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Magazine - Year 1979 - May 1979

Media: TEXT
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तीर्थ परम्परा-पावन यज्ञ

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अग्निश्ष्टोमादिमियैज्ञैरिश्ष्ट्वा विपुल दक्षिणः। न तत्फल मवाप्नोति तीर्थाभिगमनेन यत्।

अश्रद्धानः पापात्मा नास्तिकोऽच्छिन्नसंष्शयः। हेतु मिश्ष्ठष्श्च प´चैत न तीर्थफल भागिनः।

येश्षु सम्यक् नरः स्नात्वा प्रयाति परमाँ गतिम्। तस्मात् तीर्थोश्षु गन्तव्यं नरैः संसारिकभीरुभिः।।

महाभारत। वन पर्व

हे महाभाग! जो पुष्प अग्निष्टोम जैसे विशाल यज्ञों से उपलब्ध नहीं हो सकता वह तीर्थ यात्रा से तीर्थ सेवन से सहज सुलभ होता है, अश्रद्धा युत मात्र, पर्यटन और मनोरंजन के लिये इधर-उधर परिभ्रमण करने वाले संशयात्मक व्यक्ति इस पुण्य फल को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकते। तीर्थ यात्रा का उद्देश्य है-अन्तःकरण की शुद्धि और इस प्रकार शुद्ध हुए हृदय-अन्तःकरण से मानवीय जीवन की यथार्थता का बोध और प्राप्ति। इस आत्म-कल्याण के इच्छुक और अशांत मनःस्थिति के गोलों को तीर्थ यात्रा का पुष्प लाभ प्राप्त करना चाहिये।

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May 1979
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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