आपको "तरु मित्र" और "तरु पुत्र" बनने के लिए प्रेरित करने के लिए
पर्यावरण और स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता;
स्वस्थ शरीर - शुद्ध मन;
श्रीराम मेमोरियल गार्डन, स्वच्छ, हरा और स्वस्थ पर्यावरण;
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन और मूल संस्था गायत्री परिवार द्वारा 1 करोड़ पेड़ लगाए गए।
इस वृक्षारोपण आंदोलन से 100 पहाड़ियाँ हरी भरी की गयीं।
लक्ष्य और दृष्टि
वृक्ष गंगा अभियान - देश भर में 1 करोड़ पेड़ लगाने और बंजर पहाड़ी क्षेत्रों को उपजाऊ और हरा-भरा बनाने का संकल्प।
पर्यावरण जागरूकता पैदा करने में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना।
इन उद्यानों में योग-ध्यान, जड़ी-बूटी उत्पादन, एक्यूप्रेशर और आयुर्वेदिक उपचार जैसे नए प्रोजेक्ट शुरू करें।
स्वस्थ तन और स्वच्छ मन के बल पर सभ्य समाज का विकास करना।
हमारी अवधारणा
आज वृक्षारोपण केवल पुण्यदायी कर्म ही नहीं, एक राष्ट्र धर्म के रूप में देखा जाना चाहिए। धरती माँ का आँचल सूना होता जा रहा है। उसे पुन: हरा-भरा करने के लिये स्वाधीनता संग्राम जैसे ही किसी आंदोलन और वैसी ही लगन वाले शूरवीरों की जरूरत है। राष्ट्र के विकास के लिये न जाने कितनी योजनायें चल रही हैं; परन्तु यदि पर्यावरण ही न बचा तो सभी योजनाएँ विफल हो जायेंगी। आज सर्वप्रथम आवश्यकता है पर्यावरण संरक्षण की। हम तरुमित्र या तरुपुत्र बनकर वृक्षों की सेवा करें तो अक्षय पुण्य के भागीदार बन सकते हैं।
कार्य योजना
शहर में प्रचुर उद्यान या ग्राम क्षेत्र में बंजर भूमि या पहाड़ी का चयन।
शहर/शहरी क्षेत्र के लिए:
शहर में श्रीराम स्मृति उपवन का विकास।
उद्यान का विकास (युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य स्मृति उपवन)
स्थानीय प्राधिकरण और जनता की मदद से विकास के लिए एक प्रचुर उद्यान का अधिग्रहण करें।
उसके लिए लेआउट योजना तैयार करना।
एक्यूप्रेशर पथ।
पवित्र वृक्षों का रोपण - नक्षत्र वाटिका, गृह वाटिका, राशि वाटिका।
एक्यूप्रेशर पथ के साथ हर्बल प्लांट बेड।
आगंतुकों के लिए लौकी, जवारा, एलोवेरा आदि के रस एवं अंकुरित अनाज आदि की व्यवस्था करना।
योग केंद्र/ध्यान/पिरामिड केंद्र और पक्षियों का आश्रय।
स्मृति चिह्न पौधारोपण।
ग्रामीण क्षेत्र के लिए:
गाँवों में पहाड़ी/बंजर भूमि पर विकास एवं वृक्षारोपण।
पहाड़ी/क्षेत्र का आवंटन।
भूमि/बाड़ का विकास।
नलकूप/सिंचाई का स्रोत।
तरु के चयनित माता और पिता की मदद से तरु पुत्र यज्ञ का उत्सव।
वृक्ष कहाँ एवं कैसे लगायें
1. अपनी जमीन है तो सर्वोत्तम, उसमें यथासम्भव अधिकाधिक वृक्ष लगाएँ।
2. शहरों में घर के सामने, गेट के दोनों ओर अशोक वृक्ष लगाए जाएँ। यह देखने में सुन्दर, औषधीय गुणों से भरपूर और कम फैलाव वाले वृक्ष हैं।
3. घरों के आँगन में कच्ची जमीन न हो, तो बड़े गमले में कम फैलाव वाले गुड़हल एवं चाँदनी के फूलों की बेल आदि लगा सकते हैं।
4. सरकारी सड़कों के किनारे, रेलवे लाइन के समीप जहाँ बेकार जमीन पड़ी हो, वहाँ अपने श्रम से पेड़ लगाये जा सकते हैं, उनका स्वामित्व सरकारी रहे, तो भी हर्ज नहीं।
5. गाँव के रास्तों के किनारे छायादार, चारे के वृक्ष एवं शहतूत, जामुन, लोकाठ, बड़हल आदि लुप्त होते जा रहे उन फलों के वृक्ष लगाएँ, जो बाजार में कम ही दिखते हैं और जिन्हें आज के वृद्ध बचपन में कभी वृक्षों पर चढ़-चढ़ कर खाया करते थे।
6. ऊसर भूमि कितनी ही जगह पड़ी है। ग्राम पंचायतों से पूछ कर खाली जगह का प्रयोग किया जा सकता है।
7. चरागाहों और जंगलों का विकास करें, उनमें सघन वृक्षारोपण करें।
8. प्रत्येक गाँव के देवस्थान/वन गोचर, बंजर भूमि में अधिकाधिक वृक्षों का रोपण करें।
9. शहरों कस्बों में उजड़े उद्यानों को फिर से हरा-भरा करें, विकसित करें।
10. शहरों-कस्बों में अक्सर खाली पड़े प्लॉट में गन्दगी का घर बन जाते हैं। अपने आस-पास के ऐसे स्थान को तुलसी वाटिका, पुष्प वाटिका, औषधीय पौधे लगाकर स्वास्थ्य वाटिका में रूपान्तरित करें। इससे गन्दगी एवं बीमारी से भी बचाव होगा और आसपास के लोग उसका लाभ भी ले सकेंगे। आवश्यकता हो तो प्लॉट मालिक से इसके लिये अनुमति ली जा सकती है।
11. नदियों, झीलों के तटों, किनारों पर भूमि क्षरण रोकने वाले एवं औषधीय वृक्षों का रोपण करें। तालाबों, कुओं, सरोवरों के किनारे विशेष रूप से बरगद, पीपल, गूलर आदि के वृक्ष लगायें।
12. वन प्रदेशों में जहाँ पेड़ काट तो लिये गये हैं, पर फिर लगाये नहीं गये, वहाँ जाकर वृक्ष लगायेंं। जंगलों एवं चरागाहों में विशेष रूप से फलदार वृक्ष लगायें; ताकि बन्दरों आदि वन्य पशुओं को आहार मिल सके। बन्दरों का गाँव, कस्बों और शहरों में आने का एक कारण जंगलों में पर्याप्त भोजन न मिल पाना भी है।
13. सामाजिक संगठनों एवं सरकारी कार्यालयों के परिसर में।
14. प्रत्येक विद्यालय में 24 पौधों का रोपण करायें। (जहाँ भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा का आयोजन होता है, वहाँ यह कार्य सहज है)
15. राष्ट्रीय/राज्य राजमार्गों के किनारे फलदार/छायादार वृक्ष लगायें।
16. श्मशान घाट पर धार्मिक महत्त्व वाले एवं छायादार वृक्ष लगायें।
17. खेतों की मेढ़ों पर फलदार एवं कृषि में सहायक पौधों का रोपण करें।
18. महाविद्यालयों के परिसरों में सम्पर्क कर वृक्षारोपण करें।
19. खाली, वीरान पड़ी छोटी-बड़ी पहाडिय़ों पर।
20. औषधीय गुणों वाले वृक्षों को महत्त्व दें, जैसे- नीम, आँवला, अशोक आदि इन वृक्षों की पौध तैयार करके वितरित करें।
21. यज्ञ अथवा दीप यज्ञों में वृक्षों के तैयार पौधे प्रसाद रूप में संकल्पपूर्वक वितरित किये जायें तथा प्रत्येक कार्यक्रम में इस हेतु लक्ष्य निर्धारित करें।
22. शक्तिपीठों में, मन्दिरों में, उद्यानों में नक्षत्र वाटिका, राशि वाटिका, नवग्रह वाटिका, वास्तु वाटिकाओं आदि का रोपण करें। एक बोर्ड पर सम्बन्धित वृक्षों का महत्त्व भी लिखकर लगाने से लोग और अधिक लाभान्वित हो सकेंगे।
23. विभिन्न धर्म स्थलों पर कुरानी, मसीही, बुद्ध, महावीर वाटिका, गुरु के बाग लगायें।
24. मन्दिरों में पर्यावरण शुद्धि हेतु त्रिवेणी (पीपल, बरगद, नीम) अथवा पंचवटी (नीम, पीपल, बरगद, जामुन, आँवला) रोपण, हरि शंकरी (पीपल, बरगद, पाकड़) का रोपण।
एक निवेदन :-
कम से कम एक वृक्ष अपने पुत्र या पुत्री के समान जिम्मेदारी के भाव के साथ अवश्य लगाएँ.