• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • बुद्धिमानों! मूर्ख क्यों बनते हो।
    • ‘अखण्ड ज्योति’ का अमूल्य ‘स्वास्थ्य अंक’ 1 जनवरी सन 1949 का प्रकाशित होगा
    • हमारी दुर्बलता का कारण
    • साधना की अनुकूलता
    • साधक की दो विपत्तियाँ
    • जीवन के तीन तत्व
    • सत्य धर्म को समझो और अपनाओ
    • सत्कार्यों की कसौटी -सदुद्देश्य।
    • प्रकृति आपसे परिश्रम चाहती है
    • लक्ष्य विहीन-जीवन।
    • क्यों खाएं? कैसे खाएं?
    • बहुत संतान पैदा मत कीजिए
    • इन सम्पत्तियों का सदुपयोग कीजिए
    • उन्नति के पथ पर
    • रामनाम रामबाण दवा है
    • क्या आपने यह पुस्तकें अभी तक नहीं पढ़ीं?
    • विचार-बिन्दु
    • आत्म पथ की ओर
    • आत्म पथ की ओर
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • बुद्धिमानों! मूर्ख क्यों बनते हो।
    • ‘अखण्ड ज्योति’ का अमूल्य ‘स्वास्थ्य अंक’ 1 जनवरी सन 1949 का प्रकाशित होगा
    • हमारी दुर्बलता का कारण
    • साधना की अनुकूलता
    • साधक की दो विपत्तियाँ
    • जीवन के तीन तत्व
    • सत्य धर्म को समझो और अपनाओ
    • सत्कार्यों की कसौटी -सदुद्देश्य।
    • प्रकृति आपसे परिश्रम चाहती है
    • लक्ष्य विहीन-जीवन।
    • क्यों खाएं? कैसे खाएं?
    • बहुत संतान पैदा मत कीजिए
    • इन सम्पत्तियों का सदुपयोग कीजिए
    • उन्नति के पथ पर
    • रामनाम रामबाण दवा है
    • क्या आपने यह पुस्तकें अभी तक नहीं पढ़ीं?
    • विचार-बिन्दु
    • आत्म पथ की ओर
    • आत्म पथ की ओर
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1948 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


प्रकृति आपसे परिश्रम चाहती है

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 8 10 Last
(श्री द्वारिकाप्रसाद कटरहा वी.ए. दमोर)

प्रकृति में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कि हमें हमारी आवश्यक वस्तुएँ बिना मूल्य या बिना परिश्रम के ही प्राप्त हो सकें। प्रकृति का अस्तित्व ही इसलिये है कि वह अपने स्वामी पुरुष से परिश्रम या पुरुषार्थ कराकर उसे अपने वास्तविक स्वरूप का परिचय दिला दे। अतएव प्रकृति हम से आशा रखती है कि हम परिश्रम कर अपनी कमियों की पूर्ति करते जावें और उत्तरोत्तर योग्य बनते हुए पूर्णता को प्राप्त करें। जब तक आप परिश्रम कर बलवान और पूर्ण योग्य न बन जावेंगे तब तक प्रकृति न तो स्वयं चैन लेगी और न आपको ही चैन लेने देगी। आपकी कमियों के कारण यह आपका निरन्तर पीछा करेगी। उसने यह व्यवस्था नहीं की कि आप कमजोर भी बने रहें और आपको अपनी कमजोरी का दुष्परिणाम भी न भोगना पड़े। प्रकृति ने प्रबन्ध तो ऐसा किया है कि आप जितने अधिक कमजोर होंगे जीवन में आपको उतनी ही अधिक अप्रिय अड़चने होंगी और आपको अपनी कमजोरी का दुष्परिणाम किसी न किसी रूप में भोगना ही पड़ेगा। अतएव यदि आप सकुशल जीना चाहेंगे तो आपको अपनी वह कमजोरी दूर करनी ही पड़ेगी। इस तरह प्रकृति आपको आगे बढ़ने की सदा प्रेरणा देती रहेगी। वह आपको, आप की कमियाँ का निरन्तर अनुभव करावेगी जिन्हें दूर करने के लिये प्रयत्नशील होने पर आप आगे बढ़ते जावेंगे और उन्हें न दूर करने पर आप प्रकृति द्वारा निर्ममतापूर्वक नष्ट कर दिये जावेंगे।

यदि आप समझते हैं कि बिना स्वयं परिश्रम किये आप दूसरों के बल पर सुखपूर्वक जी सकते हैं तो यह आपका भ्रम है। यदि आप लुटेरे बनकर दूसरों की परिश्रम की कमाई छीनकर खाना चाहेंगे। और यदि आप स्वयं परिश्रम न करेंगे तो भी आपको दुखी होना पड़ेगा। मान लीजिए आपको किसी वस्तु की आवश्यकता है और वह आप अपने परिश्रम से नहीं प्राप्त करना चाहते और बलवान व्यक्ति की सहायता चाहते हैं तो याद रखिए इस सहायता के बदले में आप को कोई न कोई चीज छोड़नी ही पड़ेगी और अपने सहायक को कुछ न कुछ देना ही पड़ेगा। कहानी है कि जब किसी घोड़े और बारहसिंघे में किसी चरागाह के एकछत्र आधिपत्य के लिये लड़ाई हुई और हारने पर घोड़े ने जंगली मनुष्य से सहायता माँगी तो उसे मनुष्य को अपनी पीठ पर बिठाना पड़ा और इस तरह अपनी स्वतंत्रता को उसे सदा के लिये खो देना पड़ा। प्रयोजन यह है कि यदि आप स्वयं परिश्रम कर अपनी सहायता आप ही नहीं कर सकते तो आपको दूसरों का गुलाम होना पड़ेगा। भारतवर्ष के इतिहास में भी इसी बात के अनेकों पुष्ट प्रमाण हैं। राणा संग्रामसिंह ने लोधी वंश के खिलाफ बाहर से सहायता माँगी और अन्त में बाबर से पराजित होना पड़ा। जयचंद ने पृथ्वीराज के विरुद्ध मुहम्मद गौरी से सहायता माँगी और गौरी के डर से स्वयं प्राण त्यागने पड़े। भारतीय नरेशों ने अपने पड़ोसी नरेशों को परास्त करने के लिये अंग्रेजों से सहायता ली और परिणाम स्वरूप उनकी सहायक संधि स्वीकार करनी पड़ी। अन्ततोगत्वा उन्हें अंग्रेजों का आश्रयत्व स्वीकार करना पड़ा और उनका दास बनना पड़ा। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आप दूसरों से सहायता प्राप्त करना चाहते हैं तो वह सहायता मुफ्त में ही मिलने की कम आशा है। आपको या तो अपने सहायक का आश्रय स्वीकार करना पड़ेगा या बदले में उसका आभार मानकर स्वयं भी उसकी कुछ सेवा करनी पड़ेगी। यदि किसी व्यक्ति ने निष्कामभाव से हमारी कुछ सहायता कर भी दी तो भी इस तरह की सहायतायें बार बार मिलते रहने से हममें स्वयं अपनी सहायता करने का सद्भाव बनाने वाली भावनाओं के ह्रास होने की ही संभावना है। यदि हम अपने लिये किसी की निष्काम सहायता बार बार स्वीकार न भी करें तो भी यदि हम अपने सहायक को उसका बदला न चुका सके तो उपकृत होने के कारण उस व्यक्ति से अपने आपको हीन समझ लेंगे। दूसरों की बार बार सहायता लेने से हममें परमुखापेक्षिता, पर निर्भरता, आत्म-हीनता और बिना हाथ पैर डुलाए निर्मूल्य ही वस्तुओं के प्राप्त करने की भावना बढ़ती है। इस तरह हम देखते हैं कि संसार में बिना परिश्रम किये या कमजोर रहकर सुखी और स्वतंत्र बनना कठिन है। यदि प्रकृति में व्यवस्था होती कि कमजोर और दूसरों पर निर्भर रहते हुए हमारा जीवन सुखपूर्वक चलता रहता और हमें अपनी कमियों का कोई दुष्परिणाम भी न भोगना पड़ता तो फिर बलवान और आत्म-निर्भर होने के लिए लोगों से प्रयत्नों का सर्वथा अभाव भी हो जाता। किन्तु प्रकृति की व्यवस्था एवं सत्ता ऐसी पूर्ण और पटल है कि भूल करने पर अथवा कमजोर रहने पर उसके दण्ड से कोई भी बच नहीं सकता। यदि ऐसा न होता तो उसकी प्रेरणात्मक शक्ति ही लुप्त हो जाती।

प्रकृति आप से आशा करती है कि आप अपना पुरुषार्थ प्रकट करें। यदि आप स्वयं ही अपनी प्रेरणा से अपना पुरुषार्थ प्रकट कर सकें तो अच्छा है अन्यथा प्रकृति आपको नष्ट करने की धमकी देकर आप से बरबस यह कार्य करावेगी। प्रकृति आपको पुरुषार्थी बनाने के लिए कृत-संकल्प है और प्रकृति में जो जीवन-संग्राम चल रहा है वह उसकी इच्छा का परिचायक है। जिन्होंने इसकी इच्छा का पालन नहीं किया उसने उन्हें समूल नष्ट कर दिया हैं।

जो व्यक्ति प्रमादी, आलसी और कमजोर है प्रकृति उसके लिए एक निष्ठुर स्वामी है किन्तु जब वही व्यक्ति साधना द्वारा पुरुषार्थी हो जाता है तब वह उसकी चेरी हो जाती है अपनी समस्त शक्तियाँ उसे प्रकट कर देती हैं, उसके आगे अपनी गुप्त निधियाँ बिखेर देती हैं और उसे पुरुष (या ईश्वर) बना देती है।

----***----

First 8 10 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • बुद्धिमानों! मूर्ख क्यों बनते हो।
  • ‘अखण्ड ज्योति’ का अमूल्य ‘स्वास्थ्य अंक’ 1 जनवरी सन 1949 का प्रकाशित होगा
  • हमारी दुर्बलता का कारण
  • साधना की अनुकूलता
  • साधक की दो विपत्तियाँ
  • जीवन के तीन तत्व
  • सत्य धर्म को समझो और अपनाओ
  • सत्कार्यों की कसौटी -सदुद्देश्य।
  • प्रकृति आपसे परिश्रम चाहती है
  • लक्ष्य विहीन-जीवन।
  • क्यों खाएं? कैसे खाएं?
  • बहुत संतान पैदा मत कीजिए
  • इन सम्पत्तियों का सदुपयोग कीजिए
  • उन्नति के पथ पर
  • रामनाम रामबाण दवा है
  • क्या आपने यह पुस्तकें अभी तक नहीं पढ़ीं?
  • विचार-बिन्दु
  • आत्म पथ की ओर
  • आत्म पथ की ओर
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj