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Magazine - Year 1959 - Version 2

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Language: HINDI
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क्या सन् 1962 में विश्वयुद्ध की आग भड़केगी

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(एक “भारतीय योगी”)

भविष्यवाणियों की कितनी बातें सत्य होती हैं अथवा समाचार पत्रों में प्रायः जो भविष्यवाणियाँ प्रकाशित होती रहती हैं उनमें से कितनी ठीक निकलती हैं, इस वाद विवाद में यहाँ नहीं पड़ना चाहते। पर हमारा कथन यह है कि जब से मानव जाति के इतिहास का पता चलता है तब से सभी देशों और जातियों में भविष्यवक्ता होते आये हैं और उनमें से कितने ही नाम हजारों वर्ष बीत जाने पर आज भी कायम हैं। यहूदी लोगों के इतिहास में तो भविष्यवाणियों का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। ईसाइयों की बाइबिल के भविष्य-कथन भी बड़े अद्भुत और महत्वपूर्ण हैं। भारतवर्ष में त्रिकालदर्शी महात्मा सदा से पाये जाते हैं। यहाँ के योगसिद्ध पुरुषों के लिये भविष्य दर्शन एक बहुत मामूली सी बात मानी जाती है। इस प्रकार सिद्ध होता है कि भविष्य को जान सकना कोई असम्भव बात नहीं है। हाँ हर एक ज्योतिषी या साधु बाबा की भविष्यवाणी को ब्रह्मवाक्य समझ कर उसके पीछे आँख बन्द करके चल पड़ना समझदारी की बात नहीं है। हमारा कर्त्तव्य है कि किसी भविष्य पर तभी विश्वास करें जबकि उसके विषय में गम्भीर रूप से विचार कर लें और उसके आगे पीछे की अन्य घटनाओं से मिलाकर उसकी संभावना का अनुमान लगायें।

इस समय संसार में तीसरे महायुद्ध की चर्चा सबसे अधिक सुनाई पड़ रही है। दो-चार महीने के भीतर कहीं न कहीं ऐसी घटना हो ही जाती है जिससे संसार की शाँति भंग होने के लक्षण जान पड़ते हैं और युद्ध सामग्री से लदे जहाज अपने अड्डों को छोड़कर मैदान में निकल आते हैं। फारमोसा, मिश्र, लेबनान, ईराक, पश्चिमी जर्मनी में ऐसी हलचलें दो तीन वर्ष के भीतर ही देखी जा चुकी हैं। हमारा और संसार का सौभाग्य है कि शाँति प्रेमियों के प्रयत्नों से अभी तक के संकट किसी प्रकार टल गये और हम एटम और हाइड्रोजन बमों के रौद्र रूप के दर्शन से बचे रहे।

पर जैसी कहावत है “बकरी की माँ कब तक खैर मनायेगी?”—मूलकारणों के ज्यों का त्यों बने रहने पर ये ऊपरी उपचार कब तक काम देंगे? अमरीका और रूस की तैयारियाँ बराबर चल ही रही हैं और जानकार लोगों का ख्याल है कि ये बादल कभी न कभी बरस कर ही रहेंगे। ज्योतिषी लोग तो बराबर तीसरे महासमर की भविष्यवाणी कर रहे हैं। लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व “अखण्डज्योति” के एक अंक में अनेक विद्वानों की भविष्यवाणियाँ प्रकाशित की गई थीं जिनमें सन् 1962 और उसके आसपास के समय में संसार का नाश करने वाले महासमर की भविष्य वाणी की गई थी। अब 22 अप्रैल 1959 के “दैनिक हिन्दुस्तान” (नई दिल्ली) में फिर एक वैसी ही भविष्यवाणी छपी है जिसका एक अंश यहाँ दिया जाता है—

“फलित ज्योतिष की दृष्टि से नवम्बर 1961 से 1965 तक विश्व का भविष्य संकटमय जान पड़ता है। 1962 में आठ ग्रहों की युक्ति के कारण विश्वयुद्ध हो सकता है। यह युद्ध अमरीका और रूस के मध्य जर्मनी और बर्लिन समस्या को लेकर छिड़ सकता है। संभवतः विश्व युद्ध का आरम्भ 16 जनवरी 1962 को होगा और केवल 6 महीने चलेगा। उससे ब्रिटेन, फ्राँस, तुर्की, पाकिस्तान और ईरान पर अधिक बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है। गुप्त-योग के अनुसार अन्ततः दोनों लड़ने वाले पक्ष भारत से संधि करवाने की प्रार्थना करेंगे। तटस्थ भारत के सद्प्रयत्नों से शीघ्र ही शाँति स्थापित हो जायेगी।”

इस प्रकार सन् 1962 में संसार-संकट उत्पन्न होने की संभावना अनेक लोग प्रकट कर चुके हैं। और तो क्या उत्तर प्रदेश के ज्योतिष प्रेमी प्रधानमंत्री श्री. सम्पूर्णानन्दजी ने भी एक बार इस संभावना का समर्थन किया था।

जैसा हम ऊपर कह चुके हैं कि ऐसी भविष्यवाणियों को उसी दशा में सच माना जा सकता है जब किन्हीं अन्य स्रोतों से भी उनका समर्थन होता हो। संयोग से हमको दो प्रमाण मिले हैं जो अब से बहुत पुराने होने पर ठीक इसी संभावना को प्रकट करते हैं। अब से ठीक 20 वर्ष पहले इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले मासिक पत्र “सतयुग“ के मार्च 1940 के अंक में पृष्ठ 50 पर एक लेख छपा था जिसका शीर्षक है “पृथ्वी का भार हलका होगा” और लेखक हैं स्वामी कृष्णानन्द जी सरस्वती। वह एक लम्बा लेख है, इसलिये हम उसका कुछ अंश ही यहाँ देते हैं। नीचे जो उद्धरण दिया जाता है उसका एक-एक शब्द “सतयुग“ से ज्यों का त्यों दिया जा रहा है—

“सन् 1913 के जून मास का जिक्र है कि मैं अपने मित्र रायबहादुर कप्तान बलवीर सिंह से मिलने के लिये उनके ग्राम रामपुर (पंजाब) गया। वहाँ जाकर मैंने क्या देखा कि एक साधु महात्मा पलंग पर लेटे हुये हैं और राय बलवीर सिंह उनके पास फर्श पर बैठे हुये हैं। उन दिनों मेरा साधु महात्माओं में विश्वास नहीं था और मैं किसी साधु के चरण छूना अपनी हतक समझता था। परन्तु न मालूम मैंने जाते ही उन महापुरुष के चरणों में सिर रख दिया। उन्होंने बड़े स्नेह से मुझे बैठ जाने का इशारा किया मैंने वहाँ बैठकर अनुभव किया कि इस स्थान में शान्ति है, साथ ही चित्त में यह संकल्प उठा कि यह विलक्षण साधु कैसे हैं? शाम को वह महापुरुष उठे और ठंडाई पीकर उपदेश देने लगे। वह बराबर चार घण्टे तक उपदेश देते रहे पर हम लोगों का यह पता न लगा कि कितना काल व्यतीत हो गया है।

दूसरे दिन वह 8 बजे फिर उपदेश देने लगे और उपदेश देते-देते दो बजे गये। आज के उपदेश का सार था कि सतयुग आयेगा। यह शब्द सुनते ही मेरे चित्त में संकल्प उठा कि अभी तो कलियुग की बहुत मियाद बाकी है, अभी से सतयुग कैसे आवेगा? इस संकल्प के उठते ही उन्होंने उसी क्षण इसका इस प्रकार समाधान कर दिया कि—”प्रत्येक युग में दूसरा युग वर्तता है, यह प्रकृति का नियम है। सतयुग में भी कलियुग वर्ता था, इसी प्रकार अब कलियुग में सतयुग वर्तेगा।” इसके बाद उन्होंने फिर फरमाया कि सृष्टि की वर्तमान अवस्था ऐसी हो गई है कि यदि अब सतयुग न आवे तो यह सृष्टि अधिक समय तक स्थिर ही नहीं रह सकती है। कारण, मनुष्यों की शक्तियाँ इतनी हीन होती जा रही हैं कि यदि अब सतयुग न आवे तो यह दो सौ वर्ष में ही नष्ट प्रायः हो सकती है और ऐसा भगवान को दृष्ट नहीं है। इसलिये इस काल चक्र को कायम रखने के लिये भगवान को बीच में सतयुग रूपी टेका (आधार) लगाकर इसका स्थिर रखना आवश्यक है।

साधन

अत्यन्त अशान्ति और घोर कलियुग का कारण जन-संख्या की वृद्धि है इसलिये भगवान संसार की वर्तमान जनसंख्या को घटाकर एक चौथाई या एक तिहाई कर देंगे। फिर रोटी का झगड़ा समाप्त हो जायगा। सबको अपने ही देश में काफी रोटी मिल जायगी। इसलिये दूसरे देशों को विजय की लालसा ही शेष न रहेगी। सबको स्वराज्य प्राप्त हो जायगा। मजहबों के झगड़े खत्म हो जायेंगे। ऊँच नीच का प्रश्न हल हो जावेगा, इसलिये सामाजिक वैमनस्य शान्त हो जावेगा। सबको मनुष्य समझा जायेगा, भ्रातृभाव की स्थापना हो जावेगी। राजनैतिक और आर्थिक गुत्थियाँ ऐसी हल हो जावेंगी कि न तो कोई भूखा रहेगा और न किसी पर अन्याय हो सकेगा। फिर एक बार रामराज्य आ जायगा। परन्तु रामराज्य स्थापना होने से पहले भगवान अपने चार दूत भेजेंगे जो जन-संख्या को कम करेंगे। वह यह हैं—(1)लड़ाई (2) बीमारी (3) अकाल (4) अग्नि का लगना।

जब सन् 1914 का जर्मन का युद्ध छिड़ा, उस समय हम लोगों ने पूछा—क्यों महाराज जी, क्या यही लड़ाई नाश का कारण होगी? उस समय श्री महाराज जी ने फरमाया “नहीं यह लड़ाई तो साधारण है, इसके पीछे एक और लड़ाई होगी जिसमें बड़े भयंकर अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग होगा जो अब तक कभी सुना भी नहीं गया है। लड़ाई में तो मनुष्य मरेंगे ही, परन्तु उससे कई गुना अधिक मनुष्य उन विषैली वस्तुओं के प्रयोग से मरेंगे जिनका जहर समस्त संसार में फैल जावेगा और उनसे ऐसी बीमारियाँ हो जायेंगी जिनसे मनुष्यों का बचना बड़ा दुर्लभ हो जायगा

ऐसा कब होगा

यह उपदेश तो हमने सन् 1913 में सुना था। इसके बाद सन् 1934 का जिक्र है कि एक आदमी आश्रम में आया। उस समय श्री महाराज जी ने फिर सतयुग आने का जिक्र किया। वह कुछ साहसी आदमी था। उसने झट प्रश्न कर दिया—”महाराज जी, वह सतयुग कब आवेगा?” महाराज जी ने फरमाया—”तीस वर्ष के भीतर-भीतर सतयुग आ जावेगा।” इससे पाठक अनुमान लगा लेवें कि सतयुग कब आयेगा।”

*****

दूसरा उद्धरण अगस्त 1944 के ‘सतयुग‘ में प्रकाशित श्री पवनकुमार के लेख का है। वे कहते हैं—

“इस समय लोगों को जैसे-जैसे लड़ाई कुछ सुलझती दिखलाई पड़ती है उनका ध्यान भारत के भविष्य की ओर आकर्षित हो रहा है।

वर्तमान महायुद्ध अभी अपूर्ण रहेगा। संवत् 1920 (सन् 1963) में क्षय मास है (अर्थात् 1 वर्ष में 11 महीने ही होंगे)। उस समय तीसरा संसार व्यापी महायुद्ध अवश्य होगा। इन कारणों से हमको अभी सुख शाँति की आशा करना व्यर्थ है।”

*****

हम फिर कह देना चाहते हैं कि हम सब भविष्यवाणियों पर ज्यों का त्यों विश्वास कर लेने के पक्ष में नहीं है। पर हम यह भी नहीं मानते कि भविष्य को जान सकना सर्वथा असम्भव है। मनुष्य में ऐसी शक्तियाँ हैं जिनको विकसित करने से वह होनहार घटनाओं को जान सकता है। जिस प्रकार सब लोग दूसरे व्यक्तियों के मन की बात नहीं जान सकते पर मनोवैज्ञानिक और मैस्मरेजम आदि गुप्त विद्याओं का अभ्यास करने वाले दूसरे के मन में उठने वाले विचारों को जान लेते हैं। उसी प्रकार भविष्य की घटनाओं का ज्ञान भी अभ्यास द्वारा हो सकना संभव है। अब जब कि हम देखते हैं कि वर्तमान राजनीतिक संघर्ष और दावपेचों के फल से सन् 1962 के आस पास युद्ध का छिड़ना कुछ भी असंभव नहीं है और उसी बात को हम एक बीस वर्ष पुराने लेख में देखते हैं जब कि रूस और अमरीका मित्र बनकर जर्मनी से लड़ रहे थे और वर्तमान संघर्ष की किसी को कल्पना न थी, तो हमको कहना पड़ता है कि भाई वर्तमान भविष्य वाणियों के अनुसार अगर 1962 में महा समर आरंभ हो जाय तो इसमें कोई आश्चर्य की बात न होगी।

इस युद्ध के फलस्वरूप संसार में होने वाले महानाश की बात तो वह तो सर्व विदित है। उपर्युक्त उद्धरण में महात्मा जी ने संसार में एक चौथाई या एक तिहाई मनुष्यों के बचने की भी बात कही थी, पर आजकल के वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ तो कहते हैं कि हमारे पास इतने हाइड्रोजन बम हैं कि हम तीन दिन के भीतर दुनिया के एक-एक मनुष्य को मार सकते हैं। इन हथियारों और बमों की वास्तविक शक्ति का वर्णन फिर कभी किया जायगा।

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