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Books - आसन और प्राणायाम

Media: TEXT
Language: HINDI
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व्यायाम और प्राणायाम के सम्मिलित अभ्यास

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First 7 9 Last
नीचे कुछ ऐसे प्राणायाम दिये जाते हैं जिनमें आसन और प्राणायाम दोनों की आवश्यकता पूरी होती है अर्थात् व्यायाम और श्वांस प्रश्वांस क्रिया दोनों साथ साथ हैं।
अभ्यास 1
(1) सीधे खड़े हो जाओ। बाहें नीचे बगलों में लटका लो।
(2) भुजाओं को कड़ी रखकर धीरे धीरे ऊपर उठाते जाओ जब तक कि सिर के ऊपर जाकर दोनों हाथ एक दूसरे को छू न जावें। साथ ही नासिका द्वारा वायु खींचते जाओ।
(3) हाथों को कुछ क्षण ऊपर ही उसी अवस्था में रोक रखो और साथ ही सांस को भी रोके रहो।
(4) हाथों को धीरे धीरे नीचे लाओ और साथ ही सांस को खाली करते जाओ। हाथ बगल में आने तक पूरी सांस खाली हो जाय।
अभ्यास 2
(1) सीधे खड़े हो जाओ। दोनों हाथों को नाक की सीध में ठीक सामने कर लो। हाथ कड़े तने हुए, इस प्रकार रहें मानो हाथ जोड़ रहे हो।
(2) दोनों हाथों को कानों की सीध में फैलाओ। सीने को जरा आगे की ओर तानते हुए हाथों को पीठ की तरफ थोड़ा पीछे की ओर ले जाने की कोशिश करो, साथ ही नाक द्वारा सांस खींचते जाओ।
(3) कुछ देर हाथों को उसी दशा में तना हुआ रोक रखो और सांस भी रोके रहो।
(4) हाथों को फिर पहली स्थिति में लाओ जैसे हाथ जोड़े हुए थे, साथ ही सांस को खाली करो।
अभ्यास 3  
(1) सीधे खड़े हो जाओ। दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाओ। और सांस खींचलो।
(2) तने हुए हाथों में लचक न आने पावे उन्हें कड़े और सीधे रखते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर झुको और पैरों की उंगलियां छूने की कोशिश करो। पैरों के घुटने भी लचकने न पावें। यदि इस प्रकार इतना न झुका जा सके कि पैरों की उंगलियां छू जायं तो ज्यादा से ज्यादा जहां तक झुक सकते हो वहीं तक झुको। साथ ही सांस खाली करते जाओ।
(3) कुछ क्षण इसी दशा में ठहरो और सांस रोको।
(4) हाथों को ज्यों के त्यों सीधे और कड़े रखते हुए ऊपर को उठो और धीरे धीरे हाथों को सिर के ऊपर तक ले आओ। साथ ही सांस भरते जाओ।
अभ्यास 4
(1) सीधे खड़े हो जाओ। दोनों हाथों को कमर पर रखलो।
(2) पैर जहां के तहां अपनी जगह पर अड़े रहें और कमर से ऊपर का धड़ जितना पीछे की ओर झुक सके तना हुआ रखते हुए झुकाओ साथ ही सांस खींचते जाओ।
(3) कुछ देर इसी दशा में ठहरो और सांस रोको।
(4) अब धड़ को पूर्व अवस्था में वापस लाकर सीधे हो जाओ और सांस खाली कर दो।
अभ्यास 5

टहलने की कसरत
(1) फौजी कवायद या ड्रिल करने में शरीर को सीधा रखकर जिस प्रकार चलते हैं उस तरह एक से कदम उठाते हुए मध्यम गति से टहलो और मन ही मन कदमों की गिनती करते रहो।
(2) कदमों की संख्या जितनी देर में 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 हो उतनी देर सांस खींचो।
(3) 1, 2, 3, 4 की गिनती के कदमों तक सांस रोको।
(4) फिर 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 कदमों में सांस खाली कर दो।
यदि कमजोरी के कारण 8 तक की संख्या ज्यादा मालूम पड़ती हो तो 6 कर सकते हैं। धीरे धीरे अभ्यास बढ़ाते हुए इस गिनती को आगे बढ़ाना चाहिए। आरंभ में यदि 8 से शुरू किया है तो आगे चलकर 10, 12 आदि क्रम से बढ़ते चलना चाहिए। सभी कसरतों में यही बात है। आरंभ की अपेक्षा धीरे धीरे अभ्यास का दबाव बढ़ाते हुए उसे कठिन करते चलना चाहिए, परंतु ध्यान रहे सामर्थ्य से अधिक न बढ़ना चाहिए, एक अभ्यास को कई कई बार शक्ति के अनुसार दोहराना चाहिए।

***
प्राणायाम की कुछ विधियां
*******
प्राणायाम करने के लिए प्रात:काल का समय अच्छा है। किसी स्वच्छ, खुले, एकान्त एवं शान्त स्थान में आसन बिछाकर बैठना चाहिए। सुखकर रीति से पालथी मारकर सादा पद्मासन से इस प्रकार बैठना चाहिए कि छाती गला और मस्तिष्क तीनों एक सीध में रहें। मेरुदंड सीधा रखना प्राणायाम के समय आवश्यक है ताकि रीढ़ के साथ रहने वाली इड़ा और पिंगला नाड़ियों में होकर निर्वाध गति से प्राण का आवागमन हो सके।
प्राणायाम को तीन भागों में विभक्त किया गया है (1) रेचक (2) कुंभक (3) पूरक। कुंभक के दो भेद हैं (अ) बाह्य कुंभक (ब) आभ्यान्तरिक कुंभक। रेचक वायु बाहर निकालने को, आभ्यान्तरिक कुंभक भीतर वायु रोकने को, बाह्य कुंभक बाहर वायु रोकने को, पूरक सांस खींचने को कहते हैं। अब कुछ प्राणायामों के अभ्यास नीचे बताये जाते हैं।

(1) प्रारंभिक अभ्यासियों के लिए साधारण प्राणायाम
(1) छाती में भरी हुई सारी वायु नाक के रास्ते धीरे धीरे बाहर निकालो।
(2) जितनी देर में वायु निकाली है उसके एक चौथाई समय तक सांस को बाहर ही रोक रखो।
(3) फिर धीरे धीरे सांस लेना शुरू करो और पेट तक फेंफड़ों को पूरी तरह वायु से भरलो।
(4) पहले जितनी देर सांस को बाहर रोक रखा था अब उतनी ही देर वायु को भीतर रोक रखो।
(5) इसे अभ्यास को पहले दिन कम से कम 7 बार करो और फिर नित्य एक दो की संख्या में बढ़ाते जाओ।
(6) उपरोक्त प्रत्येक क्रिया के साथ मन ही मन ‘ॐ’ का जप करते रहें। एक बात विशेष ध्यान रखने की है कि कुंभकों को उतनी ही देर करना चाहिए जितनी देर आसानी से सांस रोकी जा सके। जबरदस्ती अधिक समय तक कुंभक करने से लाभ के बदले हानि की आशंका रहती है।
(2) फुफ्फुस के हर भाग में वायु पहुंचाने के लिए प्राणायाम
(1) नासिका द्वारा धीरे धीरे वायु खींचकर इच्छा शक्ति द्वारा पहले उसे फेफड़े के निचले भाग में भरो। इससे पेट का ऊपर वाला भाग भी कुछ फूल जायेगा।
(2) इसके पश्चात् उसी सांस को फेफड़ों के मध्य भाग में भरो। इससे छाती का बीच वाला भाग कुछ फैलेगा।
(3) सांस के तीसरे भाग से फेफड़ों का ऊपरी भाग भरो। इससे छाती का ऊपरी भाग फैलता है।
(4) अब थोड़ी देर वायु को भीतर रोक रखो और भावना करो कि फेफड़ों के समस्त कोषों में सांस भली प्रकार भरपूर मात्रा में भरी हुई है।
(5) फिर धीरे धीरे वायु को बाहर निकाल दो।
(3) पेट और आंतों तक प्राण पहुंचाने के लिए प्राणायाम
(1) वायु को खींचते हुए सीधे पेट तक लेजाओ जिससे पेट भली भांति फूल जाय।
(2) बिना कुंभक किये ही वायु को बाहर निकालो और पेट जहां तक पिचक सकता हो पिचकाते जाओ।
(3) बिना भीतर बाहर का कोई कुंभक किये लगातार इस क्रिया को कई बार करो।
(4) अभ्यास के समय नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि रखो।
(5) थक जाने पर अन्त में एक कुंभक करके अभ्यास को समाप्त करदो।
(4) शक्ति बढ़ाने के लिए प्राणायाम

(1) ठोड़ी को कंठ कूप (हंसली की पसलियों के बीच में जो गड्ढा है) से चिपकाओ और थोड़ी देर कुंभक करो।
(2) बांए नथुने को अंगूठे से दबाकर बंद करो और दाहिने नथुने से वायु खींचो।
(3) अंगूठे से दाहिने नथुने को दबाकर बन्द करो और बांए नथुने से वायु को निकालो।
(4) दूसरे प्राणायाम में इसका उलटा करो अर्थात् बांए से वायु खींचो और दाहिने से निकाल दो।
(5) हर प्राणायाम के बाद उपरोक्त बदलने का क्रम रखो। अर्थात एक बार दाहिने से खींचना बाएं से छोड़ना, दूसरी बार बाएं से खींचना दायें से छोड़ना, तीसरी बार फिर दाहिने से खींचना बाएं से छोड़ना।
(5) मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए प्राणायाम
(1) दाहिने पैर की एड़ी, बाएं पांव की जांघ पर और बाएं पैर की एड़ी गुदा पर रखो। ठोड़ी को कंठ कूप से चिपकाओ और नेत्र बन्द करलो।
(2) गहरा और लम्बा स्वांस खींचो।
(3) थोड़ी देर भीतर रोक कर वायु को बाहर निकाल दो।
(6) शरीर में उष्णता बढ़ाने के लिए प्राणायाम
(1) पहले साधारण रीति से धीरे धीरे पूरक और रेचक करो।
(2) इस अभ्यास में कुंभक की आवश्यकता नहीं।
(3) क्रमशः श्वास प्रश्वास क्रिया की तेजी बढ़ाते जाओ यहां तक कि सांस लुहार की धौंकनी की तरह चलने लगे।
(7) ब्रह्मचर्य पालन के लिए प्राणायाम
(1) इस प्रकार बैठो कि बांए पैर की एड़ी सीवन (गुदा और अंड कोषों के बीच का स्थान) पर रहे और दाहिने पैर की एड़ी मूत्रेन्द्रिय के ऊपर की जड़ पर रहे।
(2) आसानी के लिए चूतड़ों के नीचे पतला तकिया लगाओ।
(3) जो स्वर चल रहा हो उससे सांस खींचो, दूसरे को अंगूठे से बन्द करलो।
(4) थोड़ी देर कुंभक करके, जिससे सांस खींची थी उस नथुने को अंगूठे से बन्द करके दूसरे से निकाल दो।
(5) सांस खींचते समय गुदा को खूब सिकोड़ो, कुंभक के समय उसे सुकड़ी हुई ही रुकी रहने दो और रेचक के साथ खूब उसे धीरे-धीरे ढीला करो।
8. चित्त की एकाग्रता के लिए प्राणायाम
(1) शवासन — शिथिलासन से लेट जाओ। शरीर को बिलकुल ढीला करदो।
(2) कानों को रूई लगाकर बन्द करलो जिससे बाहर के शब्द सुनाई न पड़ें दृष्टि नासिका के अग्र भाग पर रखो।
(3) साधारण रीति से गहरे सांस लेते और छोड़ते रहो, बीच में थोड़ा कुंभक भी करते रहो।
(4) फिर नेत्रों की पुतलियों को ऊपर चढ़ाकर दोनों भवों के मध्य-त्रिकुटी में दिव्य तेज का ध्यान करो।
(5) कुछ निद्रा सी आवे तो आने दो उसे तोड़ो मत।
(6) इस अवस्था में ‘अनहद’ शब्द सुनाई पड़ते हैं और ज्योति स्वरूप परमात्मा के दर्शन होने से चित्त की एकाग्रता दिन दिन बढ़ती जाती है।
(9) थकान मिटाने के लिए प्राणायाम
(1) साधारण रीति से पूरक करो, और वैसा ही थोड़ा कुंभक करो।
(2) रेचक मुंह से करो। मुंह को सकोड़ कर इस प्रकार हवा बाहर फेंको जैसे सीटी बजाते हैं।
(3) पूरी वायु एक बार में ही बाहर न निकाल दो वरन् रुक रुक कर तीन बार में बाहर निकालो।
उपरोक्त नौ प्राणायाम इस पुस्तक के पाठकों के लिए पर्याप्त हैं। यों तो अनेक प्रकार के प्राणायाम विभिन्न योग्यता वाले व्यक्तियों के लिए हैं परंतु सर्व सुलभ प्राणायाम जिनमें किसी प्रकार का खतरा नहीं है और जो इस पुस्तक के आधार पर आसानी से किये जा सकते हैं ऊपर लिख दिये गये हैं। साधकों को इनका नित्य अभ्यास करना चाहिए। एक प्राणायाम को जितनी बार करना हो, उतनी बार कर चुकने के उपरान्त जब दूसरा करें तो बदलाव के समय थोड़ा सुस्ता लेना चाहिए और थकान मिटाने वाला प्राणायाम एक दो बार कर लेना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि इन सबका नित्य अभ्यास करना चाहिए। अपनी रुचि और आवश्यकता के तीन चार प्राणायाम चुन लेने चाहिए और उन्हीं का अभ्यास करते रहना चाहिए। व्यायाम और प्राणायाम का समय यदि साथ साथ ही रखना हो तो दोनों के बीच में इतना अंतर रहना चाहिए कि शरीर की उत्तेजना और उष्णता शान्त हो जाय।
***
*समाप्त*



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