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Books - आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना

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गायत्री और सावित्री का उद्भव

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First 1 3 Last
पौराणिक कथा- प्रसंग में चर्चा आती है कि सृष्टि के आरम्भकाल में सर्वत्र मात्र जल सम्पदा ही थी। उसी के मध्य में विष्णु भगवान् शयन कर रहे थे। विष्णु की नाभि में कमल उपजा ।। कमल पुष्प पर ब्रह्माजी अवतरित हुए। वे एकाकी थे, असमंजसपूर्वक अनुरोध करने लगे कि मुझे क्यों उत्पन्न किया गया है? क्या करूँ? कुछ करने के लिए साधन कहाँ से पाऊँ? इन जिज्ञासाओं का समाधान आकाशवाणी ने किया और कहा- गायत्री के माध्यम से तप करें, आवश्यक मार्गदर्शन भीतर से ही उभरेगा।’ उन्होंने वैसा ही किया और आकाशवाणी द्वारा बताए गए गायत्री मंत्र की तपपूर्वक साधना करने लगे।

    पूर्णता की स्थिति प्राप्त हुई। गायत्री दो खण्ड बनकर दर्शन देने एवं वरदान- मार्गदर्शन से निहाल करने उतरी। उन दो पक्षों में से एक को गायत्री, दूसरे को सावित्री नाम दिया गया। गायत्री अर्थात् तत्त्वज्ञान से सम्बन्धित पक्ष। सावित्री अर्थात् भौतिक प्रयोजनों में उसका जो उपयोग हो सकता है, उसका प्रकटीकरण। जड़- सृष्टि सावित्री शक्ति के माध्यम से और विचारणा सम्बन्ध भाव- संवेदना आस्था, आकांक्षा, क्रियाशीलता जैसी विभूतियों का उद्भव गायत्री के माध्यम से प्रकट हुआ। यह संसार जड़ और चेतन के- प्रकृति और परब्रह्म के समन्वय से ही दृष्टिगोचर एवं क्रियारत दीख पड़ता है।

    इस कथन का सारतत्त्व यह है कि गायत्री- दर्शन में सामूहिक सद्बुद्धि को प्रमुखता मिली है। इसी आधार को जिस- तिस प्रकार से अपनाकर मनुष्य मेधावी प्राणवान् बनता है। भौतिक पदार्थों को परिष्कृत करने एवं उनका सदुपयोग कर सकने वाला भौतिक विज्ञान सावित्री विद्या का ही एक पक्ष है। दोनों को मिला देने पर समग्र अभ्युदय बन पड़ता है। पूर्णता के लिए दो हाथ, दो पैर आवश्यक हैं। दो फेफड़े, दो गुरदे भी अभीष्ट हैं। गाड़ी दो पहियों के सहारे ही चल पाती है, अस्तु, यदि गायत्री महाशक्ति का समग्र लाभ लेना हो तो उसके दोनों ही पक्षों को समझना एवं अपनाना आवश्यक है।

    तत्त्वज्ञान मान्यताओं एवं भावनाओं को प्रभावित करता है। इन्हीं का मोटा स्वरूप चिन्तन, चरित्र एवं व्यवहार है। गायत्री का तत्त्वज्ञान इस स्तर की उत्कृष्टता अपनाने के लिए सद्विषयक विश्वासों को अपनाने के लिए प्रेरणा देता है। उत्कृष्टता, आदर्शवादिता, मर्यादा एवं कर्तव्यपरायणता जैसी मानवीय गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रहने वाली आस्थाओं को गायत्री का तत्त्वज्ञान कहना चाहिए।
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