• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • दो शब्द
    • पढ़े सो पंडित होय-ढाई अक्षर प्रेम के
    • प्रेम- संसार का सर्वोपरि आकर्षण
    • प्रेम और उसकी शक्ति
    • प्रेम समस्त सद् प्रेरणाओं का स्रोत
    • प्रेम जगत का सार और कुछ सार नहीं
    • प्रेम का अमृत और उसकी उपलब्धि साधना
    • मानव जीवन का अमृत-प्रेम
    • प्रेम का अमृत मधुरतम है
    • आनन्द का मूल-स्रोत प्रेम ही तो है
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • दो शब्द
    • पढ़े सो पंडित होय-ढाई अक्षर प्रेम के
    • प्रेम- संसार का सर्वोपरि आकर्षण
    • प्रेम और उसकी शक्ति
    • प्रेम समस्त सद् प्रेरणाओं का स्रोत
    • प्रेम जगत का सार और कुछ सार नहीं
    • प्रेम का अमृत और उसकी उपलब्धि साधना
    • मानव जीवन का अमृत-प्रेम
    • प्रेम का अमृत मधुरतम है
    • आनन्द का मूल-स्रोत प्रेम ही तो है
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - प्रेम ही परमेश्वर है

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


प्रेम का अमृत और उसकी उपलब्धि साधना

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 6 8 Last
प्रेमतत्व को ज्ञानियों ने अमृत की संज्ञा दी है। निःसन्देह प्रेम तीनों प्रकार से अमृत ही है। यह स्वयं अमर होता है। जिसकी आत्मा में यह आविर्भूत होता है, उसे अमर अनुभूति सहज ही प्रदान करता है। प्रेम अमृत अर्थात् अमर होता है। यह तत्व न तो कभी मरता है, न नष्ट होता है और न इसमें परिवर्तन का विकार उत्पन्न होता है। एक बार उत्पन्न हो कर यह सदा सर्वदा बना रहता है। संसार की हर वस्तु, अवस्था, विचार, परिस्थितियाँ, विश्वास, धारणायें, मान्यतायें प्रथायें यहाँ तक कि मनुष्य और शरीर बदल जाते हैं, किन्तु प्रेम अपने पूर्णरूप में सर्वत्र अपरिवर्तनशील रहता है। यही इसकी अमरता है। प्रेम अमृत है, स्वयं अमर है।

प्रेम न स्वयं ही अमृत है, बल्कि जिसकी आत्मा में इसका आविर्भाव होता है, उसे भी अमर बना देता है। प्रेम की पूर्णता प्राप्त किये बिना जिस प्रेममय को नियति के अधीन शरीर त्याग करना पड़ता है, वह पुनः शरीर धारण कर उसी स्थान से अपनी प्रेमसाधना को आगे बढ़ाता है। अवधि पूरी होने पर नियति उसका एक शरीर तो ले सकती है, किन्तु साधना पूरी करने के लिए उसका नया शरीर धारण करना वर्जित नहीं कर सकती। साधना के लिए एक ही जीवात्मा की यह शरीर परम्परा अमरता का ही तो लक्षण है। उपरान्त जब उसकी प्रेम साधना अपनी पूर्णता को प्राप्त होती है, तब तो प्रेम जीवन-मरण की पुनरावृत्ति से ही मुक्त हो जाता है और मोक्ष नामक उस पद को प्रात कर लेता है, जो न केवल अमर ही होता है, बल्कि अक्षय शाश्वत होता है।

प्रेमतत्व में अमृतानन्द की अनुभूति होती है। प्रेमतत्व से ओतप्रोत आत्मायें प्राय: वीतराग हो जाती हैं। उनके विषयभोग की वासनायें शान्त हो जाती हैं। इसलिए नहीं कि वे इसके योग्य नहीं रहते अथवा अक्षय हो जाते हैं, बल्कि वे प्रेम के अमृतानन्द की उपस्थितियाँ विषयभोगों की नश्वरता तथा मिथ्यात्व से अवगत हो जाते हैं। जो सत्य और सब कुछ पा सका मिथ्या तथा तुच्छता की कामना किस प्रकार कर सकता है ? भौतिक रूप से प्रेमियों को प्राय: घाटे में रहना पड़ा है। वे त्याग और उत्सर्ग की मूर्ति होते हैं। अपने प्रेमास्पद के लिए सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, तब भी प्रेम के प्रसाद से एक अनिर्वचनीय आनन्द से ओतप्रोत बने रहते हैं। वे आत्मतुष्ट, आत्मानन्दित तथा आत्मसुखी बने रहते हैं। देश से प्रेम करने वालों, धर्म से प्रेम करने वालों, विचार और आदर्श से प्रेम करने वालों ने गोली, शूली, फाँसी और अंग-भंग की भयानक यातनायें पाईं, किन्तु प्रेम के प्रसाद से उनके मुख की आनन्दमयी मुस्कान कभी मन्द नहीं हुई।

यदि प्रेम में अमृत आनन्द का गुण न होता तो उसके आधार पर न तो कोई मर्मान्तक यातना सहन करता और न त्याग एवं उत्सर्ग के द्वारा प्रात निर्धनता और अभाव को अहोभाग्य मानता। प्रेम से परिपूर्ण आत्मा वाला उसके अक्षय आनन्द से भरा हुआ, गूँगे के गुड़ खाने जैसे अबोल आनन्द का रस लेता हुआ प्रतिक्षण संतुष्ट बना रहता है। प्रेम का अमृतानन्द सारे आनन्दों से ऊपर और स्पृहणीय है।

बहुत बार देखा जाता है कि लोग अपने प्रेमास्पद के लिए आँसू बहाते हैं। अपने आराध्य के सम्मुख मन्दिरों में विलाप करते हैं। याचना करते हैं कि उन्हें शरीर कारा से मुक्त कर प्रेमास्पद के साथ एक रूप कर दिया जाय। इस प्रकार व्याकुलता से व्याप्त मनुष्य को देखकर उसके भक्त अथवा प्रेमी होने का अनुमान होता है। किन्तु वे ही व्यक्ति जब अपने आसपास के दुःखी और क्लान्त मनुष्यों को देखकर उनकी पीड़ा जानकर भी मौन और उदासीन बने रहते हैं, दया, संवेदना अथवा करुणा से द्रवित नहीं होते, तो तुरन्त ही उसके प्रति भाव बदल जाता है और मानना पड़ता है कि अमुक व्यक्ति यथार्थ रूप में प्रेमी नहीं है, बल्कि प्रेम प्रदर्शन करने वाला ढोंगी है। प्रेमतत्व ओतप्रोत व्यक्ति की आत्मा बड़ी करुणा और हृदय बड़ा दयावान् होता है। करुणा और दया प्रेम के प्रमुख प्रसाद हैं। अपने को प्रेमी मानकर भी जो अकरुण है, कठोर है, निश्चित रूप से वह आडम्बरी है, फिर भावातिरेक में वह अपने प्रेमास्पद अथवा आराध्य के लिए रो-रो कर नदियाँ क्यों न बहाता रहे। सच्चा प्रेमी या योगी अणु−अणु में अपने प्रेमास्पद का ही आभास पाता है, वह सदा−सर्वदा सबके लिए करुणापूर्ण प्रेम का प्रसाद बाँटता रहता है।

किसी दीन दुःखी को देखकर उसका मार्मिक हृदय उसकी सेवा, सहायता किए बिना रह ही नहीं सकता। महात्मा ईसा सच्चे ईश्वर भक्त और मानवता के प्रेमी थे। महात्मा गाँधी अपने आश्रम में कोढ़ियों तक की सेवासुश्रुषा किया करते थे और महात्मा ईसा तो मार्ग में मिले दुखियों का जब तक दुःख दूर नहीं कर लेते थे, अपनी आगे की यात्रा तक स्थगित रखते थे। जहाँ वे ईश्वर को पाने और उसमें मिल जाने के लिए व्यग्र थे, उसके लिए आँसू बहाते थे, वहाँ उसकी दुनियाँ के दुखी लोगों की सेवा भी करते थे। महात्मा ईसा और महात्मा गाँधी यथार्थ रूप में भक्त और प्रेमी थे। मनुष्य को अपने आनन्द और आत्मकल्याण के लिए आडम्बरपूर्ण प्रेम से बचना और सच्चे प्रेम को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।

प्रेम अमूल्य व निःस्वार्थ वस्तु है। प्रेम का कोई मूल्य नहीं। प्रेम के सम्मुख संसार के सारे सुख, सारी सम्पदायें और सारी विभूतियाँ तुच्छ हैं। संसार में एक नहीं सैकड़ों ऐसे प्रेमी जन हुए हैं, जिन्होंने इस तत्व की रक्षा में धन-दौलत, कुटुम्ब कबीला, जमीन-जायदाद यहाँ तक कि राजसिंहासनों को तृण के समान त्याग दिया है। प्रेमियों ने प्रेम के स्थान पर उसके मूल्य में हँसते हँसते अपने शीश दान कर दिये हैं। उन्होंने सब कुछ दे दिया, लेकिन प्रेम त्याग की कल्पना तक नहीं की प्रेमधन के समक्ष संसार की सारी सम्पदायें तुच्छ तथा नगण्य हैं।

इतना अनमोल होने होने पर भी प्रेम निमूल्य ही है। न तो उसके लिए कोई मूल्य दिया जाता है और न लिया जाता है। यदि मनुष्य के पास बिना मूल्य बाँटने योग्य कोई वस्तु है तो वह प्रेम ही है। इस अमृत की कोई थाह नहीं। जन्म-जन्म तक झोली भरकर बाँटते रहिए इसमें कमी नहीं होती। ज्यों−ज्यों जितना अधिक प्रेम का प्रसाद बाँटा जाता है, उसका भण्डार उतना ही अधिक भरता जाता है। प्रेम का प्रसाद वितरण करने में न तो कोई पैसा लगता है और न कोई उपकरण। यही तो एक ऐसी सम्पत्ति इस भाग्यवान मनुष्य के पास है, जो अनमोल होने पर भी निर्मूल्य है। प्रेम का प्रसाद वाणी से, शरीर सेवा से, भावना से, विचार से, करुणा, दया सहानुभूति, संवेदना आदि किसी भी रूप में संसार भर में वितरित किया जा सकता है। प्रेम के अमृत में न तो धन लगता है और न उसका दान करने में कुछ व्यय ही होता है। प्रेम का अमृत केवल अमूल्य ही नहीं बल्कि निर्मूल्य भी है।

प्रेम रूपी सम्पत्ति को न तो कहीं से लाना होता है और न किसी से लेना होता है, मनुष्य की अन्तरात्मा में उसका सागर भरा हुआ है। ऐसा अथाह सागर कि जिसको हमारे जन्मों तथा संसार के मनुष्यों को क्यों न बाँटा जाय, तब भी उसमें रञ्च-मात्र कमी नहीं आती। प्रेम का वह सागर ज्यों का त्यों लबालब भरा रहता है। प्रेम मनुष्य की आत्मा का स्वयं प्रकाश है। प्रकाश वितरण से उसमें किसी प्रकार की कमी नहीं आती। कोई भी प्रकाश कितनी ही वस्तुओं को आलोकित क्यों न कर ले अपना आभास कितने ही विस्तार में क्यों न डाले, किन्तु उसकी मूल यात्रा में जरा भी अन्तर नहीं आता। वह यथावत् पूरे का पूरा बना रहता है। तथापि आत्मा में वर्तमान प्रेम प्रकाश उपलब्धियाँ अनायास ही नहीं हो जाती। उसके लिए उपाय तथा साधना करने की आवश्यकता होती है।

जब तक मनुष्य आत्मा को आवृत्त किए मल, विक्षेप, स्वार्थ, संकीर्णता आदि आवरण को नहीं हटायेगा, तब तक आत्मा में वर्तमान प्रेमप्रकाश का उद्घाटन नहीं हो सकता। इस भौतिक आवरणों को हटाने के उपाय स्वरूप मनुष्य को संसार के दीनदुःखी मनुष्यों के प्रति दया करुणा तथा सहानुभूति का व्यवहार करना होगा। उनके दुखों को अपना दुःख और उनके आँसुओ को अपने आँसू समझना होगा। अपनी शक्ति भर लोगों की सेवा- सहायता करनी होगी और इस सहानुभूति को जागृत तथा विकसित करने का उपाय यह है कि संसार के इस चरम सत्य को स्वीकार कर लिया जाय कि मेरे सहित इस निखिल ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी एक उस परम पिता परमात्मा की ही सन्तानें हैं। स्थल, नभ तथा जलचारी जितने भी मनुष्य, पशु पक्षी अथवा कीटपतंग दृष्टिगोचर होते हैं वे सब हमारे भाई ही हैं। मनुष्य का यह व्यापक भ्रातृभाव सहज ही सबके लिए हृदय में प्रेम का प्रवाह आन्दोलित कर देगा, जिससे आत्मा के उस पावन प्रकाश को आवृत रखने वाले सारे आवरण छिन्न−भिन्न होकर नष्ट हो जायेंगे। आत्मा में वर्तमान प्रेम का अखण्ड प्रकाश निराकरण होकर फैलने लगेगा, जिसकी कृपा से तुच्छ मानवजीवन एक अद्भुत उपलब्धि बन जायगी। प्रेम आत्मा का सहज प्रकाश है, उसको किसी से पाने अथवा कहीं से लाने की आवश्यकता नहीं होती।

प्रेम मनुष्य की सर्वोपरि आवश्यकता है। मानवआत्मा अथवा संसार से प्रेम रूपी अमृत का ज्यों−ज्यों ह्रास होता जाता है, मनुष्य दानव और संसार नरक बनता जाता है। इसका कारण प्रेमतत्व की कमी ही तो है कि मनुष्य क्रूर, कपटी, स्वार्थी और शोषक बनकर अपने ही भाइयों को उत्पीड़ित करता है। उन्हें हानि पहुँचाता है और उसके फलस्वरूप अपनी आत्मा में ही नरक निर्माण नहीं करता, बल्कि देहान्तर के लोकों को भी अन्धकारपूर्ण बना लेता है। प्रेम के अभाव में ही धन-दौलत, मान प्रतिष्ठा, परिवार, आदि सब कुछ होने पर भी मनुष्य सुख−शान्ति की एकश्वास के लिए भी तरसता रहता है। प्रेम की कमी के कारण ही तो यह संसार, परमात्मा की यह सुन्दर रचना, जीवन की यह कर्मभूमि जो उसके लिए स्वर्ग, मुक्ति अथवा अमृत पद की साधिका है, उल्टे शोक−सन्ताप तथा मोह-बन्धनों और जन्म मरण के दुखदायी चक्र का कारण बनती है। संसार में चारों ओर पनपने वाली त्राहि−त्राहि और शान्ति की याचना के मूल में प्रेम मानवजीवन और संसार की सर्वोपरि आवश्यकता है। अस्तु कल्याणकारी मार्ग यही है कि आत्मा तथा संसार अन्तर तथा बाह्य में स्नेह सौजन्य तथा दया, करुणा व सहानुभूति की परिस्थितियाँ बढ़ाई तथा दृढ़ बनाई जाती रहें। मनुष्य अपने से, अपने परिवार से, पासपड़ौस से, पुरजन तथा संसारी जनों से यहाँ तक कि जीव मात्र से सच्चा तथा निस्वार्थ प्रेम करे। प्रेम का विकास होते ही यह संसार जो आज अपनी परिस्थितियों में भयावह विदित होता है, शीघ्र ही स्वर्गीय सम्पदाओं से भर जायगा, जिनके बीच मनुष्य न केवल इह-लीला ही आनन्दपूर्वक चला सकेगा, बल्कि मुक्ति तथा मोक्ष का जीवन लक्ष्य पाने में भी सुविधा का अनुभव करेगा।

First 6 8 Last


Other Version of this book



प्रेम ही परमेश्वर है
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रेम ही परमेश्वर है
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • दो शब्द
  • पढ़े सो पंडित होय-ढाई अक्षर प्रेम के
  • प्रेम- संसार का सर्वोपरि आकर्षण
  • प्रेम और उसकी शक्ति
  • प्रेम समस्त सद् प्रेरणाओं का स्रोत
  • प्रेम जगत का सार और कुछ सार नहीं
  • प्रेम का अमृत और उसकी उपलब्धि साधना
  • मानव जीवन का अमृत-प्रेम
  • प्रेम का अमृत मधुरतम है
  • आनन्द का मूल-स्रोत प्रेम ही तो है
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj