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Magazine - Year 1960 - Version 2

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विश्वासयुक्त प्रार्थना का प्रभाव

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(श्री चूड़ामन मोतीलाल मुंशी)

प्रार्थना श्रद्धावान भक्त के हाथ में स्वर्ग के दिव्य भण्डारों को खोलने की कुँजी है। प्रार्थना द्वारा जब भक्त प्रभु को आत्म-समर्पण कर देता है तभी उसमें नवीन बल, साहस, पौरुष, धैर्य आदि दैवी सम्पदाओं का विकास होता है।

भगवान पर अविचल विश्वास रखकर श्रद्धा−भक्ति पूर्वक प्रार्थना करने से हमारी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होती है। इसके अतिरिक्त नरसिंह, द्रौपदी आदि भक्तों के कई ज्वलन्त प्रमाण हैं। यह सत्य है कि भगवान् प्रार्थना से पूर्व ही हमें उत्तर देते हैं। परन्तु चाहिये प्रार्थी का भगवान पर अटूट विश्वास और एक मात्र भगवान की ही शरणागति। इसे ही विश्वास युक्त प्रार्थना कहते हैं।

प्रार्थना में श्रद्धा-विश्वास की अतीव आवश्यकता होती है। बिना श्रद्धा-विश्वास के प्रार्थना वैसी ही है जैसे बिना पहियों की गाड़ी । विश्वास संचित प्रार्थना का प्रभाव बिजली जैसा होता है। इसलिये हमें श्रद्धा-विश्वास सहित भगवान से प्रार्थना करनी चाहिये। इसके अतिरिक्त प्रार्थना में और एक बात ध्यान रखने योग्य है। वह है आत्म-विश्वास। हमें सर्व प्रथम अपने आत्म-विश्वास में अभिवृद्धि करनी होगी क्योंकि आत्म-विश्वास के बिना भगवान पर भी विश्वास नहीं होता। इसके बिना प्रार्थना अधूरी रहेगी। महात्मा गाँधी ने एक स्थान पर कहा है कि आत्म-विश्वास का अर्थ है ईश्वर की अनन्त शक्ति में विश्वास। जो असंख्य विपत्तियों से घिर जाने पर भी अपने कर्तव्य से वंचित नहीं होता वह ही सच्चा आत्म-विश्वासी है।”

दरअसल में हमारी आत्मा ही परमात्मा का संक्षिप्त स्वरूप है। और प्रार्थना करने का तात्पर्य है आत्मा का परमात्मा से अनन्य संयोग। अतएव प्रार्थना में आत्म-विश्वास की कमी किसी भी दशा में नहीं होनी चाहिये।

जब भगवान अर्थात् विराट पुरुष आदिकर्त्ता ने विश्व रचना का संकल्प किया तो उनकी संकल्प शक्ति ने विश्वकर रूप धारण कर लिया। मनुष्य उसी विराट पुरुष जगत्कर्त्ता का अंश है। वेद भी कहते हैं “वह एक ही अनेक है।” गीता में स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है ममैवाँशो जीवलोके जीवभृतः सनातनः। इससे सिद्ध है कि मनुष्य परमात्मा का अंश है और अपनी आत्मा पर विश्वास रखने का तात्पर्य है भगवान् पर विश्वास रखना ।

प्रार्थना में, विश्वासयुक्त प्रार्थना में रोगी को निरोगी , निर्धन को धनी तथा निर्बल को बलवान बनाने और मरणासन्न व्यक्ति को नवजीवन प्रदान करने की अमोघ शक्ति है। प्रार्थना से ही द्रौपदी की लज्जा रक्षा हुई, विभीषण को लंकेश्वर का पद प्राप्त हुआ, गजराज के प्राणों की रक्षा भी प्रार्थना ही से हुई, नरसी की हुँडी सिकारने में भी प्रार्थना का ही हाथ था तथा प्रार्थना की शक्ति से ही भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है। ऐसे अनेकों उदाहरणों से पाठक परिचित ही होंगे।

जो परमात्मा का भजन करता है, उसके सुख दुःख का ख्याल परमात्मा स्वयं करता है। हम भक्तों के भक्त हमारे। भक्त की लाज भगवान् कभी नहीं जाने देता, परन्तु भक्त को भगवान् कसौटी पर अवश्य कसता है, क्योंकि उसपर कृपादृष्टि भी वही रखता है। भक्त के लिये असम्भव वस्तु को सम्भव भी वही बना देता है। भक्त की प्रतिष्ठा को भी निरन्तर वही बढ़ाता है। इसका अनुभव हमें भक्तों के परम पावन चरित्रों से होता है। मीरा, सूर,तुलसी को कौन नहीं जानता?

