँ।
डॉ० कृष्ण कुमार राना पहलवारा (उत्तरप्रदेश)
अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
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