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Magazine - Year 1986 - Version 2

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ध्यानयोग पर वैज्ञानिक अन्वेषण

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ध्यान की विभिन्न स्थितियों का अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिकों ने पाया है कि ध्यान की अतल गहराई में प्रविष्ट होने पर साधक के शारीरिक एवं मानसिक क्रियाकलापों में एकरसता— साम्यता आती है। ऐसी स्थिति में ऑक्सीजन की खपत और चयापचई-दर बहुत कम हो जाती है और रक्त में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड का आंशिक दबाव स्थिर हो जाता है। ध्यान के समय शारीरिक कोशिकाएँ गहरे विश्राम की स्थिति में चली जाती हैं और उस समय उन्हें अपनी गतिविधियाें के संचालन में ऑक्सीजन की स्वल्प मात्रा से ही काम चल जाता है।

ध्यान के समय श्वसन-दर असामान्य रूप से कम हो जाती है और तंत्रिका तंत्र के तंतुओं में शिथिलन एवं तनावरहित की स्थिति आ जाती है। ऐसी स्थिति में साधक को असीम आनंद की अनुभूति होती है। ध्यान की गहराई में उतरने पर कार्डिएक आउटपुट— हृदीय उत्पादन भी बहुत कम हो जाता है, क्योंकि उस समय हृदय पर कार्य का दबाव कम पड़ता है।

अमेरिका के डॉ. राबर्टकिथ वैलेस ने बताया है कि ध्यान के समय रक्त में उपस्थित ब्लड लैक्टेट का स्तर बहुत कम हो जाता है। तंत्रिका तंतुओं को उत्तेजित करने वाले चिंताजनक घटक— लैक्टेट की मात्रा कम हो जाने पर उच्च रक्तचाप और हृदयाघात जैसी भयानक बीमारियाँ स्वतः दूर हो जाती हैं। अतः ध्यान के माध्यम से इन बीमारियों पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है।

डाॅ. वैलेस का कहना है कि तनाव या चिंता की स्थिति में त्वचा की अवरोधक क्षमता कम हो जाती है। ध्यान के समय चिंता या तनाव कम हो जाता है, ध्यान का अभ्यास दृढ़ हो जाने पर व्यक्ति पूर्णतया तनावमुक्त हो जाता है और उसके शारीरिक त्वचा की अवरोधक क्षमता असामान्य रूप से बढ़ जाती है।

अनुसंधानकर्त्ता वैज्ञानिकों— राबर्टकीथ वैलेस, हर्बर्ट वेन्सन और ए.एफ. विल्सन ने अपने अध्ययन में पाया कि ध्यान की एकाग्रता के समय साधक के मस्तिष्क के अग्रभाग से 8-9 साइकिल्स प्रति सेकेंड की दर से मस्तिष्कीय तरंगें निकलती हैं। साथ ही कभी-कभी 5-7 साइकिल्स प्रति सेकेंड की दर से प्रभावी समकालीन तरंगें भी निकलती हुई देखी गई हैं। ये मस्तिष्कीय तरंगें जागृत और सुषुप्ति अवस्था से भिन्न मस्तिष्कीय कार्यिकी के साम्यावस्था को प्रदर्शित करती हैं। यह प्रक्रिया मस्तिष्क के चैतन्यावस्था और विश्राम की स्थिति में होती है।

डाॅ. जीन पाल बैन्क्वेट ने अपने अनुसंधान ‘ई.ई.जी. और ध्यान’ में बताया है कि विश्राम की स्थिति में मानव मस्तिष्क से 10 साइकिल्स प्रति सेकेंड की दर से अल्फा तरंगें एक निश्चित क्रम में निकलती हैं और ध्यान के समय 22 साइकिल्स प्रति सेकेंड की दर से निकलने वाली बीटा तरंगें भी निश्चित क्रम में ही निकलती हैं। यह तरंगें मस्तिष्क के प्रत्येक भाग से निकलती हैं, जो मस्तिष्क के चेतनात्मक अवस्थापूर्ण जागृत अवस्था की परिचायक हैं। चेतना की सामान्य स्थितियों में अचानक, अनियमित क्रम में एवं मिश्रित रूप में ये तरंगें निकलती रहती हैं। ध्यान की प्रगाढ़ता में इन तरंगों का क्रम व्यवस्थित और नियमित हो जाता है।

सामान्यतया मानसिक सक्रियता की स्थिति में मानवी मस्तिष्क से ‘बीटा तरंगें’ निकलती रहती हैं। जिनकी आवृत्ति— फ्रीक्वेंसी 13 साइकिल्स (चक्र) प्रति सेकेंड एवं इससे अधिक होती हैं। ध्यानावस्था में मस्तिष्क से ‘अल्फा तरंगें’ 8-13 साइकिल्स (चक्र) प्रति सेकेंड की दर से निकलती हैं। ध्यान की प्रगाढ़ता एवं समाधि अवस्था में अल्फा तरंगों का स्थान ‘डेल्टा तरंगें’ ले लेती हैं, जिनकी आवृत्ति दर 3-5 चक्र प्रति सेकेंड होती है। शिशु अवस्था में भी यही डेल्टा तरंगें शिशु के मस्तिष्क से निस्सृत रहती हैं। शिशु जैसे-जैसे बड़े एवं परिपक्व होने लगते हैं, डेल्टा तरंगों का स्थान ‘थीटा तरंगें’ लेने लगती हैं, जिनकी आवृत्ति 3-7 चक्र प्रति सेकेंड होती है।

पूर्ण विश्रामयुक्त जागृत अवस्था में अल्फा तरंगें 8 चक्र प्रति सेकेंड की गति से निकलती हैं और उनींदेपन की स्थिति में इनका संवहन मंद आवृत्ति वाली सम्मिश्रित 4 चक्र प्रति सेकेंड वाली थीटा तरंगें और 2 चक्र प्रति सेकेंड की गति वाली कम आवृत्ति की डेल्टा तरंगों में हो जाता है। ध्यान की गहराई में प्रविष्ट होने पर थीटा तरंगों का परिवर्तन अल्फा तरंगों में हो जाता है। उनींदेपन की स्थिति में अल्फा तरंगों के साथ मिश्रित थीटा और डेल्टा तरंगें भी एकांतर क्रम से निकलती रहती हैं। जबकि ध्यान के समय एक निश्चित और लगातार क्रम में अल्फा और थीटा तरंगें मस्तिष्क से प्रस्फुटित होती हैं। हल्की नींद की स्थिति में अल्फा तरंगों का निकलना बंद हो जाता है; परंतु मिश्रित तरंगें [थीटा और डेल्टा] निकलती रहती हैं।

मानव मस्तिष्क के दाँए तथा बाँए सेरिब्रल हेमिस्फेयर से निकलने वाली विद्युतीय तरंगों का क्रम सामान्यतया अनियमित रहता है। ध्यान का अभ्यास करने पर इन मस्तिष्कीय तरंगों के क्रम में आपसी सामंजस्य स्थापित हो जाता है, जिसकी फलश्रुति— बुद्धि-विकास, स्मृति एवं विचार-क्षमता में वृद्धि, स्वास्थ्य-सुधार आदि के रूप में होती है। ध्यान के परिणाम स्वरूप तंत्रिका तंत्र की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और वह सुचारु रूप से अपने सभी कार्यों को संपादित करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। ध्यान के समय अल्फा तरंगें मस्तिष्क के पिछले भाग से निकलती हुई आगे की ओर फैल जाती हैं, जिससे मस्तिष्क की पूर्ण क्षमता का विकास होता है।

ध्यान के समय हृदय और मस्तिष्क को कार्यिकी की दृष्टि से भी विश्राम करने का पूर्ण अवसर मिलता है। जैसे-जैसे ध्यान का अभ्यास बढ़ता जाता है, साधक के हृदय की गति— हृदय-स्पंदन कम होने लगता है। परिणामस्वरूप कार्डियो-वैस्कुलर की कार्य क्षमता बढ़ जाती है।

एक फ्रांसीसी हृदय विशेषज्ञ ने ध्यान की उपयोगिता को अनुभव करते हुए कुछ योगाभ्यासियों के शारीरिक परीक्षण किए और पाया कि ध्यान के समय उनकी श्वसन-क्रिया धीमी पड़ जाती है तथा त्वचा की प्रतिरोधी शक्ति बढ़ जाती है। मूर्धन्य वैज्ञानिक होइनिंग और राव ने अपने अनुसंधान में पाया है कि ध्यानावस्था में ऑक्सीजन उपयोग की मात्रा में कमी आती है।

बहुत से निपुण जैन-साधकों तथा अनेक योगियों में संगतिपूर्ण शारीरिक परिवर्तन को देखते हुए ऐसी अनुभूति होती है कि कहीं कोई एक ऐसी असाधारण शारीरिक अवस्था है, जिसे हम चैतन्यता का महत्त्वपूर्ण चतुर्थ आयाम कह सकते हैं। वस्तुतः यह प्राणचेतना ही है।

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Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

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