पिता सदैव अपने पुत्रों का हित चाहता है। अतः अवश्य ही हमें कल्याण की ओर अग्रसर करेगा। प्रभु का जीवन सिद्धि रूपी प्रसाद हमें अवश्य मिलेगा। यदि प्रार्थना कृत्रिम होगी तो असफलता मिलेगी। यदि इसके साथ हृदय की धारा प्रवाहित हो तो चमत्कार रूप में परिणाम शीघ्र ही उपलब्ध होगा। साधक के कारण एवं प्रेम भरे हृदय की निकली हुई आवाज अवश्य ही प्रभु के कानों तक पहुँचती है। वे शीघ्र ही अपने भक्त की रक्षा करने के लिये गजराज की पुकार एवं द्रौपदी की लाज बचाने के समय जैसे चले आये थे, उसी तरह पहुँचते है। महापुरुष एवं भक्त सदैव ही इसका अनुभव करते आये हैं।

जब भगवान् को कोई कृपा प्रकट करनी होती है तो वे उस कृपा के आश्रय का मन स्वयं अपनी ओर खींच लेते हैं। जो लोग यह कहते हैं कि केवल भगवान् का स्मरण करने से स्थूल प्रकृति में कैसे परिवर्तन हो जायेगा, वे यह नहीं जानते कि परिवर्तन की क्रिया तो बहुत पहले से ही प्रारम्भ हो चुकी रहती है। प्रार्थना तो केवल भक्त के हृदय में भगवद् इच्छा की केवल प्रत्यावृत्ति मात्र होती है। जब कभी विपत्तिकाल में भगवान् की अनुकम्पा प्राप्त करने की अभिलाषा उत्पन्न हो ,तब जान लेना चाहिये कि भगवान् की ओर विपत्ति निवारण की योजना बन रही है। ज्यों-ज्यों उनकी योजना प्रौढ़ होती है, त्यों-त्यों हमारी श्रद्धा और विश्वास तीव्रतर होता चलता है। अतः विपत्ति निवारण हमारी प्रार्थना का फल नहीं होता बल्कि हमारी प्रार्थना ही सफलता का चिन्ह होती है।

यदि आप धन, जन, ऋण, मान-प्रतिष्ठा, वाद-विवाद, कलह आदि किसी भी प्रकार के कष्ट से पीड़ित हैं और सब ओर से निराश हो चुके हैं तो प्रार्थना की शक्ति से अवश्य ही लाभ उठावें हमारे कष्टों को काटने के लिये प्रार्थना ही एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है जिसका वार कभी खाली नहीं जाता। हृदय से उठी सच्ची विश्वासयुक्त प्रार्थना में सब कुछ प्राप्त करा देने की विलक्षण शक्ति है। हमें अपनी आत्मा (जो परमात्मा का संक्षिप्त रूप है) पर विश्वास रख कर विनम्रभाव से गद् गद् हो प्रतिदिन ईश्वर प्रार्थना करनी चाहिये। ईश्वर शक्ति और सामर्थ्य का भण्डार है, उसमें हर तरह की सहायता करने की क्षमता है। ईश प्रार्थना के लिये कोई विधि-विधान का बन्धन नहीं है, प्रार्थना आप चाहें जब और चाहें जहाँ कर सकते हैं। प्रार्थना की शक्ति अपरिमित है, अजेय है। दिन का प्रारम्भ प्रार्थना से करें और दिन का अन्त भी प्रार्थना से करें। महात्मा गाँधी ने प्रार्थना के विषय में लिखा है— “प्रार्थना मेरे जीवन का ध्रुव तारा है। एक बार मैं भोजन करना छोड़ सकता हूँ किंतु प्रार्थना नहीं।”

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