• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • मानवता का अभिनन्दन
    • मानवता का अभिनन्दन (kavita)
    • ऋषि ही धर्म की स्थापना करेंगे
    • विज्ञान और धर्म परस्पर विरोधी नहीं।
    • साधक इन भ्रान्तियों से बचें!
    • Quotation
    • हम महानता की ओर क्यों न चलें?
    • जीवन संग्राम में विजयी कैसे हों?
    • मैं वैरागी कैसे बना?
    • ध्यान-योग द्वारा आत्मोत्कर्ष
    • आप भी प्रेस और पत्र-संचालक बन सकते हैं!
    • संसार-संकट और हमारा कर्तव्य
    • बन्धन से मुक्ति
    • ब्राह्मणत्व का अर्थ है-त्यागमय जीवन
    • हमारे दस प्रत्यक्ष गुरु
    • क्या मनुष्य के लिये अमरत्व संभव है?
    • हिन्दू धर्म में पर्व और त्यौहारों की उपयोगिता
    • धर्म और मानवता
    • प्राचीन भारत में गणतन्त्र शासन
    • हम व्रत धारण करेंगे-आगे बढ़ेंगे?
    • दो पुण्य कर्तव्य—आत्म निर्माण और परमार्थ साधना
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • मानवता का अभिनन्दन
    • मानवता का अभिनन्दन (kavita)
    • ऋषि ही धर्म की स्थापना करेंगे
    • विज्ञान और धर्म परस्पर विरोधी नहीं।
    • साधक इन भ्रान्तियों से बचें!
    • Quotation
    • हम महानता की ओर क्यों न चलें?
    • जीवन संग्राम में विजयी कैसे हों?
    • मैं वैरागी कैसे बना?
    • ध्यान-योग द्वारा आत्मोत्कर्ष
    • आप भी प्रेस और पत्र-संचालक बन सकते हैं!
    • संसार-संकट और हमारा कर्तव्य
    • बन्धन से मुक्ति
    • ब्राह्मणत्व का अर्थ है-त्यागमय जीवन
    • हमारे दस प्रत्यक्ष गुरु
    • क्या मनुष्य के लिये अमरत्व संभव है?
    • हिन्दू धर्म में पर्व और त्यौहारों की उपयोगिता
    • धर्म और मानवता
    • प्राचीन भारत में गणतन्त्र शासन
    • हम व्रत धारण करेंगे-आगे बढ़ेंगे?
    • दो पुण्य कर्तव्य—आत्म निर्माण और परमार्थ साधना
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1959 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


बन्धन से मुक्ति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 12 14 Last
(माता आनन्दमयी)

एक था राजा। उसको धन-दौलत की कमी न थी तो भी उसको शाँति प्राप्त नहीं होती थी। किसी व्यक्ति से उसे बतलाया कि गुरु से मंत्र लेकर जप करने से शान्ति मिल सकती है। तब वह अपने कुलगुरु की खोज करने लगा। इतने दिन तक बेचारे गुरु का किसी को पता भी न था और वह बड़ी गरीबी की हालत में दिन बिता रहा था। राजा का बुलावा पाकर उसे बड़ा आनन्द हुआ। उसने भी राजा को विश्वास दिलाया कि मंत्र का जप करने से उसको शान्ति मिलेगी। राजा ने विधिवत् मन्त्र लिया और श्रद्धापूर्वक उसका जप करने लगा। गुरु महाराज को भरपूर दक्षिणा मिली और वे सुख से रहने लगे।

पर जब काफी समय बीत जाने पर भी राजा को शाँति नहीं मिली तब उसने गुरु को बुलाकर कहा कि देखो, आपके कथनानुसार सब कार्य करने पर भी मुझे शाँति नहीं मिलती। अब आपको सात दिन का समय दिया जाता है। इस बीच में या तो मुझे शाँति का सच्चा उपाय बतलाओ वर्ना तुमको कुटुम्ब सहित मरवा दिया जायगा। यह सुन कर गुरु घर चले आये और चिंता से व्याकुल होने लगे। मृत्यु के भय से उनका खाना-सोना भी छूट गया।

गुरु के एक लड़का था जो मूर्ख की तरह इधर उधर जंगल में घूमकर समय व्यतीत करता और केवल भोजन के लिए घर आता था। जब छः दिन बीत गए तो सातवें दिन मृत्यु को निकट आया समझकर उसके माँ-बाप इतने दुःखी हुये कि उस दिन घर में चूल्हा भी न जला। जब वह लड़का भोजन के समय घर आया तो खाने की कोई सामग्री न पाकर लड़ने-झगड़ने लगा। उसके बाप ने उसे तमाम किस्सा बतलाया। लड़के ने कहा इसमें डरने की क्या बात है, तुम कल मुझे राजा के पास ले चलना, मैं उसे शाँति प्राप्त करने का उपाय बतला दूँगा। बस अब तुम चिन्ता त्यागकर भोजन की व्यवस्था करो।

दूसरे दिन बाप और बेटा दोनों राजा के पास गये। राजा के प्रश्न करने पर गुरु ने लड़के की तरफ इशारा किया कि यह आपको शाँति का मार्ग बतलायेगा। राजा के पूछने पर लड़के ने कहा कि अगर राजा उसके कहने के मुताबिक काम करने को राजी हो तो वह अवश्य शान्ति का उपाय बतला सकता है। राजा ने इसे मंजूर कर लिया।

तब लड़के ने दो बड़ी और मजबूत रस्सियाँ मँगाईं और राजा तथा गुरु को अपने साथ जंगल में चलने को कहा। वहाँ एक स्थान पर तीन बड़े-बड़े पेड़ लगे हुये थे। लड़के ने एक पेड़ के साथ राजा को कस कर बाँध दिया और दूसरे से गुरु को बाँध दिया। तब वह स्वयं तीसरे पेड़ पर चढ़कर आनन्द से गाने और उछल-कूद मचाने लगा। कुछ समय बाद बन्धन की यंत्रणा से व्यथित होकर राजा ने लड़के को पुकारा। पर लड़के ने जरा भी ध्यान न दिया। वह अपने गाने, नाचने में मग्न हो रहा था। तब राजा ने गुरु को पुकार कर कहा, “लड़का तो सुनता नहीं आप ही इस बन्धन को खोल दीजिए।” गुरु ने उत्तर दिया—”मैं तो स्वयं ही बँधा हूँ आपके बन्धन को किस प्रकार खोल सकता हूँ!”

बन्धन के कष्ट से चिल्लाते-चिल्लाते अकस्मात् राजा के चित्त में दिव्यज्ञान उत्पन्न हुआ। वह सोचने लगा कि मैं विषय-भोगों के बन्धनों में रहकर शान्ति किस प्रकार पा सकता हूँ और जो गुरु स्वयं साँसारिक बन्धनों में बँधा है वह मुझे बन्धन-मुक्त किस प्रकार कर सकता है? तब उसने गुरु के लड़के को पुकारा कि अब रस्सी को खोल दो मुझे शाँति का मार्ग मालूम हो गया। गुरु-पुत्र ने आकर उसे खोल दिया और वह अपनी राजधानी को लौटने के बजाय वहीं वन में रहकर आत्म-चिंतन करने लगा।

First 12 14 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • मानवता का अभिनन्दन
  • मानवता का अभिनन्दन (kavita)
  • ऋषि ही धर्म की स्थापना करेंगे
  • विज्ञान और धर्म परस्पर विरोधी नहीं।
  • साधक इन भ्रान्तियों से बचें!
  • Quotation
  • हम महानता की ओर क्यों न चलें?
  • जीवन संग्राम में विजयी कैसे हों?
  • मैं वैरागी कैसे बना?
  • ध्यान-योग द्वारा आत्मोत्कर्ष
  • आप भी प्रेस और पत्र-संचालक बन सकते हैं!
  • संसार-संकट और हमारा कर्तव्य
  • बन्धन से मुक्ति
  • ब्राह्मणत्व का अर्थ है-त्यागमय जीवन
  • हमारे दस प्रत्यक्ष गुरु
  • क्या मनुष्य के लिये अमरत्व संभव है?
  • हिन्दू धर्म में पर्व और त्यौहारों की उपयोगिता
  • धर्म और मानवता
  • प्राचीन भारत में गणतन्त्र शासन
  • हम व्रत धारण करेंगे-आगे बढ़ेंगे?
  • दो पुण्य कर्तव्य—आत्म निर्माण और परमार्थ साधना
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj