• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन और मृत्यु
    • जीवन का लक्ष्य स्थिर करो
    • जीवन के तेरह रूप
    • अपने जीवन को दिव्य बनाइये
    • सिद्धांतों पर आचरण करना आवश्यक है
    • मृत्यु का भय त्याग दीजिए
    • मृत्यु के समय दु:ख या भय से मुक्ति
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन और मृत्यु
    • जीवन का लक्ष्य स्थिर करो
    • जीवन के तेरह रूप
    • अपने जीवन को दिव्य बनाइये
    • सिद्धांतों पर आचरण करना आवश्यक है
    • मृत्यु का भय त्याग दीजिए
    • मृत्यु के समय दु:ख या भय से मुक्ति
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - जीवन और मृत्यु

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


जीवन का लक्ष्य स्थिर करो

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 1 3 Last

जीवन को सफल बनाने के लिये सर्व प्रथम आवश्यकता यह है कि हम अपने जीवन का एक लक्ष्य सोच समझ कर स्थिर कर लें और तदनुकूल मार्ग से अग्रसर हो । बिना लक्ष्य का कोई भी काम अधिक फल-दायक अथवा प्रभावशाली नहीं हो सकता । इस प्रकार कार्य करने से परिश्रम और शक्ति का अपव्यय होता है जिसके लिये बाद में पछताना पड़ता है । इसलिए बुद्धिमान मनुष्य को जीवन के आरम्भ में ही अपना एक ऐसा लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिये जिससे सांसारिक और पारलौकिक कार्य सिद्ध हो सकें । स्वयं वेद ने भी ऐसा ही आदेश दिया है-

जातो जायते सुदिनत्वे अन्हां समर्ये आ विदथे वर्धमान: । पुनन्ति धीरा अपसो मनीषा देवया विप्र उदियाति वाचम् ।।

(जात:) जीव (अन्हाम्) दिनों को (सुदिनत्वे) सुदिन करने के निमित्त (जायते) उत्पन्न होता है । वह (समर्ये) जीवन संग्राम के निमित्त (विदथे) लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त (आ )सब प्रकार से (वर्धमान;) बढ़ता है (धीर:) धीर पुरुष (मनीषा) बुद्धि से (आपस:) कर्मो को (पुनन्ति) पवित्र करते हैं । और (विप्र:) सुधी ब्राह्मण (देवया) दिव्य कामना से (वाचम्) वाणी को (उत इर्यति) उच्चारण करता है ।

जिन्दगी के दिन तो पशु पक्षी भी काटते हैं । मौत के दिन तो कीट पतंगे भी पूरे करते हैं । मनुष्य इस प्रकार दिन काटने के लिए यहाँ नहीं आया है । उसके जीवन का एक-एक दिन अमूल्य है । इन दिनों को सुदिन उत्तम दिन महान दिन महत्वपूर्ण दिन बनाने के लिए वह उत्पन्न होता है । जीवन धारण को सफलता दिनों को सुदिन बनाने में है । जो दिन महान कार्य करने में आत्मोन्नति में धर्माचरण में परमार्थ में कर्तव्य पालन में, लोक सेवा में व्यतीत हो जाते है वही सुदिन हैं । जैसे वायु सुगन्धित और दुर्गन्धित पदार्थों के संसर्ग से बुरी भली कहलाती है उसी प्रकार दिन भी सुन्दर उत्तम कार्यो के द्वारा सुदिन और बुरे कर्मो के कारण दुर्दिन बन जाते हैं । मनुष्य अपने जीवन दिनों को सुदिन बनाने के उद्देश्य से उत्पन्न होता है ।

सुदिन किस प्रकार बने ? इसका उत्तर वेद ने 'समर्ये' और 'विदथे' शब्दों में दिया है लक्ष्य स्थिर करके और उसके लिए संघर्ष करके जीवन को सफल बनाया जा सकता है । बिना लक्ष्य का जीवन वैसे ही है जैसे बिना सवार का छुट्टल घोड़ा, बिना पतवार की नाव, बिना डोरी की पतंग परिस्थितियों के झोंके इन्हें चाहे जिधर उड़ा ले जाते हैं । जिस पथिक का लक्ष्य स्थिर नहीं कभी पूरब को चलता है तो कभी पश्चिम को लौट पड़ता है कुछ दूर उत्तर को चलता है फिर दक्षिण की ओर मुड़ पड़ता है ऐसा रास्तागीर भला किसी स्थान पर किस प्रकार पहुँच सकेगा ? उसकी यात्रा का क्या परिणाम निकलेगा ? हर बुद्धिमान चलना प्रारम्भ करने से पूर्व यह निश्चय कर लेता है कि मेरा लक्ष्य किस स्थान पर पहुँचना है । इस निश्चय से ही वह दिशा नियत करता है रास्ता मालूम करता है और बिना इधर-उधर भटके निश्चित गति से उस राह पर चला जाता है और नियत स्थान तक पहुँच जाता है मनुष्य को भी पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है । मुझे अमुक तत्व प्राप्त करना हैं यह निश्चय जब भली भाँति हो जाता है तभी यह निश्चित कार्यक्रम बनता है अन्यथा कभी यह कभी वह पाने के लिए उछल कूद होती रहती है । बन्दर एक डाली से दूसरी पर उचकता फिरता है, उसी प्रकार लक्ष्य हीन मनुष्य कभी यह कभी वह चाहता है इसे छोड़ता है उसे पकड़ता है । पर जिसने लक्ष्य स्थिर कर लिया है वह बन्दूक की गोली की तरह सनसनाता हुआ अपने निशाने पर जा पहुँचता है । उछलने कूदने वाले का जीवन दुर्दिनों में निष्फलता में व्यतीत होता है । पर लक्ष्य वाला अपने जीवन को सुदिन बना लेता है ।

लक्ष्य स्थिर करने में मनुष्य स्वतन्त्र है, अज्ञानी मनुष्य मन की, इन्दियों की भूख बुझाने में प्रसन्न रहते है और ज्ञानी आत्मोन्नति के लिये आत्मा की क्षुधा पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं । अज्ञानी दृष्टिकोण कें द्वारा चिन्ता, शोक, क्लेश, अशान्ति एवम् पाप के दुर्दिन सामने खड़े रहते हैं और ज्ञानी दृष्टिकोण के द्वारा निर्भयता प्रसन्नता शान्ति । यह दो ही मार्ग हैं- एक प्रेय दूसरा श्रेय । एक प्रिय लगने वाला है दूसरा कल्याण देने वाला है

हिरण्यकश्यप, रावण, कंस, दुर्योधन सरीखे प्रेय को लक्ष्य बनाते हैं । हरिश्चन्द्र, शिवि, दधीचि, मोरध्वज, प्रहलाद, ध्रुव, ईसा गांधी जैसे महापुरुष श्रेय को अपना लक्ष्य बनाते हैं । दोनों में से एक जो पसंद हो उसे मनुष्य चुन सकता है । पर वेद भगवान उसी लक्ष्य को स्थिर करने की सलाह देते है जिससे दिनों को सुदिन बनाया जा सके । ऐसा लक्ष्य श्रेय ही हो सकता है । श्रेय को अपनाने में ही कल्याण है बुद्धिमानी है ।

किसी भी वस्तु प्राप्ति के लिये श्रम करना पड़ता है संघर्ष करना पड़ता है । यदि नवजात बालक रोना, चिल्लाना और हाथ पांव फेंकना छोड़ दे तो वह अपाहिज हो जाता है उसका विकास रुक जाता है और शक्तियाँ विदा हो जाती हैं । पथिक दिनभर मार्ग से लड़ता है एक के बाद दूसरा कदम लगातार उठाता धरता रहता है तब कहीं आगे बढ़ पाता है । विद्यार्थी, बलार्थी, यशार्थी, स्वार्थी सभी को प्रयत्न परिश्रम एवं संघर्ष करना पड़ता है । धरती का पेट चीर कर किसान अन्न उपजाता है, गहरा गड्ढा खोदने से पानी निकलता है धातु को तपा और कूटकर बर्तन आदि बनाते हैं । जीवन भी संघर्ष से गढ़ता है जीवन विकास के लिए प्रयत्न और परिश्रम आवश्यक है । आत्म कल्याण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए श्रम करना पड़ता है कठिनाइयों से लड़ना पड़ता है समुद्र मंथन से जैसे चौदह रत्न मिले थे, श्रम द्वारा, जीवन मंथन करने से भी भौतिक सम्पतियाँ एवं दैवी संपदायें उपलब्ध होती हैं । इन सम्पन्नताओं के द्वारा मनुष्य बहुत आगे बढ़ जाता है सफलता का मार्ग बहुत आसान हो जाता है ।

लक्ष्य प्राप्ति के लिए यह संघर्ष किस प्रकार किया जाय ? इस प्रश्न के उत्तर में श्रुति कहती है 'पुनन्ति धीरा अपसो मनीषा' धीर पुरुष विवेक पूर्वक कमी को पूरा कर लेते हैं । साधारण कर्मो को पवित्र कर्म बना लेना यह धीर पुरुषों के विवेक का कौशल है ।

कोई भी काम न तो अपने आप में अच्छा है न बुरा । उसे जिस भावना से किया जाता है, उसी के अनुसार वह भला बुरा बन जाता है । पानी रंग रहित है उसमें जैसा भी रंग डाल दिया जाय वह वैसे ही रंग का बन जाता है । इसी प्रकार समस्त कर्म भावना के अनुसार भले बुरे बनते हैं । कई बार सदुद्देश्य के लिए विवेक पूर्वक सद्भावना के साथ हिंसा, चोरी, असत्य, छल, व्यभिचार तक बुरे नहीं ठहरते । भगवान कृष्ण के तथा अन्य महापुरुषों के जीवन में इस प्रकार की घटनायें मिल सकती है जबकि अनुचित कहे जाने वाले कर्मो को अपनाया गया हो । इसी प्रकार अविवेक पूर्वक या बुरे उद्देश्य से किये गये सत्कर्म भी बुरे हो जाते हैं । आतातायी पर दया करना हिन्सक बधिक के पूछने पर पशु पक्षियों का पता बताने का सत्य बोलना कुपात्रों को दान देना आदि कार्यो से उल्टा पाप लगता है । इसलिए कर्म के स्थूल रूप पर अधिक ध्यान न देकर उसकी सूक्ष्म गति पर विचार करना चाहिए ।

दैनिक काज जिन्हें आमतौर से सब लोग किया करते है यदि उन्हें ही सद्भावना से उच्च विचार से किया जाय तो वे ही यज्ञ रूप हो सकते है । परिवार का भरण पोषण यदि इस भावना के साथ किया जाय कि ''भगवान ने इतने प्राणियों की सुरक्षा उन्नति एवं व्यवस्था का भार मेरे ऊपर सौंपा है, इस ड्यूटी को सच्चे वफादार भक्त की तरह पूरी ईमानदारी से पूरा करूँगा परिवार के किसी व्यक्ति को अपनी सम्पत्ति न समझूँगा बदले की कोई आशा न रखूँगा । तो इसी उच्च भावना के कारण वह कुटुम्ब पालन उतना ही पुण्य फलदायक बन जाता है जितना कि उतने ब्राह्मणों को नित्य भोजन कराना उतने अनाथों का पालन पोषण करना उतने निराश्रितों की सेवा करना उतने अशिक्षितों को शिक्षित बनाना । चूँकि प्राणि भगवान की चलती फिरती प्रतिमा है इसलिए इतने प्राणियों की सेवा व्यवस्था देव मन्दिर में भगवान की पूजा करने से किसी प्रकार कम महत्व की नहीं होती ।

यही कुटुम्ब पालन यदि स्वार्थ की मालिक की खुदगर्जी की बदला प्राप्त होने की अहंकार पोषण की भावना से होता है तो स्वार्थ साधन कहा जायेगा और भावना की तुच्छता के कारण उसका फल भी वैसा ही होता है । व्यापार, कृषि, शिल्प युद्ध, उपदेश आदि व्यसनों को यदि यह सोच कर किया जाय कि इन कार्यों से संसार की सुख शान्ति में वृद्धि हो, सात्विकता बड़े मेरे कार्य नर नारायण को प्रसन्न करने वाले और संतोष देने वाले हों तो इन भावनाओं के कारण ही वह साधारण कार्य पुण्यमय यज्ञ रूप बन जाते हैं ।

केवल कल्पना करने या झूठ मूठ मन समझा लेने या किन्हीं शब्दों को मन ही मन दुहरा लेने को भावना नहीं कहते । सच्चा संकल्प पक्का दृष्टिकोण और अटूट विश्वास मिल कर भाव बनता है । उस भाव से किये हुए कार्य उच्च अच्छे लाभदायक सुदृढ़ एवं सात्विक होते हैं । उच्च भावना के साथ जिस कुटुम्ब का पालन किया गया है उसमें राजा हरिश्चन्द्र के से स्त्री पुत्र निकलेगे । व्यभिचारिणी स्त्री और अवज्ञाकारी पुत्र वहाँ मिलेगे जहाँ कुटुम्ब पोषण तुच्छ विचारधाराओं के साथ किया जाता है । उच्च दृष्टिकोण वाला ब्राह्मण यजमान को ठगने के लिये मीन मेख लड़ाने की हिम्मत नहीं करता । उच्च दृष्टिकोण वाला क्षत्रिय किसी निर्बल या निरपराध की तरफ त्यौरी नहीं चढ़ा सकता । उच्च भावना वाला वैश्य घी में वैजीटेबल नहीं मिला सकता और न तंबाकू की गंदी, पुस्तकों की, मांस मदिरा की दुकान खोल सकता है । जाल साजी से भरी हुई कमजोर नकली मिलावटी, हानिकारक चीजें वह कितने ही बड़े प्रलोभन के बदले नहीं बेच सकता । अपने लाभ को वह ग्राहक के लाभ से अधिक महत्व नहीं दे सकता । शूद्र श्रम में चोरी नहीं कर सकता हराम का पैसा उसे विष के समान कडुआ लगता है । खरी मजदूरी देने में दूसरे लोग ढील करें इसे तो वह किसी प्रकार सहन कर सकता है पर काम में ढ़ील देकर वह अपनी आत्मा को कलंकित नहीं कर सकता । इस प्रकार उच्च दृष्टिकोण से किये हुए काम संसार के लिए बड़े लाभदायक होते हैं उससे लोक में सुख शान्ति की वृद्धि होती है जिसका पुण्य फल उच्च दृष्टिकोण वालों को हो मिलता है ।

विचारों को उच्च बनाकर भावनाओं को परमार्थमयी रख कर धीर, पुरुष, विवेक द्वारा कर्मो को पवित्र कर लेते हैं । ऐसे पुरुषों के विचार और कार्य तो महान होते ही हैं, साथ ही वे सुधी उत्तम बुद्धि वाले, ब्रह्मपरायण व्यक्ति वाणी को भी दिव्य कामना से ही उच्चारण करते हैं वाणी से कडुआ वचन, असत्य वचन, घमण्ड भरा वचन वे कदापि नहीं बोलते । जिस बात से विरोध द्वेष कलह क्लेश क्षोभ होता हो, पाप करने को उत्तेजना मिलती हो निराशा उत्पन्न होती हो भय श्रम या लोभ बढ़ता हो ऐसा वचन वे नहीं बोलते । किसी को ऐसी सलाह वे नहीं देते जिससे उसे तुरन्त तो कुछ क्षणिक लाभ हो जाय पर अन्त में दुःख उठाना पड़े । सुधी लोग अपनी वाणी पर संयम रखते है । बेकार कतरनी सी जीभ चलाकर निष्प्रयोजन वकवास नहीं करते भावना में जैसी शक्ति है वैसी ही शक्ति शब्द में भी है इसलिए वे सोच समझ कर मुँह खोलते हैं । निन्दा चुगली से दूर रहते हैं उनकी वाणी में प्रेम, प्रोत्साहन, विनय नम्रता, मधुरता, सरलता, सच्चाई एवं हित कामना भरी रहती है ।
First 1 3 Last


Other Version of this book



जीवन और मृत्यु
Type: TEXT
Language: HINDI
...

जीवन और मृत्यु
Type: SCAN
Language: HINDI
...

જીવન અને મૃત્યુ
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • जीवन और मृत्यु
  • जीवन का लक्ष्य स्थिर करो
  • जीवन के तेरह रूप
  • अपने जीवन को दिव्य बनाइये
  • सिद्धांतों पर आचरण करना आवश्यक है
  • मृत्यु का भय त्याग दीजिए
  • मृत्यु के समय दु:ख या भय से मुक्ति
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj