
यज्ञोपवीत की तीन लड़ियाँ
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यज्ञोपवीत में तीन लड़े होती हैं । यह लड़े हमारे लिए तीन महान् संकेत करती हैं । पुस्तकें मूक होती हैं पर उनके गर्भ में विचारों का भारी भण्डार जमा रहता है, मूर्तियाँ प्रतिमायें, तस्वीरें, समाधियाँ, स्मारक, ऐतिहासिक भूमियां, यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से मौन होती हैं निष्प्राण होने के कारण वे अपनी कोई बात किसी से नहीं कह सकतीं तो भी विचारवान् व्यक्ति जानते हैं कि उनमें कितने भारी सन्देश भरे होते हैं और यह निजींव पदार्थ मानव अन्तःकरण पर अपनी छाप इतनी डालते हैं जितनी कि सजीव प्राणी भी कठिनाई से डाल पाता है ।
महात्मा गान्धी की समाधि दिल्ली में राजघाट पर है, उस स्थान पर पहुँचने पर भावनाशील अन्तःकरणों में महात्मा गाँधी की आत्मा सम्भाषण करती है । जलियाँवाला बाग में पैर रखते ही उन स्वाधीनता की बलिवेदी पर शहीद हुए अमर नर- नारियों की याद में आँखें सजल हो जाती हैं । एक मुसलमान से पूछिये कि मक्का शरीफ जाकर कितना उल्लास अनुभव करता है । राम कृष्ण के उपासकों से पूछिये कि मथुरा और अयोध्या में जाने पर उन्हें कितनी मूल्यवान् प्रेरणा भावना और तृप्ति मिलती है । चित्तोड़ की रानियों का चिता- स्थल हल्दीघाटी अपना एक विशेष सन्देश देता है । पुनीत नदियाँ, तीर्थ, मन्दिर आदि के समीप जाते हैं तो वे अपनी मूक भाषा में हम से वार्तालाप करते हैं और अपना एक विशेष सन्देश देते हैं । यह सब यद्यपि प्रत्यक्षतः: निर्जीव हैं तो भी इनके पीछे एक तथ्य जुड़ा रहता है, जिसके कारण वे मूक होते हुए भी वाकपटु प्रभावशाली एवं प्रामाणिक व्याख्याता की भाँति हमसे कुछ कहते हैं ।
यज्ञोपवीत भी एक ऐसी ही मूक व्याख्याता गुरु है, जो प्रतिक्षण हमारे साथ रहता है और हर घड़ी बड़े- बड़े महत्त्वपूर्ण उपदेश देता रहता है । उसमें तीन लड़े हैं यह विश्वव्यापी तीन कर्तव्यों की ओर सदा हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं और बताती हैं कि आदर्श जीवन एक प्रकार का त्रिकोण है । इसमें तीन रेखायें हैं इसमें तीन कोण हैं जिनका ठीक प्रकार सन्तुलन रखने से ही सुन्दरता रहेगी, यदि यह सन्तुलन बिगड़ जाता है तो यह बड़ा भद्दा टेढ़ा- मेढ़ा कुरूप हों जायेगा । इसलिए यज्ञोपवीत की तीन लड़े हमें उन तीन तथ्यों की ओर हर घड़ी याद दिलाती हैं जिनके ऊपर जीवन सौन्दर्य का सारा आधार रखा हुआ है ।
तीन ऋण -
(१) देव ऋण
(२) ऋषि ऋण
(३) पितृ ऋण ।
इस त्रिक में उन सबके प्रति विनम्रता और कृतज्ञता के भाव हैं जिन्होंने मनुष्य को ज्ञान और विकास के साधन प्रदान किये हैं । ऐसे लोगों के प्रति हम ऋणी हैं और उसे कर्तव्य पालन के द्वारा ही चुका सकते हैं ।
दुःखों के तीन कारण हैं-
(१) अज्ञान
(२) अशक्ति
(३) अभाव ।
यज्ञोपवीत हमें ज्ञान, शक्ति और अध्यवसाय की प्रेरणा देकर इन दुखों के कारणों से बचाता है । जीवन की सारी सुख- सुविधाएँ इन्हीं तीन तत्वों पर आधारित हैं जो इस मर्म को समझकर तदनुकूल आचरण करते हैं उनका यज्ञोपवीत सार्थक हो जाता है ।
ज्ञान को तीन क्षेत्रों में बाँटा है-
(१) ईश्वर
(२) जीव
(३) प्रकृति ।
रोजी- रोटी के साधनों तक सीमित रह जाने वाले लोग संसार में आने का यथार्थ प्रयोजन पूरा नहीं कर सकते हैं । हम प्रकृति के सहारे जीवन धारण किये हुए हैं इसलिए उसकी जानकारी तो करें पर जीवन का आविर्भाव किन परिस्थितियों में हुआ और इस विराट् चेतन जगत् का नियन्त्रण कौन करता है, इसकी जानकारी भी हमें जब तक नहीं हो, तो हमारा भौतिक ज्ञान सुख सन्तोष प्रदान नहीं कर सकता । यज्ञोपवीत का एकत्रिक इसी बात का संकेत करता है ।
हमारे व्यावहारिक जीवन में उल्लास उत्साह, आनन्द शौर्य, ,, सन्तोष और शान्ति जिन गुणों पर आधारित हैं वह भी मुख्यतया तीन ही हैं-
(१) सत्य
(२) प्रेम
(३) न्याय ।
हमारे जीवन में जो कुछ भी यथार्थ है, उससे भटकते हैं और अपने जीवन में कृत्रिमता का आवरण ओढ़ लेते हैं तभी कष्ट क्लेश क्षोभ और दुश्चिन्तायें सताती हैं ; इसलिए आवश्यक है कि हम जैसे भी हैं ठीक वैसे ही रूप में संसार के समक्ष प्रस्तुत हों । प्रेम व्यावहारिक जीवन के आनन्द का दूसरा गुण है । प्रेम- विहीन जीवन पशु- पक्षियों की तरह हो जाता है । इसलिए हमें अपनी आत्मा को प्राणिमात्र की आत्मा के साथ जोड़ने का अभ्यास कर अपने जीवन में सरलता बनाये रखनी चाहिए । उसी प्रकार सामाजिक शान्ति और व्यवस्था के लिए न्याय भी आवश्यक है । गायत्री का एकत्रिक इन तीन गुणों की ओर संकेत कर व्यावहारिक जीवन के आनन्द की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है ।
यज्ञोपवीत का उद्देश्य मानवीय जीवन में उस विवेक को जागृत करना होता है, जिससे वह अपने वर्तमान- भूत- भविष्य को सुखी और सम्पन्न बना सके । जो लोग अपना जीवन लहर में पड़े फूल- पत्तों की तरह अच्छी बुरी परिस्थितियों के साथ घसीटते रहते हैं वह कहीं भी हो दुःखी ही रहते हैं; किन्तु हम जब प्रत्येक कार्य विचार और योजनाबद्ध तरीके से पूरा करते है तो भूलें कम होती है और हम अनेक संकटों से अनायास ही बच जाते हैं ।
यज्ञोपवीत हमें (१) माता (२) पिता और (३) आचार्य के प्रति कर्त्तव्य पालन की भी प्रेरणा देता हे और (१) ब्रह्मा (२) विष्णु (३) महेश इन तीन सृष्टि की (१) सृजन (२) पालन और (३) विनाश की शक्तियों के साथ सम्बन्ध स्थापित किये रखने की व्यवस्था भी जुटाता है । इसके व्यावहारिक और दार्शनिक रहस्यों का ही गायत्री और यज्ञोपवीत के रूप में हुआ है । इसलिए इन दोनों तत्त्वों को भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च प्रतिष्ठा दी गई है । बीच में लोग उस तत्त्वज्ञान को मूल गये जो यज्ञोपवीत की ३ लड़ों ९ तार और ९६ चौवों में सूत्ररूप से पिरोये हुए हैं उसे फिर से जागृत करने की बड़ी आवश्यकता है । यज्ञोपवीत हमारे शरीर की नहीं जीवन की शोभा भी है, यदि हम भारतीय उसे फिर शिक्षाओं और आदर्शों के साथ धारण कर सकें तो यज्ञोपवीत भी सार्थक हो, हमारा मनुष्य जीवन भी ।