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Magazine - Year 1979 - April 1979

Media: TEXT
Language: HINDI
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दृश्य नहीं, दर्शक बनें

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लोग समझते हैं जितना अधिक बन पड़े अच्छे से अच्छा खा लिया जाय, अच्छे से अच्छा पहन लिया जाय। अधिक से अधिक भोग-भोग लेने की मानवीय भूख को किसी ने मिटते नहीं देखा। यह भूख मायाविनी है। बार-बार रूप बदलती रहती है और मनुष्यों को जाल में फँसा कर उनका जीवन नष्ट करती रहती है।

जीवन का रहस्य भोग में नहीं है, अनुभव द्वारा शिक्षा-प्राप्ति में है। दृश्य बनने की अपेक्षा दर्शक बनने का लाभ कई गुना अधिक है, इससे दृश्य का अनुमान भी होता है और सच्चे ज्ञान की अनुभूति भी होती रहती है। भोग में छल, मिथ्यात्व और प्रवंचना है। एक बार इसमें फँस जाने के बाद उससे छूटना कठिन होता है। भोग साध्य कदापि नहीं हो सकता।

यह मनुष्य जीवन इसलिए मिला है कि इस संसार का शक्ति भर अध्ययन किया जाय और उस ज्ञान को मानवता के संरक्षण के लिए बाँट दिया जाय। भाषा, विचार और अनुभूति के जो अनेक उपहार पूर्व पुरुषों ने हमें दिये है, उनका हमारे ऊपर ऋण है। इसको चुकाने का काम, यह शिक्षा-भावी नागरिकों के लिए संचय कर जाने से पूरा होता है। इसलिए इस अमूल्य मानव जीवन को खाओ म, अपितु मानवों गुणों को संगठित करने में उसका अधिक से अधिक उपयोग करो।

-स्वामी विवेकानन्द

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April 1979
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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